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मालिश वाले दादा भी बने डॉक्टर

-झोलाछाप डॉक्टरों की बढ़ती संख्या (अनुराग तागड़े) 9893699969 इंदौर। प्रशासन की ढीलपोल का फायदा उठाते हुए शहर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या काफी तेजी से बढ़ती जा रही है। लगातार शिकायतें मिलने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाना अपने आप में आश्चर्य का विषय है। दरअसल प्रशासन को आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) ने भी 200 से भी ज्यादा झोलाछाप डॉक्टरों की सूची सौंपी है जिसमें क्लिनिक के फोटो के अलावा उनके नाम आदि का भी जिक्र किया गया है। तरह तरह के डॉक्टर शहर के आसपास कई ऐसे डॉक्टर मौजूद हैं जो शाम को ही प्रेक्टिस करते हैं तथा दिन में कोई और काम करते हैं याने दिनभर में वे जो कुछ भी करें पर शाम को मालिश वाले डॉक्टर बन जाते हैं। अब मालिश करने वाले ही डॉक्टर बन जाएं तब आप समझ सकते हैं कि क्या होगा? ये बाकायदा दवा भी लिखते हैं। इसके अलावा दवाओं की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वाले भी अपने आप को डॉक्टर से कम नहीं समझते और अपने पर्चे पर नाम के साथ बाकायदा डॉक्टर लिखते हैं तथा दवा भी देते हैैं। दवा का बिजनेस आकर्षित करता है दरअसल संपूर्ण मामला दवाओं पर मिलने

संगीत अवचेतन मन को भी तृप्त करता है

(अनुराग तागड़े) 9893699969 सांगीतिक समझ के साथ संगीत सुनना किसी कलाकार या संगीत के जानकार ही कर सकते है पर क्या कारण है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत से लेकर अन्य किसी भी प्रकार के संगीत का प्रभाव व्यक्ति के अवचेतन मन तक पहुंचात है और मन को जैसे अमृत तत्व की छूअन महसूस होती है। संगीत परमब्रम्ह है ऐसा कहा जाता है पर क्या भारतीय शास्त्रीय संगीत आम जनता को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पसंद आता है या आता रहेगा। यह प्रश्न अक्सर बड़े कलाकारों को कंसर्ट से पहले मीडिया पूछता है और बड़े कलाकार भी बड़े ही धैर्य के साथ इसका उत्तर देते है कि जब ब्रह्म है तब यह अविनाशी है और जो अविनाशी है वह सतत प्रवाहमान है। अविनाशी सुरों की कल्पना ही कितनी सुंदर है मधुर है ऐसा स्वर जो नित बजता रहता हो और जो मन की तारों को झंकृत करने का माद्दा रखता हो। भारतीय शास्त्रीय संगीत को लेकर पूर्वाग्रह बहुत पाला जाता है और उस पूर्वाग्रह को मन में रखकर ही अक्सर कई दर्शक किसी कंसर्ट का हिस्सा बनते है। उन्हें भीतर से किसी भी प्रकार की रुचि नहीं रहती पर जब सुर व्यक्ति के अवचेतन मन पर अपना असर डालते है और जब व्यक्ति अपना होकर भी अप

आतंकी घटना के बाद क्या हमें सजग नहीं हो जाना चाहिए?

- पुलिस को चेकिंग में गंभीरता बरतनी चाहिए - बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन पर सावधानी बरतनी होगी - होली के मद्देनजर भी सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद रखना होगी (अनुराग तागड़े) इंदौर। भोपाल-उज्जैन पैसेंजर ट्रेन में आतंकियों द्वारा किए गए विस्फोट के बाद संपूर्ण मालवा क्षेत्र फिर सिमी और अन्य संगठनों की रडार पर आ गया है। इंदौर, उज्जैन के अलावा बुरहानपुर व आसपास के क्षेत्र में सिमी व ऐसे ही अन्य संगठन काफी सक्रिय हैं यह सभी जानते हैं और लगातार इस प्रकार की खबरें आती रही हैं। अब तक इन संगठनों की उपस्थिति के बावजूद मालवा क्षेत्र में इस प्रकार की घटनाएं न के बराबर थीं...परंतु ट्रेन पर हमले के बाद अब संपूर्ण क्षेत्र में पुलिस और खुफिया तंत्र को सजग हो जाना चाहिए। सिमी संगठन के सफदर नागौरी व अन्य सदस्यों को उम्र कैद की सजा से इस घटना को जोड़ा जा रहा है और हो सकता है यह सही भी हो क्योंकि आनन-फानन में इस आतंकी घटना को अंजाम दिया गया है।  बैरिकेड्स लगाकर हो रही पुलिस चेकिंग में गंभीरता बरती जाए शहर के अलावा शहर की सीमाओं पर अक्सर पुलिस बैरिकेड्स लगाकर चेकिंग करती है। यह चेकिंग पॉइंट्स अब सभी क

सुरक्षित माहौल मिले इस कारण प्राइवेट पार्टियों में होली

- शहर में होली व रंगपंचमी पर हुड़दंग के कारण बदल रहा है माहौल (अनुराग तागड़े) इंदौर। सामान्य दिनों में ही छेड़छाड़ और फब्तियों के कारण परेशान शहर की महिलाओं को अब होली व रंगपंचमी पर घर से बाहर निकलना बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं लगता, वह भी परिवार के साथ निकलने पर भी नहीं क्योंकि पता नहीं कहीं से हुड़दंगियों की टोली आ जाए और बिना जान-पहचान रंग लगाने लगे। यही कारण है कि शहर में अब होली किसी बड़े वैन्यू पर सुरक्षा व्यवस्था के साथ मनाने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है। खासतौर पर निजी तौर पर कई कंपनियां पारिवारिक माहौल देने के लिए इस प्रकार के आयोजन कर रही हैं और इसके लिए बाकायदा पासेस व एंट्री फीस भी रखी जाती है।  क्यों पड़ रही है जरूरत? यह बड़ा ही विचारणीय प्रश्न है कि शहर में होली व रंगपंचमी का त्यौहार हुल्लड़बाजी में बदलता जा रहा है। इस कारण सामान्य तौर पर महिलाओं को बाहर निकलने में काफी दिक्कत होती है पर वे त्यौहार को अपनो के बीच मनाना भी चाहती हैं जहां पर माहौल अच्छा हो। शहर में कुछ वर्ष पूर्व रंगपंचमी के दौरान एक मां-बेटी की कार भीड़ में फंस गई थी और बड़ी मुश्किल से वे बच पाई थीं। वैसे गेर नि

कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर गिर रहा है...शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाओ

- सेमिस्टर सिस्टम भी है दोषी - विश्वविद्यालय अब दखल देगा (अनुराग तागड़े) इंदौर। यह विडंबना ही है कि जिस देवी अहिल्या विश्वविद्यालय ने कई होनहार विद्यार्थी दिए हैं वहीं पर अब विद्यार्थियों की पढ़ाई में रुचि कम होती जा रही है। लगातार कॉलेजों के रिजल्ट खराब आते जा रहे हैं और हालात यह है कि विद्यार्थियों को 5 अंक भी नहीं आ पा रहे हैैं। गिरते स्तर को लेकर विश्वविद्यालय अब नई नीति पर काम कर रहा है जिसमें विवि की टीम विभिन्न कॉलेजों में जाएगी। यह टीम अचानक किसी भी कॉलेज में पहुंच सकती है। विश्वविद्यालय प्रशासन का मानना है कि इस प्रकार से सभी कॉलेजों पर दबाव पड़ेगा और वे शिक्षा की गुणवत्ता पर ध्यान देंगे। इसका असर परीक्षा के परिणामों पर पड़ेगा। सेमिस्टर सिस्टम के कारण सिस्टम बिगड़ा? विश्वविद्यालय के परीक्षा और परिणाम का ढर्रा गत कुछ वर्षों से बिगड़ा हुआ है। समय पर परीक्षा न होना और रिजल्ट नहीं लगने की समस्याएं लगातार आती रहीं। सेमिस्टर सिस्टम के कारण भी यह समस्या थी जिसके कारण पढ़ाई का स्तर भी गिरा और रिजल्ट भी खराब आए हैं। 75 प्रतिशत उपस्थिति सुनिश्चित हो देवी अहिल्या विश्वविद्या
कलाओं के प्रस्तुतिकरण के दौरान कलाकार के व्यक्तित्व और विचारों का प्रभाव (अनुराग तागड़े) 9893699969 कलाएं व्यक्ति को इंसान बनाती है...हम मनुष्यता की बात बहुत करते है पर असल में कलाएं ही है जो मनुष्य को उसके वजूद का एहसास करवाती है। कलाएं मनुष्य को आदिम युग से प्रभावित करती आ रही है चाहे आदि मानव की गुफाओं के भित्ती चित्र हो या उस समय के उनके अपने संगीत की बात हो कलाए आनंद का पर्याय है कलाएं व्यक्ति को भीतर से बदलाव के लिए प्रेरित करती है और व्यक्ति को अपने आप से संवाद का मौका देती है। ऐसा संवाद जो व्यक्ति को स्वयं को परिभाषित करता है और मैं की तरफ ले जाती है। आदिम युग से मध्ययुगीन बाते की जाए तब उस समय के माहौल और परिवेश का असर उस समय के संगीत और अन्य कलाओं पर पड़ा है और उसके कारण संगीत और कलाए समृद्ध हुई है। कलाओं के विभिन्न आयामों पर नजर डाली जाए तब हमें यह पता चलता है कि लगातार बदलाव होते आए है यह बदलाव अपने आप में काफी बड़े रहे है। इसमें तात्कालिक राजनैतिक,आर्थिक और सामाजिक बदलावों का भी असर काफी पड़ा है और वर्तमान में जो कलाओं का स्वरुप हमारे सामने नजर आ रहा है वह निश्चित रुप

विकास दर में करेक्शन के लिए मन बना ले

- विकास दर थोड़े समय के लिए कम हो सकती है - अर्थव्यस्था से मिल रहे है सकारात्मक संदेश अगली तिमाही में विकास दर सामान्य से बेहतर हो सकती है (अनुराग तागड़े) 9893699969 नोटबंदी को लेकर देशभर में यह आशंकाएं व्यक्त की जा रही थी कि इससे जीडीपी पर असर पडेगा और विकास दर 7 प्रतिशत से नीचे जा सकती है परंतु ऐसा नहीं हुआ और दिसंबर तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 7 प्रतिशत ही रही। इस पर ज्यादा दिनों तक खुशी मनाने की जरुरत नहीं है क्योंकि आगे आने वाले दिनों में जब असल में नोटबंदी के बाद की तिमाही के नतीजे आएंगे तब विकास दर के घटने की पूर्ण संभावना है। यह बात अलग है कि सरकार ने इसके लिए पहले ही मन बना लिया था और बजट की घोषणा पहले ही हो चुकी है जिसका असर इस तिमाही पर पड रहा है जिसके कारण जनवरी और मध्य फरवरी तक नोटबंदी का जो असर पडा है उसे थोड़ा कम किया जा सके। नोटबंदी का असर पड़ा है यह बाजार में भी महसूस हुआ है क्योंकि नोटबंदी की मियाद दिसंबर में समाप्त होने के बाद असल में असर कितना और कैसा पड़ा इसका आंकलन किया जा सका है। बाजारों में व्यापारियों ने अपने हाथ खींच कर रखे थे और केवल बाजारों की बात क्यों

पार्टी मतलब एंन्जॉय...एंन्जॉए मतलब नशा

- गाड़ी में शराब पीने की संस्कृति छीन रही है जिंदगियां 9893699969 इंदौर। संस्कार...संस्कृति...सरोकारवि हीन सोच का सामना जब काल से होता है तब सब कुछ एकाएक जमीन पर पटक कर सच्चाई बताने जैसा होता है...काल अपने साथा मातम लाता है जिसके साथ दु:ख की ग्यारंटी होती है। शहर में शराब पीकर वाहन चलाना आम बात होती जा रही है पर पार्टी के नाम पर एन्जॉय और एन्जॉय का मतलब नशा ही हो गया है।  अपनी सफलता-असफलता पर शहर के युवा इन दिनों शराब की दुकानों के अहातों की ओर दौड़ लगाने लगते हैं। ऐसे अहाते जिनमें वे एन्जॉय ढूंढते हैं। अहाता जिन्हें ठीक नहीं लगता वे कमरों की तलाश में रहते हैं जहां पर बैठकर शराब पी जाए और तब भी बात नहीं बने तो किसी मित्र की गाड़ी में लांग ड्राइव पर जाते हैं और गाड़ी में ही शराब पीते हैैं। गत कुछ दिनों में शहर से बाहर जा रही या आ रही युवाओं की टोलियों ने केवल शराब के कारण अपनी जान गंवाई है। शराब के नशे में कब एक्सिलेटर पर पैर ज्यादा तेज हो जाता है इसका अंदाज ही नहीं लग पाता है और एक्सीडेंट में युवाओं की दर्दनाक मौत हो जाती है। क्या कारण है कि पार्टी का मतलब शराब ही पीना है, क्

बस खटारा फिर भी हम इंटरनेशनल स्कूल

(अनुराग तागड़े) 9893699969 ऐसा लगता है कि गली-मोहल्ले के हर छोटे-बड़े स्कूल शिक्षा के वैश्विकरण की बात कर रहे हैं...बड़े-बड़े वादे और वैश्विक स्तर की सुविधाओं की बातें। स्वयं को ये स्कूल इस तरह से प्रोजेक्ट करते हैं कि केम्ब्रिज, हॉवर्ड जैसे शैक्षिणिक संंस्थान भी पीछे रह जाएंगे। जब इन संस्थानों में अभिभावक जाते हैं तब असलियत से रूबरू होते हैं। मध्यप्रदेश बोर्ड हो या फिर सीबीएसई बोर्ड हो दोनों ही स्कूलों में हालात एक समान ही हैं। सीबीएसई बोर्ड ने भी एकाएक इतनी अनुमतियां दे दी हैं कि सभी स्कूल इंटरनेशनल के नीचे की बात ही नहीं करते भले ही स्कूल की खटारा बसें हिचकोले खाते चल रही हों और लेडी कंडक्टर क्या बिना कंडक्टर के ही चलती हों। बसों में बच्चे भेड़-बकरियों की तरह भरे जाते हैं। केवल बसों की बात क्यों करें, रिक्शा-वैन सभी दूर हालात यही हैं।  स्कूलों में फीस बेतहाशा ली जाती है पर खाने से लेकर खेलकूद तक की सुविधाएं नदारद रहती हैं। इतना ही नहीं स्कूल में अध्यापकों द्वारा पढ़ाई की गुणवत्ता पर ध्यान ही नहीं दिया गया जिसका परिणाम यह हुआ कि गत बीस वर्षों में कोचिंग क्लासेस ने कॉर्पोरेट स्वरू

पहले सुरक्षा तो करो फिर गेहूं पिसवाना

- बुजुर्ग पंचायत विचार अच्छा पर अमल कितना (अनुराग तागड़े) 9893699969 इंदौर। शहर के पश्चिम क्षेत्र का एक थाना क्षेत्र चेन लुटेरो का गढ़ है और वर्षों से यहां पर बुजुर्ग महिलाओं के गले से चेन झपटने की घटनाएं लगातार होती रही हैं...शहर की कई बड़ी टाउनशिप्स और कॉलोनियों में अकेले बुजुर्गों को देखकर हत्या से लेकर लूट की वारदातें लगातार होती आई हैं। इस सभी के बीच पुलिस विभाग बुजुर्गों के लिए नित नई योजनाओं के माध्यम से सुर्खियां बंटोरता रहता है। अकेले रह रहे बुजुर्गोें की सूची बनाने से लेकर उनकी जरुरतों का ध्यान रखना जैसी कम्युनिटी पुलिसिंग की बातें बहुत होती हैं पर असल में ऐसा होता नजर नहीं आता। निश्चित रुप से पुलिस का काम गेहूं पिसवाना तो नहीं है पर पुलिस ने पहल की है तो अच्छी बात है परंतु पहला प्रश्न यहीं उठता है कि पुलिस कप्तान पहले सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था तो कर ले फिर गेहूं पिसवाने की क्या बात है खाना भी खिला देंगे? नगर सुरक्षा समिति के माध्यम से बुजुर्गों की सहायता करने की बातें हो रही हैं पर पहले नगर सुरक्षा समिति को तो ठीकठाक कर लें। असल में जो कार्य करना चाहते हैं ऐसे लोगों

क्या से क्या हो गया लता अलंकरण समारोह

- तीन वर्ष बाद आयोजित करने की तैयारी - केवल खानापूर्ति न बन  जाए समारोह (अनुराग तागड़े) इंदौर। कला संस्कृति को सहेजने वाले इंदौरियों के लिए यह सोच पाना ही बड़ा मुश्किल है कि शहर से आरंभ हुआ लता अलंकरण समारोह इस बार तीन वर्ष के अंतराल के बाद आयोजित किया जा रहा है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि सम्मानित करने के लिए कलाकार ही नहीं मिले। यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि एक साथ तीन कलाकारों को सरकार सम्मानित करेगी जैसे सम्मान की खानापूर्ति की जा रही हो।  एक समय था जब लता अलंकरण समारोह तीन दिन का होता था और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि तीनों दिन एक से बढ़कर एक कलाकार प्रस्तुतियां देते थे। यह समारोह नहीं बल्कि एक अलग प्रकार की संस्कृति शहर में विकसित हुई थी जिसमें लता अलंकरण की प्रतियोगिता के लिए शहर के अलग-अलग हिस्सों के अलावा प्रदेश भर से कलाकार इंदौर आते थे और क्या तैयारी के साथ आते थे। वे अपने साथ अपने क्षेत्र की लोकसंगीत की खुशबू भी शहर में लेकर आते थे और फिर लता अलंकरण के दिन सम्मानित होने वाले कलाकार के पहले विजेता को प्रस्तुति देने का मौका मिलता था। कितना बेहतरीन सबकुछ होता था पर

गोविंदा असल हीरो...या अब तो जीरो

 (अनुराग तागड़े) 9893699969 आ गया हीरो फिल्म लेकर गोविंदा फिर हाजिर है मन में बॉलीवुड के किसी भी कैंम्प का ना होने की कसक लेकर...गोविंदा को असल में मिट्टी से जुड़ा कलाकार मानना होगा क्योंकि उन्होंने अपनी छवि विरार का छोरे के रुप में रखी और आज भी उन्हें इस बात पर गर्व है। गोविंदा गत दस वर्षों से संघर्ष कर रहे है और स्टारडम लेकर संघर्ष कर रहे है यानी दोगुना संघर्ष। एक तरफ हीरो की छवि साथ में पैसो की कमी और फिर अपने आप को बनाएं रखने के लिए सभी प्रकार के हथकंडे अपनाने से दूरी। गोविंदा जैसे फिल्मों में दिखते है असल में उससे भी ज्यादा भोले है और उनका यही भोलापन उन्हें काफी पीछे ले गया है। इंडस्ट्री ने गत दस वर्षों में अपने आप में काफी बदलाव किया है और गोविंदा अपनी मस्ती और अपने भोलेपन में ही रह गए और उनको उबारने वाले सलमान खान काफी आगे निकल गए। एक वक्त था जब अमिताभ बच्चन को पैसो की जरुरत थी और उस समय गोविंदा के सितारे बुलंदी पर थे। गोविंदा और डेविड धवन की जोड़ी याने हिट फिल्म की ग्यारंटी। बड़े मियां छोटे मियां फिल्म करने के बाद अमिताभ और गोविंदा दोनों को फायदा हुआ पर अमिताभ ने इस फिल्म स

डेढ लाख करोड़ का कर्ज फिर भी आनंद मनाने की तैयारी

(अनुराग तागड़े) 9893699969 राज्य सरकार वित्तिय मोर्चे पर लगातार असफल होती नजर आ रही है और आश्चर्य का विषय यह है कि राज्य सरकार लगातार घोषणा पर घोषणा करती जा रही है और खजाने में लुटाने के लिए कुछ भी नहीं है फिर भी वादे आश्वासनों की लंबी फेहरिस्त बनती ही जा रही है। सरकार का आनंद परमानंद में बदल रहा है इस बात से बेफिक्र होकर की अब तक उसने चार हजार 600 करोड़ का कर्ज ले लिया है और अब चुनाव आने वाले है इसलिए वादो पर वादे करना है और कुछ पर अमल भी करना है। सरकार ने आनंद संस्थान भी बना दिया है भले ही राज्य के प्रत्येक नागरिक पर कर्जे का बोझ हो पर वह आनंद संस्थान के माध्यम से अपने कर्जे को भूल जाएगा और परमानंद को प्राप्त होगा। सरकार लोक लुभावन नीति पर चल रही है जिसके कारण वेतन भत्ते हो या अन्य योजनाएं उन पर खर्च हो रहा है और लगातार हो रहा है। आनंद संस्थान इसका उदाहरण है जिसमें लोगो को स्वफूर्त आने के लिए कहा जा रहा है पर प्रत्येक व्यक्ति जिसे आनंद संस्थान का भाग बनाया जाएगा उसे सरकार पैसा तो देगी ना? अब सरकार सातवें वेतन आयोग के अनुरुप कर्मचारियों को पैसा देने की तैयारी कर रही है पर क्या