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जनवरी, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कलाकार के साथ उसके परिवार के संघर्ष को भी देखे

कलाकार के साथ उसके परिवार के संघर्ष को भी देखे - असफलता जितनी जल्दी मिले कलाकार उतनी जल्दी सत्य से सामना करता है - भाऊ कदम के ’कदम’आज भी जमीं पर (अनुराग तागड़े) इंदौर। कलाकार अलग माटी के बने होते है और ख्यात अभिनेता और बेहतरीन इंसान भाऊ कदम बिल्कुल अलहदा व्यक्तित्व के धनी है। सानंद फुलोरा के अंतर्गत सुवर्ण मराठी कार्यक्रम में प्रस्तुति देने शहर आए भाऊ कदम जिंदगी की सच्चाई को बेहद करीब से जानते है इस कारण वे सिटी भास्कर से विशेष साक्षात्कार के दौरान यह जरुर कहते है कि सफलता अपने साथ जिम्मेदारी लाती है और मुझे इस बात का एहसास है। आज भी परिवार की खातिर अभिनय छोड़ नौकरी करने की इच्छाशक्ति रखने वाले इस कलाकार पर स्टारडम बिल्कुल भी हावी नहीं है और सही मायने में उनके कदम आज भी जमीं पर ही है। भाऊ कदम ने विभिन्न मुद्दो पर बात की: टाइमिंग और इम्प्रोवाईजेशन में ध्यान रखना बेहद जरुरी: भाऊ कदम ने कई मराठी फिल्मों और धारावाहिको में काम किया है और वर्तमान में जी मराठी के प्रसिद्ध शो चला हवा येऊ द्या में प्रमुख भूमिका निभा रहे है। भाऊ कदम के अभिनय अलग है और कॉमेडी में टाईमिंग और इम्प्रवोवा

प्रतिभा पर्व की निरंतरता बनी रहे

प्रतिभा पर्व की निरंतरता बनी रहे (अनुराग तागड़े) प्रजातांत्रिक मूल्यों को आम जनता में लगातार स्थापित करने के प्रयास में किसी भी सरकार को लगातार योजनाओं और घोषणाओं का सहारा लेना पड़ता है। इन योजनाओं में कई समय के अनुरुप होती है और कई योजनाओं को भुला भी दिया जाता है। मध्यप्रदेश सरकार ने स्कूल चलें हम अभियान के तहत प्रतिभा पर्व का आयोजन किया है और गत कई वर्षोंं से यह आयोजन होता आ रहा है और यह इस अभियान की सफलता का एक पक्ष भी रहा है। अक्सर शिक्षा के क्षेत्र में खासतौर पर स्कूली शिक्षा की ओर राज्य सरकारों का ध्यान कम ही जाता है और केवल खाने,गणवेश और साईकिल बांटने के बाद शिक्षा की गुणवत्ता पर किसी का ध्यान नही जाता है। सरकारी स्कूलों में प्रतिभाओं की खोज अपने आप में नकारात्मकता लिए नजर आता है क्योंकि सरकारी स्कूल में पढ़ने जाना या सरकारी स्कूल में बच्चा पढ़ा है यह बात हम लोगो के बीच सहज ग्राह्य नहीं होती। हमारे माता पिता सरकारी स्कूलों में पढ़े है और वे उस जमाने की बातें भी खूब बताया करते है कि फलां मास्टरजी का ऐसा दबदबा था कि उन्हें देखते ही स्कूल में सन्नाटा छा जाता था या यह भी कहा जाता ह

अनुशासित दर्शको की सानंदी मिसाल

अनुशासित दर्शको की सानंदी मिसाल - देशभर के कलाकार देते है इंदौर का उदाहरण - दस मिनट से लेकर डेढ़ घंटे की देरी पर भी अनुशासन बना रहता है (अनुराग तागड़े) इंदौर। कल्पना किजिए कि आप थियेटर में फिल्म देखने बैैठे है और अचानक लाईट चली जाए तब क्या होगा? निश्चित रुप से आप कहेंगे कि टॉकिज में जमकर सीटियां बजेंगी और जल्दी लाईट नहीं आई तब हुडदंग भी हो सकता है और सीटे फटने की ग्यारंटी। सामान्यतौर पर किसी भी कार्यक्रम में अव्यवस्था होने पर आयोजको को दर्शको से खूब सुनना पड़ती है फिर ध्वनि व्यवस्था खराब हो या फिर बैठने की व्यवस्था ठीक नहीं हो। इंदौर शहर कला कद्रदानो के लिए जाना जाता है हम स्वर को ब्रह्म और  शब्दों को सरस्वती की तरह पूजने के लिए जाने जाते है। हमारी तासीर ऐसी है कि हम अल सुबह पांच बजे भी कार्यक्रमों में पहुंचते है और देर रात तक शास्त्रीय संगीत की महफिल में भैरवी सुनने के बाद कलाकार को ग्रीन रुम में मिलकर फिर घर लौटते है। कलाकारो को भी इंदौरी दर्शक खूब भाते है क्योंकि वे जानते है कि इंदौरी दर्शक दर्दी है और कलाकारों व आयोजको को सहयोग करना जानते है परंतु सानंद के दर्शकवर्ग ने इस सहयोग को नए

सानंद ती फुलराणी

सानंद के मंच पर ती फुलराणी का मंचन ऐसा नाटक जिसे बार बार देखने का मन करता है - ऐेसा क्लासिक नाटक जो मनोरंजन की सभी शर्ते पूर्ण करता है - हेमांगी कवि का अभिनय प्रभावित कर जाता है - कलाकारों ने भी सेट लगाने में मदद की (अनुराग तागड़े) इंदौर। मराठी नाटकों में ती फुलराणी एक ऐसा नाटक है जिसकी चमक पीढ़ियों तक बरकरार रही और अब भी वह चमक वैसी ही है। दर्शको को लगातार हंसाने और मनोरंजन करने वाले नाटको की संख्या कम है और कोई नाटक लगातार कई वर्षों से आपका मनोरंजन करते आए तब आपको उस नाटक की आदत हो जाती है और कहानी पात्र सभी कुछ याद होने के बाद भी मनोरंजन के उस एक्स फैक्टर को ढूंढने के लिए आप उस नाटक को देखते जरुर है। सानंद के मंच पर मंचित  ती फुलराणी पु.ल देशपांडे द्वारा लिखा गया है जो कि  जॉज बनार्ड शॉ के पिग्मॅलियन नाटक पर आधारित है। वैसे माय फेयर लेडी अंग्रेजी फिल्म हो  या फिर अन्य भाषाओं में लिखित कुछ इस तरह के ही नाटक हो सभी काफी प्रसिद्ध हुए है पर ती फुलराणी नाटक अपने आप में दर्शको को ग्यारंटेड मनोरंजन पेश करता है और आप बार बार इस मनोरंजन में खो जाने के लिए तैयार भी रहते है क्योंकि

पाकिस्तान के मंदिर

पाकिस्तान के मंदिर जहां पर रामजी ने भी की थी तपस्या - पहले लगती थी खूब भीड़ अब है खंडहर - शिवजी और हनुमानजी के मंदिर भी हैं भारत-पाक के बीच तनाव बढ़ने के साथ ही पाक में स्थित मंदिरों को लेकर भी बातें सामने आती रहती हैं। वर्तमान में बलूचिस्तिान को लेकर भारत में चर्चाएं हो रही हैं और वहां पर शक्तिपीठ भी हैं। बलूचिस्तान की आजादी को लेकर अब माहौल भी बनने लगा है। यही कारण है कि अब पाकिस्तान में स्थित प्रचलित मंदिरों को लेकर लोगों में उत्सुकता भी बढ़ रही है और हमें भी अपने इतिहास व संस्कृति के बारे में पता होना चाहिए कि हमारी धार्मिक विरासत कहां तक फैली थी।  पाकिस्तान में सबसे बड़ा मंदिर शिवजी का कटासराज मंदिर है, जो लाहौर से 270 किमी की दूरी पर चकवाल जिले में स्थित है। इस मंदिर के पास एक सरोवर है। कहा जाता है कि मां पार्वती के वियोग में जब शिवजी के आंखों से आंसू निकले तो उनके आंसूओं की दो बूंदें धरती पर गिरीं थीं। आंसूओं की यही बूंदें एक विशाल कुंड में परिवर्तित हो गईं। इस कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से मानसिक शांति मिलती है और दु:ख-दरिद्रता से छुटकारा मिलता है।

कॉट्रेक्ट थ्योरी

केवल कारपोरेट वर्ल्ड तक सीमित नहीं कॉट्रेक्ट थ्योरी (अनुराग तागड़े) भारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में नोबल प्राईज विजेता अर्थशास्त्री ओलिवर हर्ट तथा बेंग्ट होल्मस्ट्राम की कॉट्रेक्ट थ्योरी काफी महत्वपूर्ण है। कॉट्रेक्ट थ्योरी अर्थशास्त्र और उसके परे जाकर भी बाते करती है और असल में व्यक्ति,समूह के हितो की बात करती है। वह नियोक्ता के हित की भी बात करती है और नौकरी करने वाले के हित को भी ध्यान रखती है। यह केवल कानूनी रुप से दो लोगो के बीच हुए समझौते की बात नहीं करती बल्कि उसके आगे जाकर प्रेरणा देने की बात भी करती है और एक तरह से यह सभी पक्षो के विकास की बात करती है ताकि सभी साथ में आगे बढ़े और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ ही संपूर्ण लक्ष को भी प्राप्त करे। अर्थशास्त्र में अब तक कॉट्रेक्ट थ्योरीज को संतुलन के आधार पर देखा जाता था कि किस प्रकार से दो पक्षो को संतुष्ट किया जा सकता है और अधिकांश लोग यही समझते थे कि यह कानूनी स्वरुप को आसानी से समझने का अर्र्थशास्त्र का तरीका है जबकि नोबल विजेताओं द्वारा दी गई थ्योरी एक तरह से अर्थशास्त्र के साथ साथ समाजशास्त्र की बात भी करती ह

शास्त्रीय संगीत

शास्त्रीयता को दायरे में न बांधे...खुलकर विशेषताओं को सामने रखे (अनुराग तागड़े) शास्त्र को संदर्भ के रुप में ही देखने की आदत हमें डाली गई है पता नहीं क्या कारण है पर शास्त्र याने बड़ी पोथियों को कपड़ो में लपेट कर घर की सबसे महफूज जगह पर रख देना और जब जरुरत हो तभी उसकी धूल को हटाकर थोडी मात्रा में ज्ञान लेना और उसका उपयोग करना। शास्त्रीय संगीत की स्थिति मध्यप्रदेश में ठीक वैसी ही है राज्य सरकार अपनी ओर से पुरस्कारों की घोषणा कर देती हैै और आयोजन कर देती है। कलाकार भी आते है कार्यक्रम देते है मीडिया में बाते होती है और बातों के अलावा कुछ नहीं होता। शास्त्रीय संगीत की विशेषताओंं को आम जनता के सामने लाने के लिए प्रयत्न शून्य है क्योंंकि राज्य सरकार कलाकारों के लिए मंच प्रदान जरुर करती है पर केवल राजधानी के कलाकारों के लिए। हमें जब अपने संगीत संस्कृति और संस्कारों की बात करनी हो तब शास्त्रीय संगीत का नाम लेकर हम छाती ठोकते है पर जब इसके संवर्धन की बात आती है तब कोई बात नहीं करता। कागजों पर शास्त्रीय संगीत को राज्य सरकार आगे बढ़ाने के लिए नित नए कार्यक्रम आयोजित करती है परंतु जिस प्रकार से

नर्मदा सेवा यात्रा

नर्मदा सेवा यात्रा  केदार खंड के साथ ही रेवा खंड का अपना अलग महत्व है - साधु संतो में दोनो ही खंड प्रसिद्ध है - आज भी कई साधु एकांत में तपस्या कर रहे है नर्मदा किनारे (अनुराग तागड़े) मां नर्मदा अपने आप में कई रहस्यों को आज भी समेटे हुए है चाहे वह परकम्मावासियों(परिक्रमा वासी) के अनुभव हो या फिर नर्मदापुराण में वर्णित बाते हो...मां नर्मदा अद्भुत,अलौकिक है। साधु सन्यासियों की बात की जाए तब सभी को केदार खंड दिल से पसंद है क्योंकि वहां पर साक्षात नारायण का निवास है। केदार खंड में बद्रीनाथ केदारनाथ व अन्य तीर्थ स्थल आते है। उत्तराखंड स्थित केदारखंड अपने आप में पवित्रता की परिभाषा है और सही मायने में देवभूमि ही है। यहां पर हिमालय का आकर्षण है और कई ऐसे गुप्त स्थान है जहां पर साधु संत लगातार तपस्या करते रहते है।  दरअसल केदारखंड का अपना अलग ही महत्व है और यहां पर जप तप नियम से करने पर जल्द ही अनुभूतियां होती है। बद्रीनाथ,केदारनाथ,गंगोत्री, जमनोत्री के अलावा इनके आसपास की बड़ी पहाड़ियों पर गुफाओं में कई साधु संत मिल जाएंगे और जब इन महानआत्माओं से बात होती है तब सहज रुप से मध्यप्रदे

अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के लिए वैसी मानसिकता भी चाहिए

अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के लिए वैसी मानसिकता भी चाहिए (अनुराग तागड़े) अंतरराष्ट्रीय स्तर अगर कोई हवाई अड्डा संचालित हो रहा है तब उसके लिए कई अलग प्रकार के नियम होते है और वैसी सुविधाएं भी होती है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इंदौर हवाई अड्डे से अंतरराष्ट्रीय उड़ाने आरंभ करने की बात की है। दरअसल यह बाते गत पांच छ: वर्षों से चली आ रही है पर इन पर अमल होता है। हमें इस बात को सबसे पहले स्वीकारना होगा कि इंदौर और भोपाल से विदेश जाने वाले लोगो की संख्या इतनी नहीं है कि रोजाना की उड़ाने भरी जा सके। इसके अलावा हम संपूर्ण देश के विभिन्न शहरों से अच्छी तरह से घरेलू उड़ानो के माध्यम से जुड़ जाए तब भी काफी सुविधा हो सकती है। इंदौर में हर बार इन्वेस्टर्स मीट आयोजित होती है और हर बार हवाई अड्डे से उद्योगो के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर कार्गो डिपो आरंभ करने की बातभी होती है। कंपनिया चाहती है कि वे अपने उत्पादों को सीधे विदेश भेजे। दवाईयों से लेकर खानपान और अन्य सामानों को इंदौर से सीधे मध्यपूर्व व अन्य देशों को भेजने की बातें भी खूब हुई है परंतु इतने वर्षों में कभी भी इस पर अमल नहीं हो पाया

सामाजिक परिवर्तनों के दौर में दम तोड़ती दकियानूसी सोच

सेकंड मैरेज सामाजिक परिवर्तनों के दौर में दम तोड़ती दकियानूसी सोच - लड़कियां स्वयं के लिए पिता और मां के लिए पति खोज रही है - नई सोच का समाज में भी स्वागत हो रहा है (अनुराग तागड़े) इंदौर। सामाजिक परिवर्तन क्रांती से होते है और यह क्रांती अगर मौन हो तब परिवर्तन आपके सामने कब आ जाते है आपको पता ही नहीं चलता। किसी भी लड़की के लिए शादी याने जिंदगी में परिवर्तन लाने वाला आनंद उत्सव रहता है परंतु अगर शादी के दस से पंद्रह वर्ष बाद अगर पति की मौत हो जाए तब महिला के लिए जीवन मरण का प्रश्न उत्पन्न हो जाता है क्योंकि गृहस्थी एक ऐसे मोड़ पर रहती है जहां पर सबकुछ सामने आकार तो लेते रहता है पर पूर्णता नहीं रहती है। अधुरे सपनों को नए धागों में पिरोने की हिम्मत भी महिला में नहीं रहती और भाग्य को कोसने और सारी जिंदगी विधवा का टैग लगाए जीने के अलावा कोई विकल्प सामने नहीं रहता। अगर महिला पढ़ी लिखी हो तब भी उसके सामने सुरक्षा यह मुद्दा काफी महत्वपूर्ण रहता है और कार्यस्थल से लेकर घर तक सभी दूर उसे बहुत कुछ सहन करना पड़ता है। परंतु अब समाज में इस प्रकार के उदाहरण भी सामने आने लगे है जिसमें सामाजिक परि

सुख के रिश्तें

दिल के किसी कोनें में दु:ख छिपा बैठा रहता है और हमारी इच्छा यही रहती है कि दु:ख उसी कोने में पड़ा रहे। वहीं र् सुख को हम अपनी सिर पर बैठा कर नचाते है और कामना करते है कि सुख नाचता रहे और अब भी उसकी धुन पर नाचते रहे। सुख क्या है? क्या कभी विचार किया की आखिर सुख क्या ज्यादा पैसा कमाने में ? किसी से प्रतिस्पर्धा में जीतने में ? या किसी को दु:ख देने में है? कई व्यक्ति होते है जिन्हें दुसरों को दु:ख देने में ही सुख मिलता है। ऐसे लोगों की संख्या कम है पर है जरुर। सुख हम घर पर ढूंढते है अपने रिश्तों में अपने माता पिता, बच्चों , पत्नी की खुशियों में याने अपने घर की खुशियों में। घर की खुशियां हमारे लिए सर्वोपरी है। इसी के लिए तो व्यक्ति दिन रात मेहनत करता है कि घर में खुशियां भरी रहे और सुख ही सुख पसरा रहे। रिश्तों में जरा सा असंतुलन हमारी सुख की कल्पनाओं को झकझोर देता है। हम स्वयं सोचने लगते है कि यह असंतुलन क्यों हुआ और कहा कमी रह गई। घर पर आपसी रिश्तों में जहाँ प्रेमभाव रहता है वही समय के साथ साथ कभी कड़वाहट भी आ जाती हैं। कभी मनमुटाव भी होता है पर व्यक्ति परिवार टूटने के डर से इस मनम