परमात्मा का भेद जानने की ओढ
(अनुराग तागड़े) मन को नियंत्रित करने की बातें सुनने में काफी अच्छी लगती है पर कम लोग ही नियंत्रण की बात को आत्मसात कर पाते है। यह राह अपने आप में बिरली है जिस पर चल पाना हरेक के बस की बात नहीं है क्योंकि नियंत्रण हम आदतों पर नहीं कर पाते तब मन के नियंत्रण की बात बहुत दूर हो जाती है। मन को चंचल कहा गया है पर असल में मन का स्वरुप सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रहता है जैसे हीरो और विलेन फिल्मों में रहते है वैसे ही मन की अवस्था भी होती है वह किसी भी घटना को लेकर तत्काल आपको उसके सभी पक्षों से अवगत करवा देता है। और अवगत करवाने वाली प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस परिवेश में पले बढ़े है और आप किस वातावरण में रह रहे है। मन आदत में पड़ जाता है पर उस दौर में भी आपको लगातार अपनी बात बताता रहता है यह बात अलग होती है कि हम सुनते नहीं है। इन सभी बातों के बीच जब मन को नियंत्रित करने की बात आती है तब मन विद्रोही तेवर ही अपना लेता है व नियंत्रित नहीं होना चाहता वह आवारागर्दी करने लगता है और कई बार बावले की तरह हरकतें भी करता है। वह अपने घोड़े दौड़ाने में ज्यादा विश्वास करता है और बार बा...