पहले सुरक्षा तो करो फिर गेहूं पिसवाना


- बुजुर्ग पंचायत विचार अच्छा पर अमल कितना
(अनुराग तागड़े)
9893699969
इंदौर। शहर के पश्चिम क्षेत्र का एक थाना क्षेत्र चेन लुटेरो का गढ़ है और वर्षों से यहां पर बुजुर्ग महिलाओं के गले से चेन झपटने की घटनाएं लगातार होती रही हैं...शहर की कई बड़ी टाउनशिप्स और कॉलोनियों में अकेले बुजुर्गों को देखकर हत्या से लेकर लूट की वारदातें लगातार होती आई हैं। इस सभी के बीच पुलिस विभाग बुजुर्गों के लिए नित नई योजनाओं के माध्यम से सुर्खियां बंटोरता रहता है। अकेले रह रहे बुजुर्गोें की सूची बनाने से लेकर उनकी जरुरतों का ध्यान रखना जैसी कम्युनिटी पुलिसिंग की बातें बहुत होती हैं पर असल में ऐसा होता नजर नहीं आता। निश्चित रुप से पुलिस का काम गेहूं पिसवाना तो नहीं है पर पुलिस ने पहल की है तो अच्छी बात है परंतु पहला प्रश्न यहीं उठता है कि पुलिस कप्तान पहले सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था तो कर ले फिर गेहूं पिसवाने की क्या बात है खाना भी खिला देंगे? नगर सुरक्षा समिति के माध्यम से बुजुर्गों की सहायता करने की बातें हो रही हैं पर पहले नगर सुरक्षा समिति को तो ठीकठाक कर लें। असल में जो कार्य करना चाहते हैं ऐसे लोगों को समिति में शामिल किया जाए ताकि वे कॉलोनियों में सही मायने में जाकर अकेले रह रहे बुजुर्गों की जानकारी दे सकें। 
कागजों पर गेहूं पिसवाना काफी अच्छा नजर आता है और एक अलग तरह की छवि बनती नजर आती है पुलिस की पर पुलिस का मूल कार्य सुरक्षा देना है पहले उसकी बात करें....सरेआम बुजुर्ग महिलाओं के गले से सोने की चेन झपट ली जाती है...फ्लैट में रह रहे बुजुर्ग की हत्या हो जाती है। कम्युनिटी पुलिसिंग के प्रति इंदौर पुलिस का नजरिया सकारात्मक है पर समस्या इसे लागू करने की ही है। इसके पहले भी इस प्रकार की पहल हो चुकी है पर पुलिस कप्तान के जाते ही योजनाएं फिर बंद हो जाती हैं। पुलिस को न केवल अकेले रह रहे बुजुर्गों के प्रति संवेदना जताना चाहिए बल्कि मॉर्निंग वॉकर्स ग्रुप में जाकर प्रत्येक बुजुर्ग की राय लेना चाहिए कि वे किस प्रकार की सुरक्षा या सुविधा चाहते हैं। इतना ही नहीं बुजुर्ग पंचायत और जनसुनवाई में कलेक्ट्रेट आने वाले बुजुर्गों के बीच लिंक भी स्थापित होना चाहिए क्योंकि जनसुुनवाई में अक्सर इस प्रकार की घटनाएं सामने आती हैं जिनमें बेटा और बहू माता-पिता को प्रताड़ित करते हैं जायदाद के लिए या अन्य कई कारण सामने आते रहते हैं। अगर इंदौर पुलिस सही मायने में बुजुर्गों के प्रति इतनी संवेदनशील है तब कॉलोनियों में उनकी सुरक्षा की व्यवस्था करे...तेज गति से युवाओं द्वारा चलाई जा रही मोटरसाइकलों को नियंत्रित करे...शहर की सड़कें बुजुर्गों के चलने के लायक बनाए...लंबी सड़कों पर बुजुर्गों के बैठने के लिए बैंच लगाए...पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग किस तरह बुजुर्ग आसानी से कर पाएं इस ओर भी ध्यान दिया जाए।
 शहर के मध्यक्षेत्र से लेकर बायपास और आसपास बसी टाऊनशिप्स में ऐसे कई बुजुर्ग दंपति मिल जाएंगे जो अकेले रह रहे हैं और जिनके बच्चे विदेशों में बस गए हैं ऐसे बुजुर्गो की सूची भी पुलिस के पास रहना चाहिए। विदेश में बसे उनके बच्चों के मोबाइल नम्बर भी पुलिस के पास होना चाहिए क्योंकि किसी भी घटना-दुर्घटना की स्थिति में पुलिस को समझ में नहीं आता कि इनके लिए किससे संपर्क करें। पुलिस की बुजुर्ग पंचायत की पहल अच्छी है पर यह केवल कागजों पर न रह जाए इसके लिए प्रयास करना बेहद जरूरी है वर्ना यह योजना भी पूर्ववर्ती योजनाओं की तहत कुछ समय बाद डिब्बे में बंद हो जाएगी।

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