गोविंदा असल हीरो...या अब तो जीरो


 (अनुराग तागड़े)
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आ गया हीरो फिल्म लेकर गोविंदा फिर हाजिर है मन में बॉलीवुड के किसी भी कैंम्प का ना होने की कसक लेकर...गोविंदा को असल में मिट्टी से जुड़ा कलाकार मानना होगा क्योंकि उन्होंने अपनी छवि विरार का छोरे के रुप में रखी और आज भी उन्हें इस बात पर गर्व है। गोविंदा गत दस वर्षों से संघर्ष कर रहे है और स्टारडम लेकर संघर्ष कर रहे है यानी दोगुना संघर्ष। एक तरफ हीरो की छवि साथ में पैसो की कमी और फिर अपने आप को बनाएं रखने के लिए सभी प्रकार के हथकंडे अपनाने से दूरी। गोविंदा जैसे फिल्मों में दिखते है असल में उससे भी ज्यादा भोले है और उनका यही भोलापन उन्हें काफी पीछे ले गया है। इंडस्ट्री ने गत दस वर्षों में अपने आप में काफी बदलाव किया है और गोविंदा अपनी मस्ती और अपने भोलेपन में ही रह गए और उनको उबारने वाले सलमान खान काफी आगे निकल गए। एक वक्त था जब अमिताभ बच्चन को पैसो की जरुरत थी और उस समय गोविंदा के सितारे बुलंदी पर थे। गोविंदा और डेविड धवन की जोड़ी याने हिट फिल्म की ग्यारंटी। बड़े मियां छोटे मियां फिल्म करने के बाद अमिताभ और गोविंदा दोनों को फायदा हुआ पर अमिताभ ने इस फिल्म से आगे की सौ सीढ़ियों को कैसे पार करना है इसकी योजना बना ली थी क्योंकि वे आर्थिक रुप से कंगाल हो चुके थे और उन्हें अपने आप को फिर से स्थापित करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ रहा था। वही गोविंदा सफलता का स्वाद पेटभर चखने के बाद आलस्य को अपना गए और सफलता के एक शिखर पर से उन्होंने दूसरे शिखर की ओर देखने की जहमत नहीं उठाई। गोविंदा और करिश्मा कपूर की जोड़ी लगातार हिट होती रही पर बाद में गोविंदा ने अपने आप को केवल एक ही तरह के किरदारों में ढालना आरंभ कर दिया था। गोविंदा,कादरखान,करिश्मा कपूर ये तीनों ही एक ही नाव में सवार थे और सभी निश्चिंत थे कि अब हमारी पास अक्षय ऊर्जा है जिसके बल पर हम समुद्र का सीना कितना भी और किसी भी दिशा में चीर सकते है पर समय बड़ा बलवान होता है और नए तरह के सिनेमा का उद्भव हो चुका था जो आधुनिक था और रियेलिस्टिक था। गोविंदा को यह बताने के लिए कोई नहीं था कि अब कॉमेड़ी का ऐसा दौर लंबा नहीं चलने वाला बल्कि समय के अनुरुप अपने आप में बदलाव करो और लगे तो युवा हीरो के साथ भी काम करने से हिचकने की जरुरत नहीं है। गोविंदा के पास केवल एक्टिंग का ही दम नहीं था बल्कि गोविंदा का असल टेलेंट उनका नृत्य कौशल था...परंतु उन्होंने आधुनिक दौर में न रितिक रोशन के साथ या शाहिद कपूर के साथ या अन्य डांस में माहिर सितारों के साथ कुछ नया करने का सोचा। इतना ही नहीं उन्होंने अपने आप को परीक्षा देने से बचाया क्योंकि वे अपने एक ऐसे सुरक्षित दायरे में बने हुए थे जहां से बाहर का कुछ भी नजर नहीं आ रहा था। लगातार स्टारडम खोते जा रहे गोविंदा को फिल्में करने की आदत अस्सी और नब्बे के दशक की लगी हुई थी जिसमें सेट्स पर देरी से आना यहां तक की सेट पर वे पांच छ: घंटे लेट तक आते थे जिससे निर्माताओं के मन में उनकी छवि नकारात्मक बनती गई। फिल्में मिलना बंद हो गई और गोविंदा के पास आर्थिक समस्या भी आ गई क्योंकि लगातार हीरो जैसा बनने के लिए वैसी लाईफस्टाईल में बने रहना पड़ता है और ऐसे दौर में सलमान खान ने पार्टनर फिल्म में उन्हें लेकर उन पर जैसे उपकार ही किया था। पार्टनर फिल्म खूब चली पर गोविंदा इस सफलता को भुना नहीं पाए क्योंकि गोविंदा अपने आप को बदल नहीं पाएं। समय के अनुसार चलने की बजाए उन्होंने समय को अपने अनुरुप ढालने का प्रयत्न किया और मात खा गए। गोविंदा अब यह कह भी रहे है कि वे बॉलीवुड में किसी कैंम्प के नहीं हुए जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है पर प्रश्न यह उठता है कि जब सफलता के शिखर पर थे तब भविष्य के बारे में रियेलिस्टिक होकर उन्होंने क्यों नहीं सोचा। गोविंदा अमिताभ का भी उदाहरण देते है कि किस प्रकार से अमिताभ को भी किसी कैंम्प का नहीं होने के कारण आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा पर अमिताभ ने अपने आप में बदलाव किया और समय के अनुरुप वे सोशल मीडिया से लेकर तमाम सभी आधुनिक प्रचार माध्यमों का प्रयोग कर आगे बढ़ते गए। अमिताभ ने प्रयोग किए जबकि गोविंदा ऐसा कुछ भी नहीं कर पाएं जिसके कारण वर्तमान में यह स्थिति हो गई है कि वे अपनी फिल्म लो आ गया हीरो के गाने भी खुद ही लिख रहे है एक्टिंग भी कर रहे है और निर्माता भी खुद ही है। गोविंदा को अब यह भी समझना होगा कि उनकी उम्र 53 वर्ष की हो गई है और इंडस्ट्री के अनुसार वे अब हीरो नहीं है और इंडस्ट्री में 60 पार के अभिनेताओं को छोटे मोटे किरदारों के अलावा कुछ नहीं मिल पाता सिवाए अमिताभ के जो अब भी व्यस्त है और लगातार प्रयोग करने से हिचकिचाते नहीं है। गोविंदा का अपने आप को इंडस्ट्री में बनाएं रखने का यह अंतिम मौका है जिसके बाद उनके पास आर्थिक रुप से कुछ बचेगा नहीं इस कारण उन्हें अब सोचना चाहिए और समय के अनुरुप अपनी अभिनय क्षमताओं का विकास करना चाहिए और इंडस्ट्री के अनुरुप अपने आप को ढालना लेना चाहिए वरना यह इंडस्ट्री बड़ी बुरी है जो असफल व्यक्ति को देखना भी नहीं चाहती...सहारा और सहायता करना तो दूर की बात है।

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