मालिश वाले दादा भी बने डॉक्टर


-झोलाछाप डॉक्टरों की बढ़ती संख्या
(अनुराग तागड़े)
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इंदौर। प्रशासन की ढीलपोल का फायदा उठाते हुए शहर और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में झोलाछाप डॉक्टरों की संख्या काफी तेजी से बढ़ती जा रही है। लगातार शिकायतें मिलने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाना अपने आप में आश्चर्य का विषय है।
दरअसल प्रशासन को आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) ने भी 200 से भी ज्यादा झोलाछाप डॉक्टरों की सूची सौंपी है जिसमें क्लिनिक के फोटो के अलावा उनके नाम आदि का भी जिक्र किया गया है।
तरह तरह के डॉक्टर
शहर के आसपास कई ऐसे डॉक्टर मौजूद हैं जो शाम को ही प्रेक्टिस करते हैं तथा दिन में कोई और काम करते हैं याने दिनभर में वे जो कुछ भी करें पर शाम को मालिश वाले डॉक्टर बन जाते हैं। अब मालिश करने वाले ही डॉक्टर बन जाएं तब आप समझ सकते हैं कि क्या होगा? ये बाकायदा दवा भी लिखते हैं। इसके अलावा दवाओं की थोड़ी बहुत जानकारी रखने वाले भी अपने आप को डॉक्टर से कम नहीं समझते और अपने पर्चे पर नाम के साथ बाकायदा डॉक्टर लिखते हैं तथा दवा भी देते हैैं।
दवा का बिजनेस आकर्षित करता है
दरअसल संपूर्ण मामला दवाओं पर मिलने वाले कमीशन से भी जुड़ा है। मालिश करने वालों से लेकर फार्मा क्षेत्र से जुड़े कई लोग अपने आप को डॉक्टर कहलवाने लगते हैं और दवाएं पर्चे पर लिखते हैं। दवा कंपनियों को अपने उत्पाद बेचने के लिए मेडिकल रिप्रेजेंटेटिव रखना पड़ते हैं। ये एम.आर. ग्रामीण क्षेत्रों में जाते हैं और दवाओं का प्रचार करते हैं। इनके लिए इस प्रकार के डॉक्टर काफी आसान लक्ष्य हो जाते हैं। इन्हें कमीशन का लालच दिया जाता है और दवा के बारे में जानकारी दी जाती है। यह संपूर्ण जानकारी एम.आर. द्वारा ही तथाकथित डॉक्टर को दी जाती है। जानकारी सही है या नहीं इस पर डॉक्टर ध्यान नहीं देता क्योंकि उतना उसे ज्ञान ही नहीं होता। उसे महीने दो महीने का लक्ष्य दिया जाता है कि फलां कफ सीरप या गोलियां अगर इतने मूल्य की लिख देंगे तब आपको इतना कमीशन मिलेगा। ये झोलाछाप डॉक्टर कमीशन कमाने के चक्कर में दवा लिखते रहते हैं और जिसे जरुरत नहीं होती है उसे भी दवा लिख देते हैं। 
बंगाली डॉक्टरों की भी अच्छी खासी संख्या
बंगाल से डॉक्टरी की डिग्री हासिल किए बंगाली डॉक्टरों की भी अच्छी खासी संख्या मिल जाती है। इनकी डिग्रियां कितनी सही हैं यह जांच के बाद ही पता चलता है पर ये तथाकथित डॉक्टर प्रशासन की कार्रवाई होने की आहट होने पर तुरंत दुकान बंद करके बंगाल चले जाते हैं या गायब हो जाते हैं। बाद में फिर दुकानदारी आरंभ हो जाती है। 
बॉटल लगाने के नाम पर बड़ा बिजनेस
ग्रामीण क्षेत्र में तो कई तथाकथित डॉक्टरों ने अपने क्लिनिक को ही मिनी नर्सिंग होम की शक्ल दे दी है। ये डॉक्टर हरेक मरीज को बॉटल लगाने के नाम पर लूटते हैं। जिन्हें किसी भी तरह की जरुरत नहीं होती उन्हें भी बॉटल लगाते हैं जिसमें कोई दवा नहीं होती है। अब ग्रामीण क्षेत्रों की भोलीभाली जनता का यह मानस ही बन चुका है कि बिना बॉटल लगाए वे ठीक ही नहीं होंगे और यही कारण है कि मरीज स्वयं ही बोलने लगता है कि डॉक्टर साहब मुझे तो बॉटल लगा दो...जल्दी ठीक होना है। 
कमाई का ये साधन भी
दवाईयों और मरीजों को जबरन बोतलें लगाने के अलावा इन झोलाछाप डॉक्टरों की कमाई का सबसे बड़ा जरिया होता है गांवों से शहर में मरीज भेजना। शहर में मौजूद बड़े-बड़े फाईव स्टार अस्पतालों में ग्रामीण क्षेत्र के मरीज यूं ही थोड़े पहुंच जाते हैं बल्कि गांव में ये झोलाछाप डॉक्टर इन अस्पतालों के स्थायी एजेंट होते हैं। वे लगातार इस फिराक में रहते हैं कि कौन से मरीज को शहर में भेजा जाए ताकि प्रत्येक मरीज पर उन्हें भी अस्पताल की ओर से मोटा कमीशन मिले। प्रशासन के पास जब इस प्रकार के झोलाछाप डॉक्टरों की सूची है तब कार्रवाई नहीं करना प्रशासन पर सवालिया निशान लगाता है। 
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