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सितंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बधाई हो मन्न्ा दा

मन्न्ा डे को दादा साहेब फाल्के अवार्ड देने की घोषणा हुई है। यह घोषणा वर्ष 2007 के लिए है परंतु मुझे लगता है कि मन्न्ा दा जैसे गायक को यह काफी पहले ही मिल जाना था। मन्न्ा डे ने शास्त्रीय संगीत पर आधारित कई गीत गाए है वही मेहमूद के लिए कई कॉमेडी गीतों को भी गाया है। मन्न्ा दा की आवाज में न जाने क्या जादू है कि उनके गाए सभी गीत अच्छे लगते है। उन्होंने अपने आप को आधुनिक संगीत के अनुसार ढालने की बहुत कोशिश जरुर की परंतु हमे तो आज भी सुर ना सजे वाले मन्न्ा डे ही पसंद है। मो.रफी साहब भी अपने चाहने वालो को यह कहते थे कि आप हमारे चाहने वाले है पर हम मन्न्ा डे के गाने सुनते है। सीधे व्यक्त्तिव वाले मन्न्ा डे ने कई भाषाओं में गीत गाए है । इनमें कई गीत ऐसे ही कि आज भी सुनने पर आंखो से आंसू आ जाएँ। ऐ मेरे प्यारे वतन गीत को ही ले इस गीत के बोल जितने सुंदर उतनी ही इसकी धुन है और उस पर मन्न्ा डे साहब की आवाज । यह गीत काफी धीमी गति से चलता है पर इस धीमी गति में ही उसका आनंद है। मुखडे के बाद अंतरा ऐसा है जिसे मन्न्ा दा के अलावा ओर कोई गा ही नहीं सकता था। कस्में वादे प्यार वफा गीत में जिंदगी के फलसफें को

लता क्या है?

सुर  उनके गले से निकलते समय इठलाता है। ताल उनके गाने का साथ पाकर मदमस्त हो जाता है और शब्द उनका सुर पाकर आत्मुग्ध हो जाते है। ऐसी शख्सियत का नाम केवल लता मंगेशकर ही हो सकता है। लता क्या है? भारतरत्न, सुर साम्राज्ञी और न जाने और कितनी उपाधियों से लता को नवाजा गया है पर आज भी लता को देखकर कभी भी यह एहसास होता कि उन्हें अपनी आवाज पर गुमान है। उनके जन्मदिन पर काफी दिनों के बाद उन्हें टेलिविजन चैनल पर हँसते खिलखिलाते हुए देखा। जावेद अख्तर साहब ने लता जी से काफी अच्छे प्रश्न पुछे साथ ही बॉलीवुड की तमाम हस्तियों ने भी लताजी से प्रश्न पुछे। परंतु इन सभी में एक बात जो सबसे ज्यादा मुझे दिल को छू गई वह थी लताजी की सादगी। सादगी की प्रतिमूर्ती हंै वे तथा उन्हें देखकर सही मायने में लगता है कि जिस प्रकार से संगीत का एक स्वर सच्चा और नि:श्छल होता है ठीक वही स्वरुप लताजी का लगता है। लताजी के चेहरे पर बच्चों सी मासूमियत है तो भगवान की भक्ति में लीन में एक साधु के चेहरे की माफिक तेज भी है। निश्चित रुप से लता भारतीय फिल्म संगीत के मंदिर की वह पूजनीय मूर्ती है जिसके आसपास संपूर्ण संगीत रचा गया हो। लताजी ने

हैवान भी परेशान

इन दिनों हैवान भी काफी परेशान है कारण साफ है इंसान ने उसकी जगह लेने के लिए काफी तेजी से कदम बढ़ा लिए है। निकट भविष्य में इंसान पूर्ण रुप से हैवान बन जाएगा वैसे कुछ घटनाएँ जो मीडिया के माध्यम से सामने आ रही है उससे साफ जाहिर है कि इंसान हैवान बन चुका है। बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि हो रही है । बलात्कार पीडिता अब खुलकर सामने भी आने लगी है और पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवाने में वे हिचक नहीं रही है। दरअसल बलात्कार के मामलो में दोनों पक्षों की ओर से देखा जाए तो गत कुछ वर्षों में ऐसे मामले भी सामने आए जिनमें झुठे आरोप भी लगे है। ऐसे मामले काफी कम है परंतु किसी पिता द्वारा बेटी के साथ बलात्कार करने की बात सुनते ही अजीब से कपकपी छूटने लगती है कि आखिर इंसान इतनी घिनौनी हरकत कैसे कर सकता है। वैसे बलात्कार बलात्कार होता है चाहे जिसके साथ हो और यह किसी भी समाज पर धब्बा है। विदेशो की बात करे तब यह तथ्य सामने आता है कि वहाँ पर समाज में काफी खुलापन है पर खुलेपन का मतलब यह तो नहीं कि पिता अपनी बेटी के साथ ही सहवास करे। कितनी गंदी ,कलुषित और सड़ी हुई मानसिकता है यह। बावजुद इसके कितनी ही इस प्रकार क
दर्द की शहनाईयां दर्द क्या है? दर्द अनुभूति है, ठीक उसी तरह जैसे हमें खुशी की अनुभूति होती हंै। दोनों में फर्क बस इतना सा है कि खुशी हमारे जीवन में लंबे समय तक याद रहती है, जबकि दर्द को हम जल्द भूलना चाहते है। दर्द की शहनाईयों में वह करुण संगीत के सुर होते है जो बार बार हमारे दिमाग में कौंधते है। हम खुशी को जल्द भूल जाते है पर पता नहीं दर्द का स्वभाव ऐसा है कि वह हमें बार बार याद आता है। दर्द भावनाओं की पराकाष्ठा है, क्योंकि व्यक्ति के जीवन में जैसे खुशी के कई कारण है वैसे ही दर्द के भी कई कारण है। कारण कुछ भी हो दर्द अपना प्रभाव काफी लंबे समय तक छोड़ता है और उसकी समय के साथ किसी भी प्रकार की दोस्ती नहीं होती, अगर दोस्ती होती तो कितना अच्छा होता। व्यक्ति समय के साथ सबकुछ भूल जाता। दर्द अपने शाश्वत भाव के साथ आपका साथ निभाता है आप ऊपरी मन से उससे छूटकारा जरुर पा लेते है, परंतु दर्द शहनाईयां जब तक सुनाई दे ही जाती है। दर्द की सीमा नहीं दर्द की ऊँचाई और गहराई भी नहीं है। क्योंकि, दर्द अपने आप में पूर्णता लिए है और यह पूर्णता किसी भी व्यक्ति के भावनात्मक धरातल को भेदकर वहाँ पर अक्षुण्ण भाव