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यही है राईट च्वाईस उमा..

राजनीति में यह सुविधा रहती है कि किसी को भी चाहे जितनी गा ी दे दो और चुनाव के समय नजदीक आते ही पुरानी बाते भू कर ग े मि सकते है। राजनीति में सबकुछ जायज है और वर्तमान में इसका सबसे बड़ा उदाहरण है उमा भारती। तुनकमिजाज उमा ने भाजपा से यह कहकर नाता तोड़ा था कि वे अपनी पार्टी बनाएगी और उसके माध्यम से भाजपा को नुकसान पहुँचाएगी।भारतीय राजनीति में उमा भारती एक उदाहरण है। राजनीति के शिखर पर पहुँचने के बाद अपनी तुनकमिजाजी के कारण सत्ता के शिखर से जिस तरह फिस ी वह एक सबक है। जो ोग उमा के साथ भाजपा से रिश्ता तोड़कर च े थे, उनमें से ज्यादातर ौट आए। चार वर्षो में उमा की हा त यह हो गई कि उनके आसपास सबकुछ खा ी हो गया। उमा को भी अब यह बात समझ में आ गई है कि भाजपा में और खासतौर पर आडवाणी का साथ देना उनके ि ए जरुरी हो गयौ। उमा का राजनीतिक करियर अब शून्य होता जा रहा है। ऐसे में उन्होंने संघ के माध्यम से गत कुछ महीनों से भाजपा में वापसी के ि ए यत्न आरंभ कर दिए थे।उमा का मिजाज अ गउमा भारती के साथ समस्या यह है कि उनका स्वभाव सामान्य राजनेताओं से अ ग है। वे कभी अपने कार्यकर्ता को चांटा मार देती है तो अग े ही प प

इनका खाना और उनका खाना

परिवारों में अक्सर कहा जाता है कि कौन कितनी रोटी खा रहा है इसकी गणना नहीं की जाना चाहिए नजर ग जाती है जिसका असर जो खाना खा रहा है उसकी सेहत पर पड़ती है खासतौर पर बच्चों को ेकर इस कार की बाते कही जाती है। बच्चे तो बच्चे है वे क्या जाने नजर गना और उतरना...वे बस इतना जानते है कि खाना खाने के ि ए होता है और भूख गे तो खाना खाओं। भूख एक जैसी होती है चाहे अमेरिका हो या भारत या फिर मध्य देश क्यों न हो। एक शोध हुआ अमेरिका में जिसमें यह कहँा गया कि अमेरिकी बच्चे मोटे होते जा रहे है तथा उन्हें ह्रदय रोग होने की संभावना इतनी ज्यादा है कि उनकी आयु मात्र 45 वर्ष की बताई गई है। वही दुसरी और हमारे मध्य देश की बात करे तो स्वयं राज्य सरकार यह स्वीकार कर चुकी है कि देश में 48 हजार कुपोषित बच्चे है। अमेरिका में बच्चों पर जो शोध किया गया उसमें यह पाया गया कि बच्चों का ह्रदय तीस वर्ष के व्यक्ति जैसा काम कर रहा है और ह्रदय के वाल्व्स पर अत्याधिक चर्बी वा ा खाना खाने के कारण ऐसा असर हुआ है कि बच्चे का ह्रदय ज्यादा से ज्यादा 25 वर्ष और काम कर पाएगा।इनका को ोस्ट्रो ेव इतना उच्च था कि डॉक्टर भी आश्चर्य में पड़ गए।

बायोफ्यूल से कीजिए हवाई यात्रा!

बायोफ्यूल से कीजिए हवाई यात्रा! (अनुराग तागड़े) हवाई जहाजों में अब तक जेट-फ्यूल या केरोसिन का ही प्रयोग किया जाता रहा है। विश्व के अधिकांश हवाई जहाज इसी ईंधन का प्रयंोग करते है। परंतु इस ईंधन का प्रयोग करने से पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचता है। इससे बचने के लिए कई नए तरह के प्रयोग हो रहे है जिसमें बायोफ्यूल का इस्तेमाल कर हवाई जहाजों को जँाचा जा रहा है। हवाई जहाज के इंजनो को टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर काफी उन्न्त बनाया जा चुका है। पर्यावरण का ख्याल रखने की दृष्टि से अब इन इंजनों को पर्यावरण हितैषी ईंधन प्रयोग करने के लिए भी प्रयोग हो रहे है।बायोफ्यूल की तीसरी पीढ़ीहवाई जहाज के इंजन में पर्यावरण हितैषी ईंधन का प्रयोग करने के लिए वैज्ञानिकों को काफी मशक्कत करना पड़ी। कई सालों के शोध के बाद अब विमानों में प्रयोग किए जाने वाले बॉयोफ्यूल की तीसरी पीढ़ी का विकास हो पाया है। पहली पीढ़ी के बायोफ्यूल मक्को, सोयाबीन, सनफ्लावर के बीज से बने थे। यह हवाई जहाज में उपयोगे के लिए उपयुक्त नहीं पाए गए थे। दूसरी पीढ़ी के बॉयोफ्यूल में पेपर इंडस्ट्री से निकली ब्लैक लिकर व अन्य उद्योगों के बायप्रोडक्ट्स का प्रयो