खुशियों के दीपक में आस्था का तेल
हमारा देश धार्मिक है कुछ ज्यादा ही धार्मिक है ... धार्मिकता की हद यह है कि गणेश प्रतिमाएं दूध पीती हैं और सारा देश नतमस्तक हो जाता है, कोई वैज्ञानिक कारण नहीं जानना चाहता। हाल ही में मुरैना में एक साधु ने अपने आप को आग लगा ली और पुलिस वालों सहित सभी उनकी अग्नि समाधि को अपने मोबाईल कैमरे में कैद करते रहे। उनके अनुसार यह चमत्कार ही है। दरअसल, देश में अब आस्था धर्म पर भारी होती जा रही है। आस्था जब तक आस्था रहे तब तक ठीक पर आस्था जुनून बन जाए, तब मुश्किलें आरंभ हो जाती है। दीपावली के पर्व पर सभी खुशियाँं फैलाना चाहते है और पर्व में निहित अपनेपन में खो जाना चाहते हैं। पर जैसे जैसे हम आधुनिकता की ओर कदम बढ़ा रहे है आस्था कठोर औरै कट्टर होती जा रही है। हम आस्था के कट्टरपन में खुशियाँ ढूंढ़ रहे और इस कारण खुशियों के दीपक को जलाए रखने के लिए उसमें आस्था का तेल डालते जा रहे है। आस्था होना कोई बुरी बात नहीं है, यह व्यक्ति का निजी मामला है। परंतु आस्था अपनी निजपन की सीमा को लांघकर सार्वजनिक होने लगे तब यह दूसरे व्यक्ति की आस्था पर अतिक्रमण करने जैसा है। हम खुशियां ढूंढ़ते है पैसों में परिवार में...