क्या से क्या हो गया लता अलंकरण समारोह


- तीन वर्ष बाद आयोजित करने की तैयारी
- केवल खानापूर्ति न बन  जाए समारोह
(अनुराग तागड़े)
इंदौर। कला संस्कृति को सहेजने वाले इंदौरियों के लिए यह सोच पाना ही बड़ा मुश्किल है कि शहर से आरंभ हुआ लता अलंकरण समारोह इस बार तीन वर्ष के अंतराल के बाद आयोजित किया जा रहा है। इसका कारण यह बताया जा रहा है कि सम्मानित करने के लिए कलाकार ही नहीं मिले। यह आश्चर्य का विषय नहीं है कि एक साथ तीन कलाकारों को सरकार सम्मानित करेगी जैसे सम्मान की खानापूर्ति की जा रही हो। 
एक समय था जब लता अलंकरण समारोह तीन दिन का होता था और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि तीनों दिन एक से बढ़कर एक कलाकार प्रस्तुतियां देते थे। यह समारोह नहीं बल्कि एक अलग प्रकार की संस्कृति शहर में विकसित हुई थी जिसमें लता अलंकरण की प्रतियोगिता के लिए शहर के अलग-अलग हिस्सों के अलावा प्रदेश भर से कलाकार इंदौर आते थे और क्या तैयारी के साथ आते थे। वे अपने साथ अपने क्षेत्र की लोकसंगीत की खुशबू भी शहर में लेकर आते थे और फिर लता अलंकरण के दिन सम्मानित होने वाले कलाकार के पहले विजेता को प्रस्तुति देने का मौका मिलता था। कितना बेहतरीन सबकुछ होता था परंतु समय के साथ कार्यक्रम पूर्ण रूप से सरकारीपन लिए हो गया और इसमें से अपनापन कहीं खो सा गया। 
इसका परिणाम यह हुआ कि कार्यक्रम ने अपनी गरिमा भी खो दी और अलग तरह की राजनीति इसमें नजर आने लगी। इस राजनीति ने संगीत के वे बसुरे सुर लगाए जिससे इस समारोह की आत्मा को ही ठेस पहुंचा दी जिसके कारण समारोह में से इंदौरियत गायब हो गई और सरकारीपना ज्यादा हावी होने लगा। लता अलंकरण समारोह के दौरान होने वाली प्रतियोगिता के विजेताओं की बात ही अलग होती थी। सुगम संगीत के क्षेत्र में यह प्रतियोगिता किसी के लिए भी जीतना प्रतिष्ठा की बात मानी जाती थी। 

स्थानीय स्तर पर लता अलंकरण समारोह की तैयारियां आरंभ हो गई हैं और इस बार भी संभाग व राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जा रहा है पर बात फिर वहीं आकर अटकती है कि स्थानीय प्रशासन को समारोह की गरिमा और इतिहास के अनुरूप इसे स्वरूप देना चाहिए और इसमें स्थानीय स्तर पर सहभागिता हो इस बात का भी ख्याल रखना चाहिए। प्रयत्न यह करना चाहिए कि नियत समय पर प्रतिवर्ष इसका आयोजन हो।

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