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स्मृति शेष पद्मविभुषण गिरिजा देवी...

<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-4047862364003617" crossorigin="anonymous"></script> सांगितिक आभा मंडल के दैदिप्यमान ओज से वे दमकती रहती थी (अनुराग तागड़े) जितनी लरजती गरजती उनकी आवाज उतना ही मीठा उनका बोलना...शब्दों का चयन भी जैसे कौन सबसे ज्यादा मीठा है यह विचार करके करती थी। गायकी के कई स्वरुप आए...तैयारी वाले कलाकार भी आए और चले गए परंतु गिरिजा देवी अपनी साधना और कार्यक्रमों में मस्त...वे सुरों की सच्चाई और गहराई को जानती थी और सच्चे सुर ही परब्रह्म है इस पर उनकी सिद्धहस्तता थी। दुनिया जहां उन्हें ठुमरी क्वीन के नाम से जानती है पर रागदारी पर क्या पकड़ थी उनकी। किसी भी राग की शुद्धता को वे कभी नहीं छोड़ती थी और अमूमन यह कहा भी जाता है कि अगर कोई ठुमरी,चैती,होरी और गजÞल गायक है तब वह शास्त्रीय रागों के साथ उतना न्याय नहीं कर पाता है परंतु गिरिजा देवी मुंह में पान गिलौरियां भले ही चबा रही हो पर जब बात रागों की आती तब चेहरे पर भी गंभीरता और पवित्रता का अनुठा संगम देखने को मिलता था।

मुकुल राय के माध्यम से कैलाश जी का कद बढेगा?

- कैलाश विजयवर्गीय को कोर्ट से राहत भी मिल चुकी है (अनुराग तागड़े) इंदौर। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी ने पश्चिम बंगाल की कमान सौपी थी। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के तेवर और वहां पर टीएमसी कार्यकर्ता जिस प्रकार से व्यवहार कर रहे थे उससे साफ जाहिर था कि पश्चिम बंगाल में मामला वैसा नहीं है जैसा सोचा जा रहा था और पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम में यह बात सामने आ भी गई थी। इसके बावजुद भाजपा महासचिव ने लगातार पश्चिम बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। वहां के बड़े दिग्गज भाजपा नेताओं के साथ मिलकर कैलाश विजयवर्गीय ने विरोध प्रदर्शन और धरने भी दिए। टीएमसी से इस्तीफा देने के बाद बड़े नेता मुकुल राय ने भाजपा का दामन थामा है। मुकुल राय भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से संपर्क में थे और उन्हें समारोह पूर्वक भाजपा में शामिल किया गया। भाजपा के लिए बंगाल में यह एक शुरुवात हो सकती है वही दूसरा पक्ष यह भी है कि मुकुल राय पर सारदा चिटफंड घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा हुआ था और सीबीआई की जांच में भी उनका नाम है इस कारण उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया है। वही ममता बेनर्जी ने मुकुल राय क

कांग्रेस में आजकल क्या चल रहा है...नर्मदा यात्रा

(अनुराग तागड़े) नर्मदे हर...की गूंज और कांग्रेस नेता की पूछपरख दोनों में समानताओं का दौर जब चलने लगे तब अनुभवी कांग्रेसी नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दबदबे का एहसास होता है। नर्मदा किनारे वे यात्रा कर रहे है और कयासो का दौर लगातार चलते जा रहा है। शहर कांग्रेस से लेकर प्रदेश कांग्रेस में बस एक ही बात है क्या चल रहा इन दिनों कांग्रेस में बस नर्मदा यात्रा चल रही है। सही मायने में नर्मदा यात्रा के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री छालो,पैरों का दर्द और यात्रा करने का सुकुन का एहसास जरुर कर रहे है परंतु यह यात्रा स्पंदन पैदा कर रही है कांग्रेस में और आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में। दिग्विजय सिंह भले ही रोजाना कुछ किलोमीटर पैदल चल रहे हो पर नर्मदा किनारे से कई किलोमीटर दूर तक यात्रा का असर नजर आता है। यात्रा को देखादेखी की यात्रा शुरुवाती दौर में कहा जा रहा था परंतु जिन लोगो ने यात्रा को करीब से देखा वे कहने लगे कि ये क्या नेताजी सही मायने में चल रहे है और नर्मदा किनारे पैदल ही चल रहे है और कोई दिखावा नहीं। प्रदेश कांग्रेस के भीतर हल्के उत्साह की लहर अभी भी न महसूस की जा रही हो परंत

परमात्मा का भेद जानने की ओढ

(अनुराग तागड़े) मन को नियंत्रित करने की बातें सुनने में काफी अच्छी लगती है पर कम लोग ही नियंत्रण की बात को आत्मसात कर पाते है। यह राह अपने आप में बिरली है जिस पर चल पाना हरेक के बस की बात नहीं है क्योंकि नियंत्रण हम आदतों पर नहीं कर पाते तब मन के नियंत्रण की बात बहुत दूर हो जाती है। मन को चंचल कहा गया है पर असल में मन का स्वरुप सकारात्मक और नकारात्मक दोनों रहता है जैसे हीरो और विलेन फिल्मों में रहते है वैसे ही मन की अवस्था भी होती है वह किसी भी घटना को लेकर तत्काल आपको उसके सभी पक्षों से अवगत करवा देता है। और अवगत करवाने वाली प्रक्रिया इस बात पर निर्भर करती है कि आप किस परिवेश में पले बढ़े है और आप किस वातावरण में रह रहे है। मन आदत में पड़ जाता है पर उस दौर में भी आपको लगातार अपनी बात बताता रहता है यह बात अलग होती है कि हम सुनते नहीं है। इन सभी बातों के बीच जब मन को नियंत्रित करने की बात आती है तब मन विद्रोही तेवर ही अपना लेता है व नियंत्रित नहीं होना चाहता वह आवारागर्दी करने लगता है और कई बार बावले की तरह हरकतें भी करता है। वह अपने घोड़े दौड़ाने में ज्यादा विश्वास करता है और बार बा

चकमस्ती में आग लगे बस्ती में...

(अनुराग तागड़े) भिया किधर....मल्लारगंज काम से जा रिया हूँ अरे मेरे को भी छोड दे यार राजवाड़े पे...आ बैठ चलते हे। भिया सही के रिया हूँ अपने सेर की बात ही अलग हेगी...खाने पीने में सबकुछ एक नंबर हेगा...हां भिया पर मेरे को लग रिया हेगा कि सेर में अब राजनीतिवाले लोगोन काम बिगाड़े भोत कर रिये हेंगे...अपने लोगोन तो क्या है किधर भी कुछ भी कर लियो बोलते ही नी हेंगे। वो भिया परसो में सांची वाले से झिगझिग कर रिया था अरे वो मानने को ही तैयार नी हेगा कि गलती हो गई हेगी। भिया ये लोगोन सुधरने को तैयार ही नी मेने बोला भिया क्या हुआ तुम्हारे टैंकरोन का...मिलावट तो भोत की तुम लोगोन ने अब भी नी मान रिये हो। वो बोला भिया तुम मान ही नी रिये हो अब सबकुछ सहीसाट चल रिया हेगा। भिया अपन तो एबले हेंगे बोल दिया परमाण क्या हेगा? अपना दिमाग सटका तो फिर अपन किसी के नी...पर तुम लोगोन सांची का दूध लेते थे क्या वो दुकान से...नी भिया वो तो ऐसे ही मजे ले रिया था ईन लोगोन को भी तो समझ में आनी चिए ना कि हम भी कम थोड़े ही हे। पर भिया अपना तो सोचना ही ऐसा हेगा कि रहो चकमस्ती में आग लगे बस्ती में पर ये लोगोन सुधरहीच नी रिये

राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं

- भाजपा के भीतर मारपीट कांड के बाद सन्नाटा (अनुराग तागड़े) इंदौर। राजनीति में अपने आप को ऊपर ले जाने के लिए किसी भी हद तक लोग जा सकते हैं और नेता तो जाते ही हैं। दशहरा मैदान मारपीट कांड के बाद यह कहा जा रहा है कि बात दिल्ली तक पहुंच गई है और बहुत सारी बाते हो रही हैं। इन सभी बातों में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भाजपा प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार चौहान के सामने सब कुछ हुआ याने अनुशासन नाम की कोई बात ही नहीं रही। उद्योगपति हेमंत नीमा के साथ जो व्यवहार किया गया वह किसी भी धार्मिक आयोजन स्थल पर नहीं होना चाहिए।  प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार दोनों के बीच कहासुनी हुई और इसमें कई ऐसी बातें भी थीं जो भाजपा शहर अध्यक्ष कैलाश शर्मा को चुभ गईं। ऐसी कौन सी बातें थीं जिसके कारण कैलाश शर्मा का पारा एकदम आसमान पर पहुंच गया और प्रदेशाध्यक्ष नंदकुमार चौहान के सामने लोगों ने नीमा के साथ न केवल झूमाझटकी की बल्कि प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार मारा भी गया है जिसमें यह कह कर मारा कि आपने हमारे शहर अध्यक्ष का अपमान किया है। यह अजीब है जब प्रदेश अध्यक्ष स्वयं खड़े हैं तब शहर अध्यक्ष का अपमान होने के बाद उसका

तेजी से बढ़ रहे एविएशन सेक्टर के लिए क्या म.प्र. तैयार है?

- वर्ष 2020 तक भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एविएशन बाजार - वर्ष 2030 तक भारत में हवाई अड्डों की संख्या होगी 250 - भारतीय हवाई अड्डों पर वर्ष 2032 तक 11.4 मिलियन टन मालभाड़ा जाएगा - सभी हवाई अड्डों पर बायोमेट्रिक जानकारियों से प्रवेश होगा (अनुराग तागड़े) इंदौर। शहर से विदेश के लिए सीधी उड़ान की तैयारियों के बीच यह तथ्य महत्वपूर्ण है कि इंदौर में जेट एयरलाइंस ने नाईट पार्किंग के लिए भी जगह मांगी है। यह दोनों तथ्य इस बात की ओर इंगित कर रहे हैं कि इंदौर की तरफ अगर प्रदेश सरकार सही तरह से ध्यान दे तो इंदौर के देवी अहिल्याबाई होलकर हवाई अड्डे की तेजी से प्रगति को कोई नहीं रोक सकता। जिस प्रकार से लो कॉस्ट एयरलाइंस को सफलता मिल रही और भारतीय अर्थव्यवस्था जिस प्रकार से आकार ले रही है उससे साफ जाहिर है कि हवाई यातायात में तेज गति से वृद्धि होना है। प्रदेश में इंदौर और भोपाल ही ऐसे हवाई अड्डे हैं जहां से बहुत ज्यादा बिजनेस आने की उम्मीद है। दोनों ही हवाई अड्डों में से इंदौर ने जो प्रगति की है वह अपने आप में काबिलेतारीफ है। इंदौर हवाई अड्डे ने तीन वर्षों में 4 लाख यात्रियों की बढोत्तरी

गजक गराडू वाली ठंड

(अनुराग तागड़े) ठंड का मौसम याने खानपान का मौसम और इस मौसम में इंदौरियत बिल्कुल शबाब पर रहती है। खालिस इंदौरी लोगों की बात की जाए तो सही मायने में यह गजक गराडू वाला मौसम अपने आप में तरावट लाने वाला होता है। सामान्य दिनों में घर पर खाना खाने के बाद ठंड का मजा लेने के लिए बाहर निकले और गरम दूध के कढ़ाव में से एक गिलास गरमा गरम दूध और उसमें एक दोना रबड़ी का डालकर राजवाड़े के आसपास घूमने का जो सुख है वह असली इंदौरी को ही समझ आ सकता है। हम इंदौरी ऐसे ही हैं हमें गराडू, गजक खाना बहुत पसंद है और हम देर रात तक सराफे में डेरा डालकर यह सब कुछ खाने में गौरवान्वित महसूस करते हैं। ठंड में तो गरमा गरम जलेबी का स्वाद और भी बढ़ जाता है। ठंड सही समय पर निर्धारित मात्रा में ठंडक लेकर आ जाती है तब सही मायने में मौसम सुहाना हो जाता है। चौराहों पर अलाव जला कर बैठे लोगों के साथ हम भी हाथ सेंक कर गरमाहट ले लेते हैं। दरअसल ठंड याने सुबह के समय के बेहतरीन नाश्ते से लेकर देर शाम आलू की कचोरी प्याज की चटनी के साथ और फिर देर शाम तक यूं ही खानपान का दौर चलता ही रहता है। मूल मुद्दा यह है कि हम खानपान को लेकर हम जब

मां मुझे मोबाईल दिला दे मैं भी बडा बन जाऊ

बाल दिवस की सुबह से शाम हो गई पर बचपन ढूंढने पर भी नहीं मिला...सुबह की हल्की ठंड में बस्ते के बोझ के तले दबे बच्चें होमवर्क पूरा किया की नहीं की डांट सुनते हुए ओके ममा बाय कहते हुए बस में चढ़ते नजर आएं। बाल दिवस था लिहाजा स्कूलों में आभासी बाल दिवस एक इवेंट के रुप में मनाया गया जिसमें कार्यक्रम कम सेल्फियां और फोटो ज्यादा लिए गए। बचपन की बातें खूब हो रही थी एक जगह पर वे बच्चे नहीं थे। हाथों में मोबाईल लिए चिडचिड़े वे समय से पहले बड़े होने का प्रयास कर रहे थे। मां मुझे मोबाईल दिला दे मैं भी बडा बन जाऊ के तर्ज पर बच्चे अपने बचपने को तरस रहे है क्योंकि हमारा शहर भी अब मेट्रो शहरों ती तर्ज पर आभासी हो चला है। कोचिंग क्लासेस और हॉबी क्लासेस के बीच माता पिता की इच्छाओं आकांक्षाओं को लादते फिर रहे मासूमों का बचपन वीकेंड पर हेंगआउट में खो जाता है। पिज्जा बर्गर और इलेक्ट्रानिक गैजेट के मोह में वह अपने बचपन का सौदा कर जाता है जिसकी उसे बिल्कुल भी खबर नहीं है। माता पिता को यह बात नजर नहीं आती और वे लगातार अपने साथ बच्चों को भी मशीन बना रहे है। गीली मिट्टी में खेलने से रोकने वाले माता पिता बच्च