डेढ लाख करोड़ का कर्ज फिर भी आनंद मनाने की तैयारी


(अनुराग तागड़े)
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राज्य सरकार वित्तिय मोर्चे पर लगातार असफल होती नजर आ रही है और आश्चर्य का विषय यह है कि राज्य सरकार लगातार घोषणा पर घोषणा करती जा रही है और खजाने में लुटाने के लिए कुछ भी नहीं है फिर भी वादे आश्वासनों की लंबी फेहरिस्त बनती ही जा रही है। सरकार का आनंद परमानंद में बदल रहा है इस बात से बेफिक्र होकर की अब तक उसने चार हजार 600 करोड़ का कर्ज ले लिया है और अब चुनाव आने वाले है इसलिए वादो पर वादे करना है और कुछ पर अमल भी करना है।
सरकार ने आनंद संस्थान भी बना दिया है भले ही राज्य के प्रत्येक नागरिक पर कर्जे का बोझ हो पर वह आनंद संस्थान के माध्यम से अपने कर्जे को भूल जाएगा और परमानंद को प्राप्त होगा। सरकार लोक लुभावन नीति पर चल रही है जिसके कारण वेतन भत्ते हो या अन्य योजनाएं उन पर खर्च हो रहा है और लगातार हो रहा है। आनंद संस्थान इसका उदाहरण है जिसमें लोगो को स्वफूर्त आने के लिए कहा जा रहा है पर प्रत्येक व्यक्ति जिसे आनंद संस्थान का भाग बनाया जाएगा उसे सरकार पैसा तो देगी ना? अब सरकार सातवें वेतन आयोग के अनुरुप कर्मचारियों को पैसा देने की तैयारी कर रही है पर क्या सरकार की वित्तिय स्थिति ठीक है क्या सरकार बेतहाशा खर्च तो नहीं कर रही है और अगर कर रही है तब इस पर रोक कौन लगाएगा क्योंकि सरकार ने आनंद उत्सव लगातार मनाने की बिरली कल्पना को साकार करने का बीड़ा भी उठा लिया है। कर्ज लेकर घी पीने की राज्य सरकार की आदत ठीक नहीं कम से कम दस वर्ष से ज्यादा सरकार को चलाने की आदत के बाद भी अगर नहीं बदल पाएं तब सही मायने में राज्य सरकार के सम्मुख चिंता उभरना स्वाभाविक होगी। राज्य सरकार को अपनी वित्तिय स्थिति सुधारने के लिए कवायद करना चाहिए और इसके लिए मंत्रालय स्तर पर सुधार करने की जरुरत है और फिजुलखर्ची पर लगाम लगा कर प्रदेश में निवेश किस प्रकार आए इस ओर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। राज्य सरकार है इस कारण बाजार से व अन्य वित्तिय संस्थानों से कर्ज मिलना आसान है पर इसका यह मतलब नहीं की सरकार अनाप शनाप खर्चे करते ही चले जाए और स्वयं को कर्जदार बनाते जाए। सरकार एक तरफ लोन लेती है तो दूसरी तरफ आनंद संस्थान में स्वफूर्त होकर कोई काम करना चाहता है का आवेदन बुलाती है साथ ही उसे यह भी पता है कि कोई भी फोकट काम करने वाला नहीं है इस कारण प्रतिदिन एक हजार रुपए और अन्य खर्च देने की भी तैयारी है। क्या सरकार के वित्त विभाग को यह नजर नहीं आ रहा है कि फिजूलखर्ची रोकना चाहिए और प्रदेश की आर्थिक स् िथति को मजबूत करना चाहिए वरना कर्ज लेकर लोक लुभावने वादे और योजनाओं के माध्यम से फिर से चुनाव जीतने के दिन करीब आ ही गए है और सत्ता में कोई भी आए उसे खजाना तो खाली मिलेगा ही अगले पांच वर्ष तक कर्ज में फंसा प्रदेश ही मिलेगा जहां पर केवल किस्ते भरने और कर बढ़ाने के अलावा कोई चारा नजर नहीं आएगा।

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