अनुशासित दर्शको की सानंदी मिसाल

अनुशासित दर्शको की सानंदी मिसाल
- देशभर के कलाकार देते है इंदौर का उदाहरण
- दस मिनट से लेकर डेढ़ घंटे की देरी पर भी अनुशासन बना रहता है
(अनुराग तागड़े)
इंदौर। कल्पना किजिए कि आप थियेटर में फिल्म देखने बैैठे है और अचानक लाईट चली जाए तब क्या होगा? निश्चित रुप से आप कहेंगे कि टॉकिज में जमकर सीटियां बजेंगी और जल्दी लाईट नहीं आई तब हुडदंग भी हो सकता है और सीटे फटने की ग्यारंटी। सामान्यतौर पर किसी भी कार्यक्रम में अव्यवस्था होने पर आयोजको को दर्शको से खूब सुनना पड़ती है फिर ध्वनि व्यवस्था खराब हो या फिर बैठने की व्यवस्था ठीक नहीं हो। इंदौर शहर कला कद्रदानो के लिए जाना जाता है हम स्वर को ब्रह्म और  शब्दों को सरस्वती की तरह पूजने के लिए जाने जाते है। हमारी तासीर ऐसी है कि हम अल सुबह पांच बजे भी कार्यक्रमों में पहुंचते है और देर रात तक शास्त्रीय संगीत की महफिल में भैरवी सुनने के बाद कलाकार को ग्रीन रुम में मिलकर फिर घर लौटते है। कलाकारो को भी इंदौरी दर्शक खूब भाते है क्योंकि वे जानते है कि इंदौरी दर्शक दर्दी है और कलाकारों व आयोजको को सहयोग करना जानते है परंतु सानंद के दर्शकवर्ग ने इस सहयोग को नए ही आयाम दिए है वे आयोजन को हर हाल में सफल बनाते है और इसमें स्वयं भी जुट जाते है।
एलईडी स्क्रीन बार बार दे रही थी दिक्कत
सानंद फुलोरा कार्यक्रम के तहत रवीवार को प्रफुल्ल माटेगांवकर की प्रस्तुति थी जिसमें उन्होंने सह्याद्री के सात रत्नों याने सह्याद्री स्थित छत्रपति शिवाजी के साथ किले कैसे बनाए गए आदि पर जानकारी दी। इस दौरान मंच पर काफी बड़ी एलईडी स्क्रीन लगाई गई थी। कार्यक्रम आरंभ होने के कुछ समय बाद स्क्रीन में कुछ दिक्कते आने लगी और आयोजको सहित तकनीकी टीम जुट गई स्क्रीन सुधारने में। ऐसा दो तीन बार हुआ और हर बार दस मिनट का व्यवधान उत्पन्न हुआ परंतु इस दौरान सभी दर्शको ने संयत भाव से तकनीकी व्यवधान को न केवल सहन किया बल्कि वे यह भी कहते नजर आए कि कभी कभी ऐसा हो जाता है पर इसका मतलब यह नहीं कि हम कार्यक्रम छोड़ के चले जाए या विरोध दर्ज करवाएं । कार्यक्रम में केवल मराठी भाषी दर्शक नहीं थे बल्कि बड़ी संख्या में हिंदी भाषी दर्शक भी थे जो अपने बच्चो को छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में जानकारी देने के लिए आयोजन स्थल पर पहुंचे थे। दर्शको का अनुशासन सही मायने में काबिलेतारीफ था और सभी ने बड़े ही संयत भाव से संपूर्ण कार्यक्रम देखा।
जब विक्रम गोखले स्टेज पर सीढ़ी लेकर माईक ठीक करने लगे
सानंद के नाटको के दौरान भी कई बार ऐसी स्थितियां बन जाती है जब तकनीकी समस्या आती है पर मजाल है कि इसे लेकर कोई हो हल्ला हो। विक्रम गोखले जैसे वरिष्ठ कलाकार शहर में नाट्य प्रस्तुति देने आए थे और ध्वनि व्यवस्था ठीक नहीं होने के कारण पीछे बैठे दर्शको को आवाज ठीक से सुनाई नहीं दे रही थी। दर्शको ने मुखर होकर इस बात को कलाकारों को बताया और स्वयं विक्रम गोखले ध्वनि व्यवस्था देखने लगे। इतना ही नहीं उन्होंने मंच पर ही दर्शको के सामने सीढ़ी मंगवा ली और स्वयं सीढ़ी पर चढ़कर माईक ठीक करने लगे। माईक ठीक होने पर आवाज सही तरह से दर्शको तक पहुंचने के बाद ही नाटक पुन: आरंभ हुआ पर इस दौरान किसी भी दर्शक ने न आपत्ती ली बल्कि व्यवस्था किस प्रकार से सुधरे इसे लेकर वे  स्वयं क्या योगदान दे सकते है इस बारे में बातचीत करते रहे।
जब कलाकार दर्शक का भेद ही मिट गया
सानंद के एक नाटक में तो कलाकार आयोजन स्थल पर पहुंच गए थे परंतु मंच पर नेपथ्य के नाम पर कुछ नहीं था क्योंकि नाटक का सामान लाने वाली बस को इंदौर पहुंचने में देर हो गई थी। लगभग नियत समय से डेढ़ घंटे बाद बस यूसीसी अॉडिटोरियम पहुंची। यह देखकर दर्शको की पहली प्रतिक्रिया यह थी कि किस तरह से आयोजको और कलाकारों की सहायता की जाए। क्या कलाकार और क्या दर्शक सभी ने बस में से सामान निकाला और ग्रीन रुम में ले गए। कई दर्शको ने आयोजको और नाटक कलाकारों के साथ मंच पर पहुंचकर सहायता की। कोई वेशभूषा में तो कोई मंच पर सहायता कर रहा था। यह देखकर मुंबई से आए नामचीन कलाकारों ने भी कहा कि ऐसा सहयोग इंदौर में ही संभव है। 
जब सुबोध भावे को  हार्ट अटैक आया था
सानंद के मंच पर ही आज से कई वर्ष पूर्व ख्यत कलाकार सुबोध भावे को मंच पर प्रस्तुति के दौरान हार्ट अटैक आया था। तब दर्शको में मौजूद मराठीभाषी चिकित्सको ने तुरंत मंच पर ही सहायता दी थी और इतना ही नहीं सुबोध भावे को एयरपोर्ट पर हवाई जहाज में बैठाने तक सात चिकित्सको का दल उनके साथ था। आज भी सुबोध भावे उस घटना को और सानंद के दर्शको और चिकित्सको के सहयोग को भूलते नहीं और सानंद के मंच पर कार्यक्रम देने के लिए सदैव तत्पर रहते है।
बैठने के लिए जगह नहीं नो प्राब्लम मंच तो है ना
सानंद के कई ऐसे कार्यक्रम हुए है जिनमें सभागार की क्षमता से अधिक दर्शक कार्यक्रम के लिए पहुंच गए और आयोजको के समक्ष उन्हें बैठाने की समस्या आन पड़ी थी परंतु यहां आयोजको की भी तारीफ करना होगी कि वे स्वयं और सानंद मित्र सहित सभी परिचित अपनी सीट खाली कर देते है और जमीन पर बैठने में भी किसी प्रकार का संकोच नहीं करते। इतना ही नहीं फिर भी जगह नहीं बचती तब मंच पर प्रस्तुति देते कलाकारो के आसपास भी बैठ जाते है। समय के पाबंद ...कलाकारों और आयोजको के सहयोगी इंदौरी दर्शको को सलाम जिनके कारण शहर में एक साथ कई आयोजन होते हुए भी सभी दूर कलाकारो को दर्शको का भरपूर सहयोग और साथ मिलता रहता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अकेला हूँ...अकेला ही रहने दो

लता क्या है?

इनका खाना और उनका खाना