सानंद ती फुलराणी

सानंद के मंच पर ती फुलराणी का मंचन
ऐसा नाटक जिसे बार बार देखने का मन करता है
- ऐेसा क्लासिक नाटक जो मनोरंजन की सभी शर्ते पूर्ण करता है
- हेमांगी कवि का अभिनय प्रभावित कर जाता है
- कलाकारों ने भी सेट लगाने में मदद की
(अनुराग तागड़े)
इंदौर। मराठी नाटकों में ती फुलराणी एक ऐसा नाटक है जिसकी चमक पीढ़ियों तक बरकरार रही और अब भी वह चमक वैसी ही है। दर्शको को लगातार हंसाने और मनोरंजन करने वाले नाटको की संख्या कम है और कोई नाटक लगातार कई वर्षों से आपका मनोरंजन करते आए तब आपको उस नाटक की आदत हो जाती है और कहानी पात्र सभी कुछ याद होने के बाद भी मनोरंजन के उस एक्स फैक्टर को ढूंढने के लिए आप उस नाटक को देखते जरुर है। सानंद के मंच पर मंचित  ती फुलराणी पु.ल देशपांडे द्वारा लिखा गया है जो कि  जॉज बनार्ड शॉ के पिग्मॅलियन नाटक पर आधारित है। वैसे माय फेयर लेडी अंग्रेजी फिल्म हो  या फिर अन्य भाषाओं में लिखित कुछ इस तरह के ही नाटक हो सभी काफी प्रसिद्ध हुए है पर ती फुलराणी नाटक अपने आप में दर्शको को ग्यारंटेड मनोरंजन पेश करता है और आप बार बार इस मनोरंजन में खो जाने के लिए तैयार भी रहते है क्योंकि नाटक की कथावस्तु ,कलाकारों का अभिनय और आज से चालीस वर्ष पूर्व की स्थितियों को देखकर न केवल दर्शक प्रभावित होते है बल्कि भाषा के व्यक्तित्व और आम व्यक्ति के व्यक्तित्व को भी आप करीब से जानने लगते है। न केवल भाषा बल्कि एक ही शब्द के अलग अलग उच्चारण से किस प्रकार से बदलाव आता है यह भी नाटय के माध्यम से देखने और सुनने मिलता है। 
कहानी: यह एक ऐसी फूल बेचने वाली लड़की की कहानी है जिसकी भाषा बिल्कुल ही खराब है और वह बिल्कुल टपोरी भाषा में ही बातचीत करती है। एक प्रोफेसर है जो इस लड़की को अच्छी मराठी भाषा सिखा कर बतौर राजकन्या प्रस्तुत करने की प्रतिज्ञा करते है। लड़की प्रोफेसर के घर आने के लिए तैयार हो जाती है और लगभग छ: महीने तक वे उसे अच्छी और सभ्य मराठी भाषा सिखाते है। इस दौरान जो हास्य उत्पन्न होता है वह अपने आप में काफी क्लासिक है क्योंकि शब्दों के उच्चारण की बारिकी से लेकर भाषा का सौंदर्य सबकुछ इसमें शामिल होता है। 
अभिनय: नाटक में फुलवाली का किरदार हेमांगी कवि ने निभाया है और अब तक भक्ति भर्वे से लेकर कई स् थापित कलाकारों ने यह किरदार निभाया है परंतु हेमांगी कवि ने इस किरदार को जीवंत किया है ठेठ टपोरी भाषा बोलना हो या फिर शुद्ध भाषा का उच्चारण करना हो हेमांगी की बॉडीलैंग्वेज किरदार के अनुरुप ही चलती है। डॉ गिरीश ओक मँजे हुए कलाकार है और एक आदर्श कलाकार की मानिंद उन्होने प्रोफेसर की भूमिका निभाई है। इसके अलावा विजय पटवर्धन, सुनील जाधव, रसिका धामणकर, अंजली मायदेव आदि ने भी अपनी उपस्थिति शानदार तरीके से दर्ज करवाई।
निर्देशक:  राजेश देशपांडे ने नाटक के साथ न्याय किया है और इस बात का ध्यान रखा है कि नाटक की छवि दर्शको के मन में पहले से है और उसी छवि को बरकरार रखते हुए किस तरह से नाटक को ओर अधिक प्रभावी तरीके से प्रस्तुत किया जाए इसका ध्यान उन्होंने बखूबी रखा है।
सानंद न्यास के अध्यक्ष सुभाष देशपांडे व मानद सचिव जयंत भिसे ने बताया कि आज प्रात: 10 बजे मामा मुजुमदार समूह, अपरान्ह 3:30 बजे वसंत समूह व सायं 7 बजे बहार समूह के लिए नाटक का मंचन होगा।
मराठी रंगमंच के जज्बें को सलाम
नाटक का पहला शो अपरान्ह 4 बजे से था परंतु नाटक के लिए जो सेट लगाया जाता है उसकी गाड़ी मुंबई से इंदौर के बीच आते समय खराब हो गई थी। इस कारण यह गाड़ी लगभग 6 बजे तक आयोजन स्थल पर पहुंची। गाड़ी पहुंचते ही नाटक से संबंधित सभी व्यक्तियों ने सेट लगाने में मदद की। नाटक के कलाकार डॉ गिरीश ओक ने भी सामान उठाने में मदद की व अन्य साथी कलाकारों ने भी मदद की। इतना ही नहीं 4 बजे से शो देखने के लिए जो दर्शक पहुंचे थे उन्होंने भी मदद की पेशकश की और सही मायने में मराठी रंगमंच के जज्बें को इस प्रकार की सकारात्मक पहलों के बाद सलाम करने का मन करता है। सानंद के अध्यक्ष सुभाष देशपांडे और सचिव जयंत भिसे ने बताया कि डॉ गिरीश ओक सहित सभी कलाकारो ने यह नहीं समझा कि हमारा काम केवल अभिनय करना है बल्कि सभी ने मिलकर मात्र आधे घंटे में सेट लगा दिया नाटक आरंभ हो गया। 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

अकेला हूँ...अकेला ही रहने दो

लता क्या है?

इनका खाना और उनका खाना