कॉट्रेक्ट थ्योरी

केवल कारपोरेट वर्ल्ड तक सीमित नहीं कॉट्रेक्ट थ्योरी
(अनुराग तागड़े)
भारतीय अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में नोबल प्राईज विजेता अर्थशास्त्री ओलिवर हर्ट तथा बेंग्ट होल्मस्ट्राम की कॉट्रेक्ट थ्योरी काफी महत्वपूर्ण है। कॉट्रेक्ट थ्योरी अर्थशास्त्र और उसके परे जाकर भी बाते करती है और असल में व्यक्ति,समूह के हितो की बात करती है। वह नियोक्ता के हित की भी बात करती है और नौकरी करने वाले के हित को भी ध्यान रखती है। यह केवल कानूनी रुप से दो लोगो के बीच हुए समझौते की बात नहीं करती बल्कि उसके आगे जाकर प्रेरणा देने की बात भी करती है और एक तरह से यह सभी पक्षो के विकास की बात करती है ताकि सभी साथ में आगे बढ़े और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के साथ ही संपूर्ण लक्ष को भी प्राप्त करे। अर्थशास्त्र में अब तक कॉट्रेक्ट थ्योरीज को संतुलन के आधार पर देखा जाता था कि किस प्रकार से दो पक्षो को संतुष्ट किया जा सकता है और अधिकांश लोग यही समझते थे कि यह कानूनी स्वरुप को आसानी से समझने का अर्र्थशास्त्र का तरीका है जबकि नोबल विजेताओं द्वारा दी गई थ्योरी एक तरह से अर्थशास्त्र के साथ साथ समाजशास्त्र की बात भी करती है। वह सीईओ और कंपनी के बीच के काट्रेक्ट की बात भी करती है और सामूहिक रुप से किसी उत्पाद को विकसित कर रहे समूह को किस तरह से प्रेरित किया जा सकता है इसकी भी बात करती है। अब तक अर्थशास्त्र में कॉट्रेक्ट थ्योरीज के अर्तगत सूचना का अभाव और अपूर्ण कॉट्रेक्ट की बाते नहीं होती थी परंतु ओलिवर हर्ट तथा बेंग्ट होल्मस्ट्राम की कॉट्रेक्ट थ्योरी में इसे भी शामिल किया गया है। जिस प्रकार से अब तक यह होता आया है कि किसी भी बड़ी कंपनी के सीईओ को प्रेरित करने के लिए कंपनियां उसके वेतन को कंपनी के शेयर प्राईज से जोड़कर देखती थी और उसी अनुसार वेतन भी देती थी परंतु कंपनियां यह भूल जाती थी कि शेयर बाजार में कंपनी के शेयर मूल्य गिरने के अन्य कारण भी हो सकते है और बेचारे सीईओ का इससे कोई लेना देना ही नहीं होता था। नई थ्योरी में सीईओ के वेतन को शेयर बाजार से जोड़ा तो गया है पर साथ में अन्य प्रतिस्पर्धी कंपनिया जो कंपनी जैसे ही उत्पाद बनाती है के शेयर मूल्य को जोड़ दिया गया है। यह कांट्रेक्ट सामयिक भी है और इससे सीईओ को सही मायने में प्रेरित होने का मौका भी मिलता है। इसके अलावा समूह में कार्य करने वाले लोगो को कैसे प्रेरित किया जाए यह किसी भी कंपनी के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। नई थ्योरी में इसके लिए थर्ड पार्टी का सुझाव दिया गया है कि वे एक बजट लेकर चले और अपने अनुरुप कर्मचारियों के कार्य पर ध्यान रखे जो एक समूह में काम कर रहे है किसी एक उत्पाद के विकास पर। इससे कर्मचारी प्रेरित भी होंगे और सभी को आगे बढ़ने का समान रुप से मौका भी मिल सकेगा। अपूर्ण कॉट्रेक्ट की श्रेणी में टीचर और स्कूल प्रबंधन के बीच का कॉट्रेक्ट आता है जिसमें कोई भी स्कूल प्रबंधन केवल बच्चो के अच्छे नम्बर आने पर टीचर की बोनस या इनसेंटिव नहीं दे सकता क्योंकि बच्चों का विकास केवल नम्बरो से नहीं बल्कि उसके पूर्ण व्यक्तित्व के विकास से होता है ऐसे में स्कूल प्रबंधन एकतरफा कॉट्रेक्ट नहीं कर सकता। दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था अब उस ओर जा रही है जहां पर नियोक्ता और कर्मचारी के बीच पारदर्शिता बेहद जरुरी है चाहे आई टी कंपनी हो या तेजी से बढ़ रहे शिक्षा उद्योग की बात करे सभी दूर कांट्रेक्ट थ्योरी के आधुनिक स्वरुप को अपनाया जाना चाहिए ताकि सभी को समान रुप से आगे बढ़ने का मौका मिले और किसी पर भी अन्याय न हो। अब तक हमारे यहां यह भी देखने में आता है कि किसी एक फर्म में लगातार तीन पीढ़ियों तक लोग बतौर कर्मचारी काम करते आ रहे है और इसमें किसी भी तरह का कांट्रेक्ट नहीं होता बल्कि एक दुसरे के प्रति सम्मान और समझौता होता है पर क्या वाकई इसमें कर्मचारी की सर्वांगिण प्रगति हुई है क्या उसे सही मायने में आगे बढ़ने का मौका मिला है? देश की कई कंपनियों में आज भी सामंती मानसिकता के अंश मौजूद है । कंपनिया कर्मचारियों की मजबूरी का फायदा वर्षो से उठाते आ रही है जिसके कारण कर्मचारी शोषित होने के लिए मजबूर है। कांट्रेक्ट थ्योरी को आधुनिक संदर्भ में देखा जाना चाहिए जिसमें कारपोरेट वर्ल्ड से लेकर शिक्षा के क्षेत्र,असंगठित क्षेत्र हो या छोटी मार्केटिंग फर्म में काम करने वाले लोग क्यों न हो यह नियोक्ता और कर्मचारी दोनों के फायदे की बाते करता है और सबसे खास बात यह है कि कर्मचारी लगातार काम करने के लिए प्रेरित होता है फिर चाहे कर्मचारी अकेला किसी एक उत्पाद पर कार्य कर रहा हो या फिर समूह में काम करने वाले कर्मचारियों की बात ही क्यों न हो। 

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