सामाजिक परिवर्तनों के दौर में दम तोड़ती दकियानूसी सोच

सेकंड मैरेज
सामाजिक परिवर्तनों के दौर में दम तोड़ती दकियानूसी सोच
- लड़कियां स्वयं के लिए पिता और मां के लिए पति खोज रही है
- नई सोच का समाज में भी स्वागत हो रहा है
(अनुराग तागड़े)
इंदौर। सामाजिक परिवर्तन क्रांती से होते है और यह क्रांती अगर मौन हो तब परिवर्तन आपके सामने कब आ जाते है आपको पता ही नहीं चलता। किसी भी लड़की के लिए शादी याने जिंदगी में परिवर्तन लाने वाला आनंद उत्सव रहता है परंतु अगर शादी के दस से पंद्रह वर्ष बाद अगर पति की मौत हो जाए तब महिला के लिए जीवन मरण का प्रश्न उत्पन्न हो जाता है क्योंकि गृहस्थी एक ऐसे मोड़ पर रहती है जहां पर सबकुछ सामने आकार तो लेते रहता है पर पूर्णता नहीं रहती है। अधुरे सपनों को नए धागों में पिरोने की हिम्मत भी महिला में नहीं रहती और भाग्य को कोसने और सारी जिंदगी विधवा का टैग लगाए जीने के अलावा कोई विकल्प सामने नहीं रहता। अगर महिला पढ़ी लिखी हो तब भी उसके सामने सुरक्षा यह मुद्दा काफी महत्वपूर्ण रहता है और कार्यस्थल से लेकर घर तक सभी दूर उसे बहुत कुछ सहन करना पड़ता है। परंतु अब समाज में इस प्रकार के उदाहरण भी सामने आने लगे है जिसमें सामाजिक परिवर्तन परिलक्षित हो रहे है और इन परिवर्तनो को हम सामने होते हुए देख पा रहे है। परिवर्तनों के सकारात्मक परिणाम भी आ रहे है और समाज में इन उदाहरणों को देखा समझा जा रहा है और इन पर चिंतन भी किया जा रहा है और यह सबकुछ काफी तेजी से हो रहा है। किस प्रकार से समाज में पति की मृत्यु के पश्चात सेकंंड मैरेज के लिए उदाहरण सामने आ रहे है यह देखने योग्य है और समाज के सभी तबको में इसका स्वागत भी होना चाहिए। 
असल घटना
 मेघा एक छोटे से कस्बे में से शहर में शादी होकर आई है। पति की अच्छी नौकरी है और दोनों बेहद खुश है। दोनों की एक बिटिया है जो दसवी कक्षा में पढ़ती है। आगे की जिम्मेदारियों को देखते हुए दोनों अपना आशियाना बनाने का विचार करते है और पति लगभग बीस लाख का कर्जा लेकर और कुछ पैसे अपने माता पिता से लेकर नया घर बनाते है। लगभग आठ महीनो में घर आकार लेने लगता है। मेघा पढ़ी लिखी है और वह घर भी संभालती हैै साथ ही वह एक स्कूल में टीचर भी है। अचानक एक दिन पति को हार्ट अटैक आता हैै और पति की मृत्यु हो जाती है। मेघा की जिंदगी उलट पलट हो जाती है और उसे समझ ही नहीं आता की क्या करे? पति की सारी कमाई घर बनाने में लग चुकी रहती है साथ ही ऊपर से बीस लाख का कर्जा, बेटी की पढ़ाई का खर्च। लगभग दो महीने मेघा को सामान्य होने में लगते है और वह फिर नौकरी करने लगती है परंतु नौकरी करने पर इतने पैसे नहीं मिलते की वह कर्जे की किश्त भी भर सके। घर बेचने से लेकर पति की खरीदी कार बेचने का विकल्प भी रिश्तेदार सुझाते है। मेघा अपने मायके वालो पर बोझ नहीं बनना चाहती और वैसे भी मायके में भाई पर माता पिता की बिगड़ती सेहत का बोझ पहले से ही है। ससुराल वालो का सहयोग रहता है पर वह अपने दम पर आगे बढ़ना चाहती है। मेघा की बेटी अपनी मां की स्थिति देखती है और उसे मां का लगातार समाज के साथ संघर्ष करते देखना ठीक नहीं लगता। वह खुद मेटरीमनी साईट पर जाकर अपनी मां के लिए पति और स्वयं के लिए पिता खोजने के लिए मां का बायोडाटा डाल देती है। जब यह मां को पता लगता है तब वह बेहद गुस्सा होती है पर बेटी अपनी मां को समझाती है कि मां अभी तुम्हारी उम्र नहीं हुई है और जब बुढापा आएगा तब तुम क्या करोगी? कुछ समय बाद ही रिश्ता भी आ जाता है और पहले पति की मृत्यु के एक वर्ष भीतर ही मेघा की दूसरी शादी हो जाती है। मेघा को सभी रिश्तेदार भी मनाते है और दूसरी शादी करने के लिए प्रोत्साहित करते है और साथ ही मेघा की बेटी की भी सभी तारीफ करते है। आज मेघा का आत्मविश्वास वापिस लौट आया है और दूसरे पति के साथ वह अपनी बेटी और दूसरे पति के बेटे के साथ खुशी से जीवन यापन कर रही है।
परिवर्तनों की बयार यूं भी बह रही है
- समाज में दूसरी शादी के लिए प्रेरित करने वाली कई वृद्ध महिलाएं भी है जो यह अच्छी तरह से जानती है कि समाज में बुढ़ापा अकेले नहीं काटा जा सकता और वे भी मेघा जैसी महिलाओं को सेकेंड मैरेज करने के लिए प्रेरित कर रही है।
- एक पहलू यह भी है कि अगर महिला को केवल पहले पति से लड़की है तब उसका सेकंड मैैरेज जल्दी हो जाता है और अगर लड़का है तब मुश्किल होती है सेकंड मैरेज देरी से हो पाता है।
- आज के इस तकनीक के युग में लड़कियां केवल अपना भविष्य नहीं बल्कि अपने मां के भविष्य के लिए भी बोल्ड स्टेप उठाने से हिचकती नहीं।
- सेकंड मैरेज को लेकर धाराणाए बदल रही है और समाज में अब इन्हें स्वीकार किया जा रहा है।
- महिलाएं स्वयं भी अब विधवा का टैग खुद हटाकर जिंदगी को स्वयं के लिए और स्वयं से ज्यादा बच्चों के लिए कैसे बेहतर बना सकती है इस पर ज्यादा सोच रही है।
काउसलिंग की कमी
यद्यपि समाज में इस प्रकार के उदाहरण किसी फिल्म या सिरियल की कहानी के जैसे लगते है पर यह क्या कम है कि इस प्रकार के उदाहरण सामने आ रहे है। अगर समाज में इस प्रकार के विवाह के लिए पूर्व में काउसलिंग की व्यवस्था हो या अकाल मृत्यु के पश्चात पत्नी की काउंसलिंग की व्यवस्था हो तब निश्चित रुप से परिवर्तन काफी तेजी से आ सकते है।
(नाम परिवर्तित कर दिए गए है)

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