नर्मदा सेवा यात्रा

नर्मदा सेवा यात्रा 

केदार खंड के साथ ही रेवा खंड का अपना अलग महत्व है
- साधु संतो में दोनो ही खंड प्रसिद्ध है
- आज भी कई साधु एकांत में तपस्या कर रहे है नर्मदा किनारे
(अनुराग तागड़े)
मां नर्मदा अपने आप में कई रहस्यों को आज भी समेटे हुए है चाहे वह परकम्मावासियों(परिक्रमा वासी) के अनुभव हो या फिर नर्मदापुराण में वर्णित बाते हो...मां नर्मदा अद्भुत,अलौकिक है। साधु सन्यासियों की बात की जाए तब सभी को केदार खंड दिल से पसंद है क्योंकि वहां पर साक्षात नारायण का निवास है। केदार खंड में बद्रीनाथ केदारनाथ व अन्य तीर्थ स्थल आते है। उत्तराखंड स्थित केदारखंड अपने आप में पवित्रता की परिभाषा है और सही मायने में देवभूमि ही है। यहां पर हिमालय का आकर्षण है और कई ऐसे गुप्त स्थान है जहां पर साधु संत लगातार तपस्या करते रहते है। 
दरअसल केदारखंड का अपना अलग ही महत्व है और यहां पर जप तप नियम से करने पर जल्द ही अनुभूतियां होती है। बद्रीनाथ,केदारनाथ,गंगोत्री,जमनोत्री के अलावा इनके आसपास की बड़ी पहाड़ियों पर गुफाओं में कई साधु संत मिल जाएंगे और जब इन महानआत्माओं से बात होती है तब सहज रुप से मध्यप्रदेश की बात होती है और सहसा सभी यह कहते है रेवाखंड...मां नर्मदा वाह क्या बात है आप नर्मदा के क्षेत्र से है। सही मायने में मन में मां नर्मदा के प्रति जो अगाध श्रद्धा है वह ओर भी बलवती हो जाती है। यही नहीं उत्तराखंड के पहले पड़ाव हरिद्वार गंगा किनारे भी मां नर्मदा को लेकर श्रद्धालुओं में अनन्य श्रद्धाभाव है।
ठंड बढ़ने पर रेवा खंड
देवभूमी पर अलग अलग स्थानों पर तपस्या करने वाले असंख्य साधु संत बद्रीनाथ के कपाट बंद होने के बाद धीरे धीरे मैैदानी इलाको की ओर आना आरंभ कर देते है और सभी का लक्ष्य रेवा खंड होता है। नवंबर से जनवरी के बीच कई पहुंचे हुए साधु रेवाखंड याने नर्मदा किनारे जरुर आते है। कई साधु संत यहां पर लगातार पांच से छ: माह रहते है और अपनी साधना में लीन रहते है। नर्मदा के किनारे बने हजारो की संख्या में आश्रमों में इन साधुओं को देखा जा सकता है जबकि कई साधु गुप्तस्थानों की ओर कूच कर जाते है ओर उन्हें आम जनता से दूर रहना ही पसंद है। ये साधु छोटी मोटी झोपड़ी बनाकर दिनरात यहीं पर साधना करते है। कभी किसी की नजर पड़ गई तब जल्द ही वहां से दूसरी किसी जगह पर रातोरात निकल जाते है। यहां का ठंड का मौसम भी इन्हें थोड़ा गरम लगता है और दिसंबर के अंत और जनवरी के आरंभ में इन्हें ठंड बढ़ने पर अच्छा लगता है। ये सभी मां नर्मदा के भरोसे अपनी साधना करते है। कोई यहां पर छ: माह खड़े खड़े निकाल देते है तो कोई मौन धारण करते है। सभी का साधना करने का अपना अपना तरीका होता है। नर्मदा किनारे बने आश्रम भी प्रतिवर्ष इन असल साधु संतो की आवभगत करने के लिए आतुर रहते है और अपनी ओर से इनकी हर प्रकार से सहायता करते है। 
लगातार दर्शन होते रहे यही लालसा
जो भी असल साधु नर्मदा किनारे साधना करता है उसकी यही दिली इच्छा रहती है कि मां नर्मदा का हरदम दर्शन होते रहे याने वे अपनी साधना स्थली और झोपड़ी बिल्कुल नर्मदा किनारे ही बनाते है ताकि लगातार मां नर्मदा के दर्शन होते रहे। इस दौरान  इनकी झोपडियां परिकम्मावासियों के लिए रात का ठिकाना भी बनती है। ये लोग जो भी खाना पकाते है उसमें से परिकम्मावासियों को पहले दिया जाता है। नर्मदे हर के जयघोष के साथ जैसे ही परिकम्मावासियों का आगमन होता है ये स्वयं सभी का स्वागत करते है और रात का खाना होने के बाद भजनोंं के दौर चलते है और मां नर्मदा के किनारे बिल्कुल अद्भुत भक्तिमय वातावरण बन जाता है।
इन साधु संतो का मां नर्मदा के बारे में यह कहना है जिनका वर्णन नर्मदापुराण में भी है
- प्रत्येक  कल्प में सभी सरितायें और समुद्र भी क्षीण हो जाते हैं, किन्तु सप्तकल्प में क्षीण होने पर भी न मृता याने नर्मदा नदी वैसी ही बनी रहती है और सभी कल्पों में यह कभी भी नष्ट नहीं होगी।
- नर्मदा तट पर तपस्या का महत्व अलग ही है...कुछ तपस्वी बारह वर्ष, कुछ छ: वर्ष अन्य तीन वर्ष में कुछ मुनि एक वर्ष, कुछ छ: माह में तथा तीन तीन माह तपस्या कर उत्तम सिद्धि को प्राप्त होते है।
- कलियुग में सैकड़ो हजारों मुनि नर्मदा के किनारे  आश्रय लेकर शिव सानिध्य को प्राप्त हुए है।
- नर्मदा में ओंकार स्वरुप श्री शंकरजी सदैैव सब भूत समुदाय से युक्त गण सहित यही निवास करते है।
- अमरकंटक पर्वत से समुद्र पर्यन्त नर्मदा के दोनों तटों पर साठ करोड़ साठ हजार तीर्थ है।
- ओंकार पर्वत पर करोड़ों रुद्र स्थित है वे सभी नर्मदा स्नान और चन्दन माला से संतुष्ट और प्रसन्न होते हैं ।
- नर्मदा के तट पर जो वृक्ष काल क्रम से गिर जाते हैं वे भी उस जल के स्पर्श से उत्तम गति को प्राप्त होते है।
- नर्मदा परिक्रमा के दौरान अगर आप नियमअनुसार परिक्रमा कर रहे है तब मां नर्मदा की कृपा आप पर सदा बनी रहती है और मां कभी भी अपने भक्तों को भूखा नहीं रहने देती।

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