प्रतिभा पर्व की निरंतरता बनी रहे

प्रतिभा पर्व की निरंतरता बनी रहे
(अनुराग तागड़े)
प्रजातांत्रिक मूल्यों को आम जनता में लगातार स्थापित करने के प्रयास में किसी भी सरकार को लगातार योजनाओं और घोषणाओं का सहारा लेना पड़ता है। इन योजनाओं में कई समय के अनुरुप होती है और कई योजनाओं को भुला भी दिया जाता है। मध्यप्रदेश सरकार ने स्कूल चलें हम अभियान के तहत प्रतिभा पर्व का आयोजन किया है और गत कई वर्षोंं से यह आयोजन होता आ रहा है और यह इस अभियान की सफलता का एक पक्ष भी रहा है। अक्सर शिक्षा के क्षेत्र में खासतौर पर स्कूली शिक्षा की ओर राज्य सरकारों का ध्यान कम ही जाता है और केवल खाने,गणवेश और साईकिल बांटने के बाद शिक्षा की गुणवत्ता पर किसी का ध्यान नही जाता है। सरकारी स्कूलों में प्रतिभाओं की खोज अपने आप में नकारात्मकता लिए नजर आता है क्योंकि सरकारी स्कूल में पढ़ने जाना या सरकारी स्कूल में बच्चा पढ़ा है यह बात हम लोगो के बीच सहज ग्राह्य नहीं होती। हमारे माता पिता सरकारी स्कूलों में पढ़े है और वे उस जमाने की बातें भी खूब बताया करते है कि फलां मास्टरजी का ऐसा दबदबा था कि उन्हें देखते ही स्कूल में सन्नाटा छा जाता था या यह भी कहा जाता है कि आज हमारा गणित इसलिए अच्छा है क्योंकि फलां सर ने हमें स्कूल में पहाड़े ऐसे याद करवाएं थे। आज वह स्थिति नहीं है क्योंकि  पांच सितारा सुविधाओं के आगे किताबें और शिक्षा दब गई है। विदेशी शिक्षा पद्धतियों का अनुसरण करने वाले स्कूलों की मनमानियों के आगे नतमस्तक आज के पालक शिक्षा के आधारभूत महत्व को दरकिनार कर स्कूलों को पहली कक्षा से ही फिनिशिंग स्कूल के नजरिए से देखने लगे है परिणाम यह हो गया है कि अब प्री स्कूलों का महत्व बढ़ने लगा है। इन प्री स्कूलों में पालको को किस स्कूल में बच्चे को भर्ती करवाना है उसके अनुरुप उन्हें व्यवहार करना सिखाया जाता है। इन प्री स्कूलों का उद्देश्य केवल बड़ी और स्थापित स्कूलों में प्रवेश करवाने के लिए बच्चों को तैयार करवाना है। बड़े निजी स्कूलों में भी विदेशी शिक्षा पद्धति के अनुरुप 
ध्वनि के द्वारा शब्दों को बनाना (फोनेटिक वर्ड मेकिंग) सिखाया जा रहा है जो भारतीय परिस्थितियों के अनुरुप नहीं है इतना ही नहीं मेंटल मेथेमेटिक्स का भी लोप हो चुका है। इसका परिणाम यह हुआ है कि निजी स्कूल में पढ़ने वाले पांचवी तक के बच्चों को सार्वजनिक जीवन में हिसाब करना नहीं आता क्योंकि उन्हें व्यवहारिक गणित का प्रयोग कैसे करना यह सिखाया नहीं जाता है। वही दूसरी ओर सरकारी स्कूलों में व्यवहारिक जीवन में पढ़ाई का प्रयोग कैसे किया जाए इस पर ज्यादा जोर रहता है। आज भी सरकारी स्कूलों में भले ही सुविधाओं का अभाव रहता है पर व्यवहारिक शिक्षा किसी भी निजी स्कूल से ज्यादा होती है। अभी भी सरकारी स्कूलों को लेकर आमजन में आस्था बाकी है और जिस प्रकार से प्रतिभा पर्व के माध्यम  से हर बच्चा प्रतिभावान है का आहन किया जा रहा है। प्रत्येक बच्चे का विषयगत मूल्यांकन इसके अंतर्गत होगा और साथ ही पालको के साथ भी संवाद स्थापित किया जा रहा है। इतना ही नहीं उपचारात्मक कदम भी उठाए जाएंगे। प्रतिभा पर्वो की निरंतरता अगर बनी रहे और इसके छोटे स्वरुप को भी प्रदेश के हर छोटे बड़े सरकारी स्कूलों में लागू किया जाए तब सही मायने में सरकारी स् कूलों के पुराने गौरव को लौटाया जा सकता है क्योंकि निजी स्कूलों की मनमानी और यथोचित परिणाम नहीं आने के कारण अब पालको के मन में भी यह प्रश्न उठने लगे है कि  मेहनत की कमाई का बड़ा हिस्सा निजी स्कूलों को देने के बाद भी बच्चे व्यवहारिकता में शून्य नजर आते है तब ऐसी शिक्षा का क्या मतलब? राज्य सरकार प्रतिभा पर्व के माध्यम से सरकारी स्कूलोंं में पढ़ रहे प्रतिभावान बच्चों का चुनाव भी कर सकती है और उन पर विशेष ध्यान देकर प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार कर सकती है। राज्य के शिक्षा तंत्र पर ध्यान देने से भविष्य के कई फायदे है और खासतौर पर आम जनता का सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता की ओर फिर ध्यान आकृष्ट होगा।

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