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जन्माष्टमी विशेष

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                                                                                                                                      बांसुरी पर आखिर क्या बजाते थे भगवान कृष्ण!  मोहक, मनमोहिनी, मन को हरने वाले मधुर सुरों से युक्त सुरों के समूह जब आपके तन मन को बस भक्ति रस में डूबों दे, तब उस माहौल और पवित्र सुरों की बात ही कुछ ओर होगी। स्वयं भगवान श्रीकृष्ण जब बांसुरी बजाते होंगे तब सुर भी अपने आप आत्ममुग्ध होते होंगे, इठलाते होंगे, इतराते होंगे कि हम तो सही मायने में श्रीमुख से ही निकल रहे हैं। हमारा सृजन तो स्वयं नारायण कर रहे है। सभी सुर भक्ति रस में पगे और मधुरता का चोला ओढ़कर बांसुरी से बाहर वातावरण में फैलते होंगे। क्या भगवान कृष्ण की बजाई बांसुरी की ध्वनि बहुत दूर तक जाती होगी! क्या भगवान कृष्ण बांसुरी पर राग आदि बजाते थे! उनकी बजाई बांसुरी केवल कर्णप्रिय नहीं बल्कि मनप्रिय और आत्मप्रिय होती थी। उन सुरों में कितनी पवित्रता और निरागसता होगी जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण बजाते होंगे। - अनुराग तागड़े   संगीत नारायण

प्रेम घटे कछु मांगत तें

प्रेम घटे कछु मांगत तें कोरोना ने कलाकारों को आर्थिक व मानसिक रुप से भी भीतर तक प्रभावित किया है (अनुराग तागड़े) मांगन से मरन भला...मत मांगे कभी भीख यही सदगुरु की सीख...कोरोनाकाल में मंच पर अपना कला का प्रदर्शन करने वाले कलाकारों की आर्थिक स्थिति ऐसी हो गई है कि वे किसी से कुछ मांग नहीं सकते क्योंकि ऐसा उन्होंने पहले किया नहीं है। मन में ऐसा ही भाव आता है कि मांगन से मरन भला। पद्मविभूषण पं छन्नुलाल मिश्र जैसे दिग्गज कलाकार ने अपने बेटे और पत्नी को खोया और ऐसे बुजुर्ग कलाकार के मन की स्थिति क्या होगी यह समझा जा सकता है। एक चैनल से इंटरव्यू में उनसे पूछा है कि खैलें मसाने में होरी दिगंबर आप खूब गाते है पर बेटे और पत्नी की मृत्यु के बाद वही शमशान की तस्वीरों ने आपको विचलित किया होगा। मेरा मानना है कि एक ऐसे बुजुर्ग कलाकार से जिसने अपनी पत्नी और बेटे को कोरोना में खोया है और जो अपनी आर्थिक सेहत और पत्नी बेटे के इलाज की असलियत जानने के लिए गुहार लगा रहा है उससे यह प्रश्न पूछना क्या जरुरी है ? कि आपको बेटे और पत्नी की मृत्यु के बाद शमशान की तस्वीरें कैसी लगी ? दरअसल भावनाशून्य होकर आप को

संकटकाल में सुरों की साधना भी बेमानी!

- अनुराग तागड़े (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी हैं) देवतत्व में निहित निरागस अवस्था या अध्यात्म में तुरीय स्थिति के बोध का स्मरण सच्चे सुर लगने पर होता है। सुर निर्मल होते है सत्य, सुंदर और निराकार होते हैं। एक तपस्वी की तरह सुर को साधने के लिए कलाकार सुरों से परिचय प्राप्त करता है और यह कठिनतम प्रक्रिया होती है, जिसे रियाज कहते हैं। यह रियाज उन सुरों से दोस्ती करने की प्रक्रिया से प्रेम तक पहुंचती है। यह सबकुछ साधक की साधना पर निर्भर करता है कि वह कितनी साधना की गहराई में उतरना चाहता है और कितने घंटो की मेहनत से इसे सीखना चाहता है। यह प्रक्रिया लगातार चलती ही रहती है। सुरों की खासियत यह है कि वे बड़े चंचल भी है अगर आप लगातार रियाज नहीं करेंगे, तब वे सध भी नहीं पाएंगे। आपको गच्चा दे जाएंगे और कहेंगे बहुत गुमान है अपने आप पर। 000 सुर साधने की प्रक्रिया बेहद कठिन है। इस यात्रा पर चलते बहुत हैं, पर नियत परिणाम कम ही लोगों को मिल पाते हैं। कई साधक यात्रा बीच में छोड़ देते हैं, कुछ ऐसे होते हैं, जो पहुंच भी जाते है। इतनी कड़ी साधना करने के बाद भी कोई कलाकार की श्रेणी में आ पात
  रंगकर्म ने  संक्रमण दौर में   नई राह खोजी   - अनुराग तागड़े (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी हैं) ------------------------------ -----------------     शौकिया रंगकर्म करने वाले कलाकार हजारों की संख्या में हैं। रंगकर्म करने के पीछे उनकी जिद और जुनून है। ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इस जिद और जुनून की पीछे क्या है! नाटक करना है तो पूरा दल लग जाता है। इससे मतलब यह नहीं कि मंच पर सामने कौन दिख रहा है, बस जुनून है सर्वश्रेष्ठ करने का। पार्श्वसंगीत से लेकर नेपथ्य के लिए टीम अपना श्रेष्ठ देने की कोशिश इसलिए करती है, दर्शकों को पसंद आना चाहिए। रंगकर्म में ही कर्म जुड़ा है, इस कारण इस क्षेत्र में ढेर सारी मेहनत और कुछ शोहरत है। कई कलाकार अपनी जिंदगी लगा देते हैं, तब जाकर उन्हें थोड़ी बहुत पहचान मिल पाती है। पर, वे इतनी मेहनत पैसा और पहचान के लिए नहीं, बल्कि उनके भीतर रंगकर्म के क्षेत्र में कुछ करने का जुनून होता है और या रंगकर्म का रंग उन्हें अपने में इस तरह भिगो देता है कि वे बस उसी में रमना चाहते है। उसमें रंगना चाहते है और वहीं करना चाहते हैं।    कोरोनाकाल में भी यह रंग अलग ही रूप मे

स्मृति शेष पद्मविभुषण गिरिजा देवी...

<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-4047862364003617" crossorigin="anonymous"></script> सांगितिक आभा मंडल के दैदिप्यमान ओज से वे दमकती रहती थी (अनुराग तागड़े) जितनी लरजती गरजती उनकी आवाज उतना ही मीठा उनका बोलना...शब्दों का चयन भी जैसे कौन सबसे ज्यादा मीठा है यह विचार करके करती थी। गायकी के कई स्वरुप आए...तैयारी वाले कलाकार भी आए और चले गए परंतु गिरिजा देवी अपनी साधना और कार्यक्रमों में मस्त...वे सुरों की सच्चाई और गहराई को जानती थी और सच्चे सुर ही परब्रह्म है इस पर उनकी सिद्धहस्तता थी। दुनिया जहां उन्हें ठुमरी क्वीन के नाम से जानती है पर रागदारी पर क्या पकड़ थी उनकी। किसी भी राग की शुद्धता को वे कभी नहीं छोड़ती थी और अमूमन यह कहा भी जाता है कि अगर कोई ठुमरी,चैती,होरी और गजÞल गायक है तब वह शास्त्रीय रागों के साथ उतना न्याय नहीं कर पाता है परंतु गिरिजा देवी मुंह में पान गिलौरियां भले ही चबा रही हो पर जब बात रागों की आती तब चेहरे पर भी गंभीरता और पवित्रता का अनुठा संगम देखने को मिलता था।

मुकुल राय के माध्यम से कैलाश जी का कद बढेगा?

- कैलाश विजयवर्गीय को कोर्ट से राहत भी मिल चुकी है (अनुराग तागड़े) इंदौर। भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को पार्टी ने पश्चिम बंगाल की कमान सौपी थी। मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी के तेवर और वहां पर टीएमसी कार्यकर्ता जिस प्रकार से व्यवहार कर रहे थे उससे साफ जाहिर था कि पश्चिम बंगाल में मामला वैसा नहीं है जैसा सोचा जा रहा था और पश्चिम बंगाल में चुनाव परिणाम में यह बात सामने आ भी गई थी। इसके बावजुद भाजपा महासचिव ने लगातार पश्चिम बंगाल में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। वहां के बड़े दिग्गज भाजपा नेताओं के साथ मिलकर कैलाश विजयवर्गीय ने विरोध प्रदर्शन और धरने भी दिए। टीएमसी से इस्तीफा देने के बाद बड़े नेता मुकुल राय ने भाजपा का दामन थामा है। मुकुल राय भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय से संपर्क में थे और उन्हें समारोह पूर्वक भाजपा में शामिल किया गया। भाजपा के लिए बंगाल में यह एक शुरुवात हो सकती है वही दूसरा पक्ष यह भी है कि मुकुल राय पर सारदा चिटफंड घोटाले में शामिल होने का आरोप लगा हुआ था और सीबीआई की जांच में भी उनका नाम है इस कारण उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया है। वही ममता बेनर्जी ने मुकुल राय क

कांग्रेस में आजकल क्या चल रहा है...नर्मदा यात्रा

(अनुराग तागड़े) नर्मदे हर...की गूंज और कांग्रेस नेता की पूछपरख दोनों में समानताओं का दौर जब चलने लगे तब अनुभवी कांग्रेसी नेता पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के दबदबे का एहसास होता है। नर्मदा किनारे वे यात्रा कर रहे है और कयासो का दौर लगातार चलते जा रहा है। शहर कांग्रेस से लेकर प्रदेश कांग्रेस में बस एक ही बात है क्या चल रहा इन दिनों कांग्रेस में बस नर्मदा यात्रा चल रही है। सही मायने में नर्मदा यात्रा के माध्यम से पूर्व मुख्यमंत्री छालो,पैरों का दर्द और यात्रा करने का सुकुन का एहसास जरुर कर रहे है परंतु यह यात्रा स्पंदन पैदा कर रही है कांग्रेस में और आम कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में। दिग्विजय सिंह भले ही रोजाना कुछ किलोमीटर पैदल चल रहे हो पर नर्मदा किनारे से कई किलोमीटर दूर तक यात्रा का असर नजर आता है। यात्रा को देखादेखी की यात्रा शुरुवाती दौर में कहा जा रहा था परंतु जिन लोगो ने यात्रा को करीब से देखा वे कहने लगे कि ये क्या नेताजी सही मायने में चल रहे है और नर्मदा किनारे पैदल ही चल रहे है और कोई दिखावा नहीं। प्रदेश कांग्रेस के भीतर हल्के उत्साह की लहर अभी भी न महसूस की जा रही हो परंत