संकटकाल में सुरों की साधना भी बेमानी!

- अनुराग तागड़े (लेखक वरिष्ठ पत्रकार और रंगकर्मी हैं) देवतत्व में निहित निरागस अवस्था या अध्यात्म में तुरीय स्थिति के बोध का स्मरण सच्चे सुर लगने पर होता है। सुर निर्मल होते है सत्य, सुंदर और निराकार होते हैं। एक तपस्वी की तरह सुर को साधने के लिए कलाकार सुरों से परिचय प्राप्त करता है और यह कठिनतम प्रक्रिया होती है, जिसे रियाज कहते हैं। यह रियाज उन सुरों से दोस्ती करने की प्रक्रिया से प्रेम तक पहुंचती है। यह सबकुछ साधक की साधना पर निर्भर करता है कि वह कितनी साधना की गहराई में उतरना चाहता है और कितने घंटो की मेहनत से इसे सीखना चाहता है। यह प्रक्रिया लगातार चलती ही रहती है। सुरों की खासियत यह है कि वे बड़े चंचल भी है अगर आप लगातार रियाज नहीं करेंगे, तब वे सध भी नहीं पाएंगे। आपको गच्चा दे जाएंगे और कहेंगे बहुत गुमान है अपने आप पर। 000 सुर साधने की प्रक्रिया बेहद कठिन है। इस यात्रा पर चलते बहुत हैं, पर नियत परिणाम कम ही लोगों को मिल पाते हैं। कई साधक यात्रा बीच में छोड़ देते हैं, कुछ ऐसे होते हैं, जो पहुंच भी जाते है। इतनी कड़ी साधना करने के बाद भी कोई कलाकार की श्रेणी में आ पाता है। लेकिन, तब भी ये साधना यहीं समाप्त नहीं होती! सुरों का देवत्व प्राप्त नहीं हो जाता। एक कलाकार की अपनी साधना और मंचीय प्रस्तुति इसमें काफी अंतर आ जाता है। जैसे कोई देव प्राप्ति के लिए साधना करने के बाद उच्च अवस्था प्राप्त करने के भी बाद उस अवस्था से प्राप्त ज्ञान को सभी में बांटने की प्रक्रिया आरंभ नहीं की जाती है। तब वह ज्ञान वहीं सडांध मारने लगता है। उसमें अहं नामक बीमारी लग जाती है। इस कारण अगर आपकी साधना केवल स्वयं तक सीमित है और आप परमानंद को प्राप्त कर चुके हैं, तब उस आनंद को आम जनता के बीच जागृत करने के लिए बांटना भी जरूरी है। एक कलाकार अपनी साधना करने के बाद मंचीय प्रस्तुतियों को किस प्रकार आकार देना है और दर्शकों तक कब और क्या पहुंचाना है। इस बारे में अध्ययन गुरुओं के साथ मंच साझा करना सिखाता है। यह प्रक्रिया भी कठिन है, क्योंकि आप गुरु की सीख को लांघकर गुरु से आगे जा नहीं सकते! जितना मौका मिले बस उसका ही इंतजार करना पड़ता है। यह मौके भी बार-बार नहीं मिलते, बल्कि कई बार अगर आप मौके पैदा करने की भी कोशिश करते हैं, तब यह बात गुरु तक तत्काल मंच पर पहुंच ही जाती है। फिर आगे का रास्ता कम से कम उस कार्यक्रम के लिए बंद ही हो जाता है। लेकिन, मंझने के बाद एक कलाकार का आकार सामने आता है और सुनने वाले श्रोताओं को पता चलता है कि यह अभी नवोदित कलाकार तो है। पर, रियाज अच्छी कर रहा है और अपने गुरु का नाम आगे बढ़ाएगा! लेकिन, थोड़ी और मेहनत की जरुरत है। इस प्रकार की बातें नवोदित कलाकार के लिए की जाती है। मेहनत और लगन के बाद अगर सफलता का स्वाद नहीं चख पाए, तब आप भाग्य को दोष देने लगते हैं। परिस्थितियों को दोष देने लगते हैं। अगर देशकाल की परिस्थतियां इस आग में घी का काम करें, तब मुश्किल होना स्वाभाविक है। एक कलाकार बनने के सफर में बहुत सारे त्याग जुड़े होते हैं और यह सफर बिल्कुल आसान नहीं होता। इसमें एक कलाकार ही नहीं बल्कि उसके परिवार का त्याग भी शामिल है। कलाकार चाहे जितना बड़ा हो, उसे लगातार कार्यक्रम भी नहीं मिलते और न उसे इस बात की ग्यारंटी होती है कि महीने दर महीने उसे अपना और परिवार का पेट पालने के लिए पैसे मिलते रहेंगे। यह अपने आप में दुविधा वाली स्थिति होती है। कई कलाकार इस समय तक आत्ममुग्धता की अवस्था भी प्राप्त कर लेते है और उन्हें यह लगने लगता है कि हमें यथोचित साधना कर ली और अब हमें आयोजक घर बैठे बुलाने आ जाएंगे प्रस्तुति देने के लिए। पर ऐसा अक्सर होता नहीं है। अब वह जमाना गया, जब कलाकार को लगातार यह बताना पड़ता है कि वह किस स्तर का है। अगर इस दौरान देशकाल की परिस्थितियां बदल गई और माहौल नकारात्मक होने लगा, तब इन कलाकारों की शामत आ जाती है। वर्तमान की ही बात करें तो कई कलाकार केवल घर पर ही रियाज करते रहे! जो टेक्नोसेवी थे उन्होंने ऑनलाइन कार्यक्रम भी दिए और आम जनता के बीच यह संदेश दिया कि हम प्रस्तुतियां दे रहे है। परंतु ऑनलाइन कार्यक्रमों में वह मजा नहीं है, यह बात भी साबित हो गई। कम से कम संगीत की प्रस्तुतियों के बारे में तो यही कह सकते है। कोरोना के दौरान और बाद में ऐसे कई नवोदित कलाकार है जिनके सामने रोजी रोटी का संकट खड़ा हो गया और वे कहने भी लगे कि 'सुर ना सजे क्या गाऊं मैं!' ऐसी परिस्थिति ठीक नहीं है। इन कलाकारों की कलाकारी मापने का कोई पैमाना नहीं है इनकी कोई ग्रेडिंग नहीं है इस कारण कोई सहायता भी नहीं है। फिर पेट की भूख परिवार की जिम्मेदारी आर्थिक तंगी के आगे सच्चे सुर भी पस्त हो जाते है। इतने वर्षों की रियाज और मेहनत पर प्रश्न चिन्ह उठने लगता है। ऊपर से परिवार के ताने कि अब क्या करोगे! घर पर पैसा तो चाहिए! एक कलाकार की सारी कलाकारी और प्रतिभा धरी रह जाती है और मजबूरन उसे रियाज का समय कम करके नौकरी करना पड़ती है। इन रियाजी सुरों की परवाह किसे है, इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। वे किसके पास जाए और क्या करे यह प्रश्न शाश्वत है जिसका उत्तर किसी के पास भी नहीं!

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