प्रेम घटे कछु मांगत तें

प्रेम घटे कछु मांगत तें कोरोना ने कलाकारों को आर्थिक व मानसिक रुप से भी भीतर तक प्रभावित किया है (अनुराग तागड़े) मांगन से मरन भला...मत मांगे कभी भीख यही सदगुरु की सीख...कोरोनाकाल में मंच पर अपना कला का प्रदर्शन करने वाले कलाकारों की आर्थिक स्थिति ऐसी हो गई है कि वे किसी से कुछ मांग नहीं सकते क्योंकि ऐसा उन्होंने पहले किया नहीं है। मन में ऐसा ही भाव आता है कि मांगन से मरन भला। पद्मविभूषण पं छन्नुलाल मिश्र जैसे दिग्गज कलाकार ने अपने बेटे और पत्नी को खोया और ऐसे बुजुर्ग कलाकार के मन की स्थिति क्या होगी यह समझा जा सकता है। एक चैनल से इंटरव्यू में उनसे पूछा है कि खैलें मसाने में होरी दिगंबर आप खूब गाते है पर बेटे और पत्नी की मृत्यु के बाद वही शमशान की तस्वीरों ने आपको विचलित किया होगा। मेरा मानना है कि एक ऐसे बुजुर्ग कलाकार से जिसने अपनी पत्नी और बेटे को कोरोना में खोया है और जो अपनी आर्थिक सेहत और पत्नी बेटे के इलाज की असलियत जानने के लिए गुहार लगा रहा है उससे यह प्रश्न पूछना क्या जरुरी है ? कि आपको बेटे और पत्नी की मृत्यु के बाद शमशान की तस्वीरें कैसी लगी ? दरअसल भावनाशून्य होकर आप कोई भी साक्षात्कार लेंगे तब कलाकार के मन की पीड़ा या दु:ख या सुख को साझा नहीं कर पाएंगे। संगीत के साक्षात्कारों में खबर ढूंढना या उस कलाकार के मर्म को जानना और उसे सामने लाना दोनों अलग बातें है। खैर पं छन्नूलाल मिश्र की बातें सुनी जा रही है परंतु ऐसे कई कलाकार है बात केवल शास्त्रीय संगीत की नहीं बल्कि सुगम संगीत,फिल्म संगीत से लेकर चित्रकला, रंगकर्म व अन्य कलाओं से जुड़े हर छोटे बड़े कलाकार की है जिनके सामने रोजी रोटी का संकट है और कई लोगो ने अपने आप को बदल भी लिया है। उन्होंने परिस्थितियों के अनुरुप अपने आप को ढाल लिया है और पैसे कमाने के लिए अब कुछ अलग करने की भी ठान ली है। एक कलाकार को पीड़ा होती है जब वह किसी से अपनी आर्थिक मजबूरियों को साझा करता है वह किस मन से अपनी कला के साथ संवाद करे,रियाजÞ करे जब रोटी का संकट हो तो सुर लगाने में मन कैसे लगे ? सरकार को सोचना चाहिए क्योंकि यह संकट अभी का नहीं है परिस्थितियां सुधरने में समय लगेगा और फिर कलाकारों का नंबर बहुत बाद में आएगा जब शिक्षकों की ही कोई सुनवाई नहीं तब परिस्थितियां कोई भी समझ सकता है कि कलाकारों को कितना इंतजार करना पड़ेगा।

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