मां मुझे मोबाईल दिला दे मैं भी बडा बन जाऊ



बाल दिवस की सुबह से शाम हो गई पर बचपन ढूंढने पर भी नहीं मिला...सुबह की हल्की ठंड में बस्ते के बोझ के तले दबे बच्चें होमवर्क पूरा किया की नहीं की डांट सुनते हुए ओके ममा बाय कहते हुए बस में चढ़ते नजर आएं। बाल दिवस था लिहाजा स्कूलों में आभासी बाल दिवस एक इवेंट के रुप में मनाया गया जिसमें कार्यक्रम कम सेल्फियां और फोटो ज्यादा लिए गए। बचपन की बातें खूब हो रही थी एक जगह पर वे बच्चे नहीं थे। हाथों में मोबाईल लिए चिडचिड़े वे समय से पहले बड़े होने का प्रयास कर रहे थे। मां मुझे मोबाईल दिला दे मैं भी बडा बन जाऊ के तर्ज पर बच्चे अपने बचपने को तरस रहे है क्योंकि हमारा शहर भी अब मेट्रो शहरों ती तर्ज पर आभासी हो चला है। कोचिंग क्लासेस और हॉबी क्लासेस के बीच माता पिता की इच्छाओं आकांक्षाओं को लादते फिर रहे मासूमों का बचपन वीकेंड पर हेंगआउट में खो जाता है। पिज्जा बर्गर और इलेक्ट्रानिक गैजेट के मोह में वह अपने बचपन का सौदा कर जाता है जिसकी उसे बिल्कुल भी खबर नहीं है। माता पिता को यह बात नजर नहीं आती और वे लगातार अपने साथ बच्चों को भी मशीन बना रहे है। गीली मिट्टी में खेलने से रोकने वाले माता पिता बच्चों की इम्यून शक्ति बढ़ाने के लिए महंगा टॉनिक देते है पर बचपन को बनाएं रखने के लिए उसे खेतो खलिहानों से लेकर गांवो में ले जाने से परहेज करते है। बच्चों का बचपन बस के इंतजार में और बस के सफर में जाया हो रहा है मेरे शहर के बच्चें चिडचिड़े हो रहे है अवसाद में जा रहे है पर हमने बाल दिवस तो मना ही लिया है बिना सोचे समझे की बचपन को कैद करके बाहर उसे कैसा होना चाहिए बचपन यह दिखा रहे है। कोचिंग क्लासेस की खिड़िकियों से बाहर ताकती बच्चों की नजÞरे अपने बचपन को ढूंढती वे जल्दी बढ़े नहीं होना चाहते बल्कि माता पिता उन्हें जल्दी बडा कर रहे है और यहीं हमारी विडंबना है। लंगड़ी,सितोलिया,डिब्बा डाऊन,साखलबंदी,छिपाछाई खेलने वाले बच्चे मिलते नहीं...मैसी और रोनाल्डो की टी शर्ट पहने केवल कारों से भरी गलियों में फुदकते नजर आते है वे चाहते है खेलना पर यह शहर उन्हें खेलने नहीं देता क्योंकि गलियों में लोगो के पास दो दो कारें हो गई है और कार पर फूटबाल लग गई तो अंकल नाराज हो जाएंगे। हम छीन रहे है बचपन और छीन रहे बच्चों का खेलना कूदना...इस पर विचार करे और कम से कम अपनी गलियों में खेलने वाले बच्चों को प्रोत्साहित करे देखे बच्चें खिल उठेंगे। 
(अनुराग तागड़े)

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