इनका खाना और उनका खाना

परिवारों में अक्सर कहा जाता है कि कौन कितनी रोटी खा रहा है इसकी गणना नहीं की जाना चाहिए नजर ग जाती है जिसका असर जो खाना खा रहा है उसकी सेहत पर पड़ती है खासतौर पर बच्चों को ेकर इस कार की बाते कही जाती है। बच्चे तो बच्चे है वे क्या जाने नजर गना और उतरना...वे बस इतना जानते है कि खाना खाने के ि ए होता है और भूख गे तो खाना खाओं। भूख एक जैसी होती है चाहे अमेरिका हो या भारत या फिर मध्य देश क्यों न हो। एक शोध हुआ अमेरिका में जिसमें यह कहँा गया कि अमेरिकी बच्चे मोटे होते जा रहे है तथा उन्हें ह्रदय रोग होने की संभावना इतनी ज्यादा है कि उनकी आयु मात्र 45 वर्ष की बताई गई है। वही दुसरी और हमारे मध्य देश की बात करे तो स्वयं राज्य सरकार यह स्वीकार कर चुकी है कि देश में 48 हजार कुपोषित बच्चे है। अमेरिका में बच्चों पर जो शोध किया गया उसमें यह पाया गया कि बच्चों का ह्रदय तीस वर्ष के व्यक्ति जैसा काम कर रहा है और ह्रदय के वाल्व्स पर अत्याधिक चर्बी वा ा खाना खाने के कारण ऐसा असर हुआ है कि बच्चे का ह्रदय ज्यादा से ज्यादा 25 वर्ष और काम कर पाएगा।इनका को ोस्ट्रो ेव इतना उच्च था कि डॉक्टर भी आश्चर्य में पड़ गए। अमेरिका में 2 से 19 वर्ष के आयु के 16 तिशत बच्चे मोटे है। अमेरिका में यह तक कहा गया है कि वर्ष 2035 तक ह्रदय रोगियों की संख्या में एक ाख मरीज और जुडते जाएँगे। यही नहीं आस्ट्रि या में भी 991 बच्चों पर शोध किया गया और यह पाया गया कि 5 से 15 वर्ष के बच्चों के ह्रदय का आकार सामान्य से बड़ा हो गया है। खे ोगे कूदोगेे रहोगे स्वस्थ्यजंक फूड खाने के कारण अमेरिका सहित विकसित देशो में बच्चों की यह हा त हो रही हैं। माता पिता को बच्चो के ि ए समय नहीं होने के कारण वे उनकी हरेक इच्चा की पूर्ती करते जा रहे हैं। घर से बाहर खे ने की वृत्ति में कमी आती जा रही है क्योंकि बच्चे ज्यादा से ज्यादा देर टि विजन देखना चाहते है। भारत की बात करे तो उच्च मध्यमवर्गीय बच्चों में मोटापे की समस्या सबसे ज्यादा देखी जा रही है। यही नहीं बच्चों में भी डायबिटिज होने की घटनाएँ सामने आ रही है। विडियो गेम्स,टीवी के कारण बच्चे मैदान में खे ना भु ते जा रहे है। हम तो अब भी कुपोषितमध्य देश की बात करे तो देश में कुपोषण से बच्चों की मृत्यु की बात भ े ही सरकार स्वीकार न करे पर एक बात तो है कि देश के कई गांवो के बच्चे अब भी दा रोटी खाने के सपने ही देखते है उनके ि ए पिज्जा बर्गर जैसे शब्द किसी अन्य भाषा के ही गते है। खंडवा व सतना जि ो में मारे गए बच्चे कुपोषण से मरे या नहीं यह अब बहस का मुद्दा नहीं है बल्कि बहस यह होना चाहिए कि गरीब और अमीर के रहन सहन में भारी अंतर होता है पर एक देश और एक ही देश में खान पान में इतना अंतर और वह भी इतना की देश के इंदौर,भोपा व अन्य शहरो में मॉल्स में उच्च मध्यवर्गीय परिवार के बच्चे पिज्जा और बर्गर के बिना मानते नहीं जबकि इसी देश में बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे है। समस्या दोनों और है और कारण एक ही खाना इनके पास खाना ही नहीं है और उनके खाने में सबकुछ से भी ज्यादा है और असर एक हो रहा है दोनों ही के बच्चे बीमार पड़ रहे है।

टिप्पणियाँ

Yogendramani ने कहा…
आपने अच्छा प्रश्न उठाया है।कथित राष्ट्र निर्माता गरीबी मिटाने की जितनी भी योजनाऐं बनाते हैं उन योजनाओं को प्रायः नेता और योजनाओं को लागू करने वाले ही अपनी भूख मिटाने में ही ख्त्म कर देते हैं
बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।
Vivek Ranjan Shrivastava ने कहा…
ghee kahan gaya ..khichari men.

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