पुलिस की लाठी और कांग्रेस नेताओं की कदकाठी


(अनुराग तागड़े)
बड़ा कष्टप्रद होता है लाठी खाना और वह भी पुलिस की नहीं किसी ओर से...पुलिस जिस किसी को भी लाठी मारती है देखभाल के मारती है पर यहां तो सही मायने में लाठियां भांजी गईं। अब इन लाठियों से इंंदौर शहर में कांग्रेस की स्थिति समझ आ रही है पर लाठियों से मिले दर्द की अनुगूंज भोपाल में सुनाने की तैयारी आरंभ हो गई है। प्रदेशभर से लाठी खाए कांग्रेसी अपनी आपबीती सुनाने के लिए 22 फरवरी को भोपाल में इकठ्ठा हो रहे हैं। शायद आपस में दर्द बांटने से कुछ कम हो। 
कांग्रेस के साथ हमेशा से ही नेता ज्यादा कार्यकर्ता कम की समस्या रही है। इस समस्या को स्वयं कांग्रेसी नेता भी शाश्वत मानते हैं। कांग्रेस नेताओं की कदकाठी को लेकर इंंदौर सहित संपूर्ण प्रदेश के शहरों से लेकर कस्बों तक आम जनता में शंका है। यह शंका इस बात की है कि कांग्रेस के नेता एक मंच पर अलग-अलग दिशा में मुँह करके बैठते हैं और ऊपर से रे-बेन का काला चश्मा लगा लेते हैं ये विरोध प्रदर्शन क्या खाक करेंगे पर इस बार बात अलग लग रही है क्योंकि लाठी खाने के बाद की सूजन अब भी दर्द दे रही है। पिट जाने के बाद की स्थितियां शायद अन्य कांग्रेसियों को सोचने पर मजबूर कर रही हैं। अब तो विरोध प्रदर्शन करने की बात को लेकर ही कांग्रेसियों में सिहरन दौड़ रही है कि कहीं ऐसा न हो कल अपना नम्बर लग जाए, इस कारण पिट चुके और पीटे जाने के बीच की स्थितियों के कारण कांग्रेसी एक होकर प्रदर्शन की बात कर रहे हैं। कांग्रेसी यह भी कह रहे हैं कि पुलिस की लाठी से डर नहीं लगता साहब...अब तो भाजपा की पुलिस से डर लगता है पता नहीं आव देखा न ताव कहीं पर भी लठ्ठ पिन्ना दिया। कांग्रेसी एक होने का ढोंग बड़े ही नाटकीय अंदाज में करते हैं। अब यह अंदाज भी इतना पिटा पिटाया हो गया है कि कांग्रेस का विरोध प्रदर्शन हो या पुतला दहन कार्यक्रम पुलिस और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के बीच टग आॅफ वॉर (रस्साखींच) प्रतियोगिता होती है जिसमें हँसते-हँसते मीडिया के सामने फोटो खिंचवाने की होड़ लगी रहती है। विरोध प्रदर्शन करना भी अब हर कांग्रेसी नेता के बस की बात नहीं रही क्योंकि कुछ पुराने नेताओं को केवल चाय, पोहे और समोसे पर कार्यकर्ताओं को इकठ्ठा करने की आदत थी परंतु अब जमाना बदल गया है, हाईटेक हो गया है और विरोध प्रदर्शन के पहले ही कार्यकर्ताओं को इसके फायदे-नुकसान देखना आ गया है। इस कारण केवल किसी बड़े कांग्रेसी नेता के कहने भर से वे इकठ्ठा नहीं होते बल्कि प्रलोभनों की पूरी फेहरिस्त उनके सामने रखना पड़ती है तब जाकर प्रदर्शन के लिए इकठ्ठा होते हैं। अब 22 फरवरी को जो भोपाल में प्रदर्शन है वह दर्द से उभरी टीस के कारण है जिसमें वजूद की बात है अपनों के पिट जाने का गम है और अपने आप को प्रदेश में बनाए रखने का प्रश्न है। इसके बावजूद कुछ कांग्रेसी नेताओं को फिर से पिट जाने का डर साल रहा है कहीं फिर पुलिस ने लाठियां पिन्ना दीं तो कही के नहीं रहेंगे पर विरोध प्रदर्शन के माध्यम से ही पार्टी को एक बनाए रखने की ताकत मिलती है फिर भले ही बड़े सेलिब्रिटी नेता लाठीचार्ज होते ही अपनी-अपनी ए.सी गाड़ियों में गायब हो जाएं चलेगा पर विरोध प्रदर्शन किसी भी कीमत पर होना ही चाहिए। प्रदेश अध्यक्ष की ताजपोशी को लेकर भी कवायदें तेज हैं। इस कारण भी इस बार भोपाल में होने वाले कांंग्रेस के प्रदर्शन से यह उम्मीद की जानी चाहिए कि भले ही भीड़ इकठ्ठा न हो पर विरोध प्रदर्शन के दौरान कांग्रेसी एक तो नजर आएं...बाकी तो जनता सब जानती है।
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