महाराजा का अंतिम सरकारी इलाज

सरकार चाहे जितने बडे उद्योगपतियों और विशेषज्ञों की सेवा लेकर एअर इंडिया को घाटे से उबारने की कोशिश करे...एअर इंडिया में बदलाव लाना बड़ा मुश्किल कार्य हैैं। दरअसल एअर इंडिया की तबियत ठीक करने के लिए बार बार सरकारी अस्पताल में ले जाने की जरुरत नहीं हैं। महाराजा के तबियत बिगड़ने को लेकर कई प्रश्न उठे है और सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि तबियत अचानक तो नहीं बिगड़ी? गत पांच सात वर्षो से लगातार एअर इंडिया की सेवाओं में कमी देखी जा रही थी और जहां तक लाभ कमाने की बात है वह दूर की कौडी नजर आ रही थी। सरकार ने इन पांच सात वर्षो में निजी एअरलाईंन्स को बढ़ाने के लिए काफी प्रयत्न किए और उन्हें सुविधाएँ भी दी पर किसी ने भी एअर इंडिया की तरफ क्यों नहीं ध्यान दिया? विमान में यात्रा करने वाले आम भारतीयों का एअर इंडिया से मोह भंग होने के एक नहीं अनेक कारण है जिनमें सबसे बड़ा कारण यही है कि एअर इंडिया के कर्मचारी स्वयं महाराजा जैसा व्यवहार करते हैं। निजी एअरलाईन्स में यात्रा करने के बाद एअर इंडिया की सेवाओं में कमी नजर आना सामान्य बात है। उड़ान के दौरान विमान परिचारिकाओं का व्यवहार हो या फिर उड़ान में देरी भी आम हैं। उड़ान के दौरान दिए जाने वाले खाने की गुणवत्ता से लेकर विमान की साफ सफाई तक प्रश्न उठे थे पर एअर इंडिया की तरफ किसी का भी ध्यान नहीं गया आखिर क्यों? कारण साफ है एअरलाईन्स उद्योग ऐसे उद्योग की श्रेणी में आता है जिसे सबसे ज्यादा संवेदनशील माना जाता हैं। दरअसल पर्यटन उद्योग से सीधे जुड़ाव होने के कारण अंतराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी बड़ी घटना व दुर्घटना का असर एअरलाईन्स पर पड़ता ही है। एअर इंडिया पर भारत में प्रतिस्पर्धा का असर पड़ा ही साथ ही कर्मचारियों की हठधर्मिता, युनियनबाजी और खासतौर पर सरकारी तंत्र ने एअर इंडिया की तबियत पर बुरा असर डाला। पर तबियत बिगडती गई बावजुद इसके अरबों रुपए के नए विमानों के आर्डर दिए गए। सेवाओं पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया गया और तबियत संभालने वाले सरकारी तंत्र ने ही मुफ्त में यात्राओं के कारण इसे आईसीयू में भर्ती कर दिया गया। जे आर डी टाटा ने बड़े जतन से एअर इंडिया को बड़ा स्वरुप दिया था और 60 के दशक तक वे स्वयं एअर इंडिया के कर्मचारियों के व्यवहार से लेकर विमान के भीतर परोसे जाने वाले खाने की गुणवत्ता की जांच स्वयं करते थे। इसके बाद मोरारजी देसाई के आने के बाद एअर इंडिया को सरकारीकरण की आदत लग गई और उसी के बाद युनियन भी बनी और कर्मचारियों की मनमानी से लेकर इसका सरकारी शोषण आरंभ हुआ। वर्तमान की बात करे तब यही तथ्य सामने आ रहे है कि कर्मचारी अब भी ग्राहकों की अनदेखी करते है उन्हें यह समझ ही नहीं आ रहा है कि आम भारतीय द्वारा जमा किए गए कर से ही वे अपना वेतन पाते है और अगर उन्होंने अच्छी सेवाएँ दी तो उसका फायदा भी उन्हें ही मिलेगा। एअर इंडिया के कर्मचारियों को नौकरी का भय नहीं हैं इस कारण भी उनका व्यवहार ऐसा हो गया हो ।अब एअर इंडिया के लिए पुन: उसके मूल मालिक याने टाटा को निमंत्रित किया गया हैं। रतन टाटा के अलावा अन्य उद्योगपतियों को भी इसके बोर्ड में रखे जाना है। वे एअर इंडिया को पुन: फायदे में कैसे लाया जाए इस पर अपनी राय रखेंगे और हो सका तो उन्हें इतने अधिकार दिए जाएँगे कि वे कोई बड़ा निर्णय ले सके। पर बात सीधी सी है जिसे सरकार समझ ही नहीं पा रही है कि महाराजा को अब तो अपने पैरों पर चलने दो क्यों सरकारी हाथ उसे हरदम सहारा देता रहता हैं। इस मामले में ब्रिटिश एअरवेज का उदाहरण सामने है। जब ब्रिटेन में ब्रिटिश एअरवेज का हाल कुछ वर्षो पूर्व इसी प्रकार का था तब तात्कालिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर ने कहा था कि ब्रिटिश सरकार एअरवेज को चलाने के लिए उपयुक्त नहीं है इस कारण इसका निजीकरण ही करना होगा। इसके बाद ब्रिटिश एअरवेज ने न केवल लाभ कमाया बल्कि आज वे अपनी बेहतरीन सेवाओं के लिए जाने जाते हैं। एअर इंडिया के लिए यह आखिरी मौका है जब सरकारी बुस्टर इंजेक्शन के सहारे आईसीयू से बाहर आए। पर अस्पताल से बाहर आने पर एअर इंडिया को अपने पैरों पर ही चलना होगा और जिस प्रकार से प्रतिस्पर्धा दिख रही है उसके अनुसार दौड़ ही लगानी होगी वरना एअर इंडिया को निजी हाथों को सौपने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा। और वैसे भी जब निजी एअरलाईंन्स ही संकट का सामना कर रही हैं ऐसे में एअर इंडिया को सरकार द्वारा वित्त पोषित करना कहाँ कि समझदारी हैं। निजी एअरलाईन्स घाटे के ढेर पर बैठी है और यह भी देख रही है कि एअर इंडिया भी बड़े घाटे के ढेर पर बैठी है पर सरकार ने उसके मुँह में लालीपाप और हाथ में झुनझुना पकडा दिया हैं। किसी भी विकसित होती अर्थव्यवस्था के लिए यह सही लक्षण नहीं है। सरकार को निजी एअरलाईन्स के दर्द को समझना होगा और दवा दारु न करते हुए कम से कम उनकी कराह को कम करने के लिए थोड़े बहुत प्रयास तो करने ही होंगे जिस प्रकार से दमानिया, एनई पीसी जैसी एअरलाईन्स हश्र हुआ था ठीक वैसा ही इन एअरलाईन्स के साथ न हो।

(अनुराग तागड़े)

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