बजट से मायूस क्यों?

( अनुराग तागड़े)
बजट को ेकर शहरी क्षेत्रों में मायूसी भरी तिक्रियाएँ दी गई । दरअस इस बार के बजट को अगर ध्यान से देखे तब सरकार का संपूर्ण ध्यान ग्रामीण क्षेत्र की ओर ही था और होना भी चाहिए था। मल्टीप् ेक्स में सिनेमा देखकर और पिज्जा बर्गर संस्कृति को आत्मसात कर चुके बड़े शहर यह भू जाते है कि देश का अधिकांश हिस्सा आज भी गांवों में ही बसता हैं। गांव हमारी रीढ़ है और अगर उन्हें आगे आने का मौका नहीं मि रहा हैं तब उनके ि ए बजट में ावधान जरुर होना ही चाहिए। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार ग्यारंटी योजना (नरेगा) काफी ोि य रही। इसमें 100 दिन का रोजगार दिया ही जाता हैं। वैसे इस योजना को ेकर कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि इस कारण ग्रामीण क्षेत्रों में किसानों ने खेती करना छोड़ दिया है क्योंकि उन्हें सौ दिन के रोजगार की ग्यारंटी जो मि रही हैं। खैर यह दो चार गांवों की कहानी हो सकती है परंतु पूर्णता के साथ देखे तब इस बजट ने पह ी बार ग्रामीण भारत के विकास की ऐसी तस्वीर पेश की है जिसमें गांवों में विकास की सही मायने में बातें होंगी(अगर सही अर्थो में गांवो तक पैसा पहुँचा तब)। दरअस बजट व उसकी तिक्रिया दोनों ही शहरी है इस कारण बजट पर जो तिक्रियाएँ आई है वह नकारात्मक आई हैं। देश के शहरी क्षेत्रों में विकास हो रहा हैं कई योजनाओं के तहत सड़के बन रही है और व्यापार और उद्योगो का विकास हो रहा हैं। मंदी का यह दौर अभी आया है जिस कारण शहर परेशान हो रहा है क्योंकि नौकरियां नहीं है और वेतन कम किए जा रहे हैं। पर हम ोग यह क्यों नहीं समझते कि अगर विकास की गंगा ग्रामीण क्षेत्र से शहरी क्षेत्र की ओर बहती है तो उसके परिणाम काफी अच्छे हो सकते हैं। इस कारण इस बजट को केव आयकर में छूट और महँगाई से जोड़ कर न देखा जाए बल्कि समग्र रुप से ग्रामीण विकास के नजरिए से देखा जाना चाहिए।

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