गोलू वाले भियाहोन का क्या करें


(अनुराग तागड़े)
शहर की सड़क पर गोलू वाले भियाहोन की कोई कमी नहीं है ये सड़क के बीचोबीच दोपहिया वाहन (अमूमन मोटरसाईकल) चलाते हैं। नम्बर प्लेट पर गोलू, से लेकर मोनू, िपंकू, टिंकू, रिंकू से लेकर भगवान के प्रति आस्था प्रकट करने वाले तमाम तरह के चिन्ह आदि रहते हैं। इन गोलूओं की विशेषता रहती है कि वे गाड़ी चलाने की अपेक्षा लहराने में ज्यादा दिलचस्पी दिखाते हैं। लहराते समय इनकी अदाएं देखने लायक होती हैं, ये अजीब सा मुंह भी बनाते हैं, दोनों पैैरों के पंजे ऊपर उठा लेते हैैं और हाथों की मुद्रा भी देखने लायक होती है और ये गाड़ी को दाएं-बाएं भी घुमा लेते हैं। इतना ही नहीं अगर ये  भिया जोश में आ गए तो आपको गाना भी सुनने को मिल सकता है वह भी जोर की आवाज में। वहीं कुछ अपनी आवाज को अच्छा नहीं मानते तो तेज हॉर्न का प्रयोग जरूर कर लेते हैं। 
अगर सड़क पर लड़कियां चलती हुईं नजर आ जाएं तब भियाहोन की जैसे बांछें ही खिल जाती हैं और फिर सड़क पर जैसे सर्कस ही आरंभ हो जाता है। कई बार बिना काम के भी एक ही सड़क पर मंडराना भी आरंभ हो जाता है। अच्छा ऐसा नहीं है कि इसमें गोलू वाले भियाहोन ही शामिल हैं कुछ हाई प्रोफाईल भियाहोन भी इस प्रकार की अदाकारी सड़कों पर दिखाते हैं, जो अमूमन आजकल बुलेट पर ही नजर आते हैं। काला चश्मा और थोड़ी बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ ही हाई प्रोफाईल भियाहोन बुलेट की भारी-भरकम आवाज करते हुए निकलते हैं। वे सड़क पर सर्कस नहीं कर पाते क्योंकि गाड़ी इतनी भारी होती है कि कुछ करने जाएंगे तो गिर पड़ेंगे...इस कारण वे बुलेट के साइलेंसर को ही अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बना लेते हैं और तेज शोर करते है ताकि जमाना उन्हें देखे...अगर किसी ने इनकी तरफ नजरें उठा कर देखभर लिया तब फिर इनकी बुलेट 350 सीसी से एकदम 1000 सीसी की हो जाती है और साइलेंसर से फटाके भी फूटने लगते है। 
इससे बड़े वाले भियाहोन कार में ही चलते हैं काले शीशे वाली...तेज गति से चलते ही हैं पर इनकी अभिव्यक्ति का माध्यम कार के स्पीकर होते हैं जिनसे ठीक से सुनाई तो कुछ नहीं पड़ता हां ढिक...ढिक का स्पंदन जरूर सुनाई पड़ता है और यदा-कदा किसी अंग्रेजी गाने के बोल सुनाई पड़ जाते हैं। इस प्रकार के भियाहान का मेला छप्पन दुकान पर रोजाना भरता है। ये भियाहोन झगड़ा करने के लिए सदा आतुर रहते हैं और कई बार टाईम पास करने के लिए भी झगड़ भी लेते हैं लेकिन जब कोई इनसे बड़ा वाला मिल जाता है तो कल्टी मारने में भी पीछे नहीं हटते...इनसे बड़े वाले भी शहर में हैं पर उन्हें हुक्का गुड़गुड़ाने से ही फुर्सत नहीं है तो सड़कों पर कहां नजर आएंगे। वैसे इस प्रकार के भियाहोन से शहर की यातायात पुलिस भी डरती है क्योंकि पता नहीं कौन माथे आ जाए और फिर सुनना पड़े...इस कारण भियाहोन की हिम्मत बढ़ती जा रही है । शहरवासी वैसे ही अलग-अलग समस्याओं से पीड़ित रहते हैं उन्होंने इसे भी स्वीकार कर लिया है कि घर से निकलते ही इन भियाहोन की तेज रफ्तार और बेतरतीब चलाने के ढंग के बीच से अपने आप को सुरक्षित निकालना ही सबसे अच्छा तरीका है बाकि इन्हें कुछ बोलने की हिम्मत जब पुलिस में नहीं तब आम जनता क्या कर लेगी ?

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