शिक्षा माफिया पर कसो नकेल


शिक्षा मंत्रीजी फीस बढ़ाने के अलग तरीके मत ढूंढो
- स्कूल बस एसी तो किराया बढ़ाने जैसे तरीकों का होगा गलत इस्तेमाल 
- निजी स्कूल कैटेगरी बनने के बाद भी फीस बढ़ाने के तरीके ढूंढ लेंगे
- निजी स्कूलों को रेग्युलेट करने लिए अथॉरिटी का गठन किया जाए
(अनुराग तागड़े)
इंदौर। हमारी प्रदेश सरकार भी गजब ही है जिन निजी स्कूल संचालकों को फीस कम करने के लिए कहना चाहिए उन्हीं को अपने पास बुलाकर शिक्षा मंत्री कुंवर विजय शाह इस बात के सुझाव मांग रहे हैं कि भाई आप अपना खर्चा बता दो फिर उसके अनुसार फीस बढ़ाने के तरीकों पर विचार करेंगे। कोई भी निजी स्कूल संचालक यही कहेगा कि मंत्री महोदय स्कूलों में सुविधाएं जुटाने के लिए काफी पैसा लगता है अब आप ही बताएं कि फीस क्यों न बढाएं? मंत्री महोदय को आम जनता और अभिभावकों से चर्चा करना चाहिए। 
किस प्रकार से निजी स्कूल बेतहाशा फीस वृद्धि कर देते हैं और किस प्रकार से अब भी कमीशनखोरी चलती है यह किसी से छुपा नहीं है। 
सरकारी ठप्पा लगने के बाद मनमानी
निजी स्कूल संचालक पांच श्रेणियों में अपने आप को विभक्त कर लेंगे। फिर सरकारी ठप्पा लगते ही मनमानी करना आरंभ कर देंगे। ये अपने स्कूल को ही दो अलग-अलग यूनिट में बांट लेंगे जिसमें से एक ज्यादा फीस वाली और एक कम फीस वाली। याने अब प्रत्येक निजी स्कूल को अपने बिजनेस का फैलाव करने के लिए पांच अन्य विकल्प मिल जाएंगे। अभिभावक किसी भी तरह की शिकायत नहीं कर पाएंगे और स्कूल वाले लगातार मनमानी करते रहेंगे। ढेर सारे बच्चों को एडमिशन दे देंगे। जो कम फीस भरेगा उसकी श्रेणी अलग जो ज्यादा देगा उसकी अलग... स्कूल का नाम एक ही पर पढ़ाई के स्तर से लेकर अन्य सुविधाएं अलग और वह भी एक ही कैंपस में। याने स्कूल वालों को अपने लाभ को और अधिक बढ़ाने के लिए अलग-अलग श्रेणियां मिल जाएंगी। याने जो काम अब तक केवल समाज में होता था कि फलां महंगे स्कूल में हमारा बच्चा जा रहा है वह आधिकारिक रुप से सरकार ही बोलने लगेगी। वैसे भी कई बड़े स्कूलों की दो और तीन ब्रांच हैं अब ये ओर बढ़ा देंगे। 
सुविधाएं जांचने के लिए रेग्युलेटरी अथॉरिटी बनाई जाए

निजी स्कूलों में सुविधाओं को जांचने के लिए राज्य शासन को रेग्युलेटरी अथॉरिटी बनाना चाहिए जो इन स्कूलों में लगातार जांच करे। कई स्कूल अपने ब्रोशर में जो सुविधाएं बताते हैं वह सुविधाएं असल में होती ही नहीं या कम स्तर की होती हैं। पीने के पानी की सही सुविधा भी नहीं होती कई स्कूलों में। रेग्युलेटरी अथॉरिटी अगर सही तरह से काम करेगी तब निश्चित रूप से निजी स्कूलों पर नकेल कसी जा सकेगी। राज्य शासन को इस ओर गंभीरता से विचार करना चाहिए और केवल निजी स्कूलों के संचालकों से ही नहीं बल्कि अभिभावकों से भी बातचीत  करना चाहिए।

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