ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल वॉलेट के नाम पर हो रही लूट

- भोलेभाले किसान ज्यादा पैसे देने को मजबूर
- ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक साक्षरता के लिए सरकार को पहल करना चाहिए
(अनुराग तागड़े)
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इंदौर। शहरी क्षेत्र में रहने वाले लोग इस बात को लेकर बेहद खुश होते हैं कि उनके पास डिजिटल वॉलेट है और वे कहीं पर भी पैसे दे सकते हैं या ले सकते हैं वह भी मोबाईल के माध्यम से। निश्चित रुप से यह सुविधाजनक है और काफी अच्छा भी है। परंतु इससे विपरीत ग्रामीण क्षेत्रों में डिजिटल इंडिया की पहुंच तो हो गई है परंतु डिजिटल तकनीक का प्रयोग किस तरह और क्यों हो रहा है इसकी जानकारी ही किसानों को नहीं है। इंदौर, उज्जैन व आसपास के कई ग्रामीण इलाकों में अब भी किसान बैंकिंग से डरते हैं और मोबाईल से पैैसे जमा हो सकते हैं या प्राप्त कर सकते हैं इसकी कल्पना भी उनके मन में कभी नहीं आई।
चेक ही नहीं समझ पाते तो डिजिटल वॉलेट की बात कहां से समझेंगे
दरअसल ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक साक्षरता की दर काफी कम है। लोगों के पास मोबाईल आ गया है और उस मोबाईल से बातचीत कैसे करना इतना भर किसानों को आने लगा है परंतु आर्थिक लेन-देन कैैसे करें अभी इसकी जानकारी नहीं है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह हालत है कि कई किसानों ने जब अपनी उपज मंडियों तक पहुंचाई तो उन्हें चेक से भुगतान किया और कई किसानों को यही नहीं पता कि चेक से भुगतान करना क्या होता है? उन्हें यह भी समझाया गया कि इस चेक पर आपका नाम है बैंक में जाओ और चेक जमा करवाओ, पर कईयों के पास अब भी बैंक खाते नहीं हैं तब इस चेक का क्या करें?
सब कुछ नकदी पर निर्भर है
ग्रामीण क्षेत्रों में सब कुछ नकदी में ही चलता है, इस कारण किसान बैंकों में नहीं जाते। दिहाड़ी मजदूर हों या फिर स्वयं किसान सभी नकदी का ही धंधा करते हैं। इस बार नोटबंदी के कारण दिहाड़ी मजदूरों को देने के लिए कई बड़े किसानों के पास नकद  राशि ही नहीं थी। इस कारण हार्वेस्टर का सहारा लेना पड़ा। कई दिहाड़ी मजदूरों को कई दिनों तक रोजगार नहीं मिला। 
पैसे ट्रांसफर करने के भी पैसे
गांवों में कई किसानों के पास बैंक अकाउंट हैं और डेबिट कार्ड भी हैं। परंतु उन्हें इसका उपयोग ही करते नहीं आता। इसका फायदा गांव के वे लोग उठा रहे हैं जो स्मार्टफोन का उपयोग करना जानते हैं। वे इन भोलेभाले किसानों से डेबिट कार्ड की संपूर्ण जानकरी ले लेते हैं और अपने डिजिटल वॉलेट में इसे ले लेते हैं। ऐसा करने के लिए वे अतिरिक्त पैसा भी किसानों से ऐंठ लेते हैं। किसान किसी भी तरह से नकद पैसा प्राप्त करने के चक्कर में थोड़ा ज्यादा पैसा देने के लिए भी तैयार हो जाता है। 
आर्थिक साक्षरता के लिए योजना आरंभ करना चाहिए
सरकार को चाहिए कि जिस तरह से ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए तरह तरह की सरकारी योजनाएं आरंभ की गई हैं उसी तर्ज पर गांवों में आर्थिक साक्षरता के लिए अभियान आरंभ करना चाहिए। इसके लिए बैंकों की सहायता लेना चाहिए। सरल और सहज भाषा में ग्रामीणजनों को बैंकिंग के बारे में पहले बताना चाहिए जिसमें चेक, ड्राफ्ट से लेकर खातों की जानकारी आदि के बारे में बताना चाहिए। यह बात भी देखने में आती है कि किसान बैंकों में जाने से कतराते हैं और बैंकिंग प्रणाली से उनका पाला न पड़े इस बात का प्रयत्न करते रहते हैं। आर्थिक साक्षरता अभियान से किसानों के मन में बैकिंग प्रणाली को लेकर डर भी दूर होगा और उन्हें जिस तरह से बेवकूफ बनाया जा रहा है उस पर भी रोक लगेगी।

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