अर्थव्यवस्था में नौकरी के संकट का दौर


(अनुराग तागड़े)
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अर्थव्यवस्था को नोटबंदी के असर से मुक्त हो गई है ऐसा बताने वालों के सामने यह उदाहरण रखना काफी है कि वोडाफोन आईडिया के मर्जर के बाद 25 हजार लोग नौकरी से हाथ धो बैठेंगे। इसे जियो इफेक्ट का नाम दिया जा रहा है परंतु यह एक सेक्टर की बात हो गई कई अन्य सेक्टर हैं जहां पर नए वित्त वर्ष के आरंभ होते ही जॉब कट होने की संभावना है। केवल टेलीकॉम सेक्टर की ही बात करें तो भारती एयरटेल ने ही गत वर्ष सितम्बर में कर्मचारियों की संख्या 19462 बताई थी जो दिसम्बर तक 19048 हो गई थी। ऐसा माना जा रहा है कि लगातार बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण अब टेलीकॉम सेक्टर में केवल 4 बड़े खिलाड़ी ही रहेंगे जिसके कारण इस सेक्टर में आगे आने वाले दिनों में जॉब कट की संभावना बहुत ज्यादा है। 
आईडिया वोडाफोन के एक हो जाने के बाद उनके फ्रेंचाईजी पर भी असर पड़ेगा। प्रत्येक बड़ी टेलीकॉम कंपनी के पास 25 हजार से ज्यादा लोग फ्रेंचाईजी में भी काम करते हैं। जब दो कंपनियां एक हो जाएंगी तब निश्चित रूप से कई लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ेगा।
जीएसटी आने के पूर्व सभी इंडस्ट्री अपने आप को एडजस्ट करना चाहती हैं। इस एडजस्टमेंट में वे अपनी बैलेंस शीट और अन्य कागजातों को व्यवस्थित कर लेना चाहते हैं क्योंकि इसके पूर्व याने नोटबंदी से पहले कंपनियों के पास कई विकल्प मौजूद रहते थे परंतु अब कंपनियों को कागजातों के मामले में काफी सजग रहना होगा और यही कारण है कि कंपनियों को अपने प्रॉफिट को बनाए रखने के लिए मर्जर करना पड़ सकते हैं। 
बात केवल टेलीकॉम सेक्टर की नहीं है बल्कि आईटी सेक्टर में भी ट्रंप इफेक्ट के कारण असर पड़ ही रहा है। कॉग्निजेंट ने भी भारत में 6 हजार लोगों को निकालने की बात की है। बात यही खतम नहीं होती है बल्कि इस वर्ष जनवरी में ही बैंगलुरु में टीसीएस के विरुद्ध वहीं के कर्मचारियों ने आंदोलन भी चलाया था जिसमें कर्मचारियों को निकालने का विरोध किया गया था। अमेरिका के दबाव के आगे कंपनियों को अपनी नीतियों में परिवर्तन करना पड़ रहा है। जिसके कारण आईटी क्षेत्र में लगातार नौकरियां जा रही हैैं। वर्ष 2021 तक दुनियाभर में आॅटोमेशन से होने वाले जॉब कट में से भारत से 23 प्रतिशत जॉब जाएंगी। इसका असर 2019 से ही देखने में आएगा। 
हीरो होंडा से लेकर कई बड़ी आॅटोमोबाईल कंपनियां अब आॅटोमेशन पर ध्यान दे रही हैं। आॅटोमेशन में आरंभिक लागत बेहद ज्यादा है पर कंपनियां यह जानती हैं कि यह लागत पांच वर्ष में वसूल भी हो जाएगी। सिक्युरिटी सर्विसेस से लेकर बैंकिंग क्षेत्र और संपूर्ण सर्विसेस सेक्टर में आईटी आधारित काम आरंभ हो जाएगा जिससे सभी काम आईटी आधारित होंगे और इस कारण जॉब्स की कमी होती जाएंगी। भारत की आर्थिक तरक्की और नीतियों को देखते हुए भारत में 6.5 प्रतिशत की दर से जॉब बढ़ने की संभावना जताई जा रही है परंतु आॅटोमेशन के कारण 2 प्रतिशत की कमी आएगी यह बात निश्चित है। इतना ही नहीं ई-कॉमर्स से लेकर स्टार्टअप्स में भी जॉब कट्स आसानी से और बड़ी संख्या में देखे जा रहे हैं। हालांकि विशेषज्ञों के अनुसार इन क्षेत्रों में जॉब कट्स ग्लोबल ट्रेंड के अनुरुप ही हैं फिर भी भारत में जाब कट्स तो हो ही रहे हैं।
अगले तीन वर्ष महत्वपूर्ण
जॉब मार्केट के हिसाब से अगले तीन वर्ष काफी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि इन तीन वर्षों में भारतीय अर्थव्यवस्था बड़े बदलाव के दौर से गुजरेगी। सभी दिग्गज कंपनियां अपने आप को फ्यूचर रेडी बनाने के उद्देश्य से अपनी बैलेंस शीट और अपने आप को स्लिम एंड ट्रीम बनाने का प्रयत्न करेंगी। अनावश्यक खर्च कम किए जाएंगे और मर्जर भी देखने को मिलेंगे जिसके सीधा असर नौकरियों पर पड़ेगा। कंपनियों के पास अपने आप को आगे बढ़ाने के लिए आॅटोमेशन ही रास्ता है। भविष्य की तकनीक अपनाने के कारण लागत बढ़ेगी और सीधा असर नौकरियों पर पड़ना ही है। एलएंडटी से लेकर एचडीएफसी बैंक के प्रमुखों के अलावा इंडस्ट्री के कई दिग्गज अलग-अलग मंचों से यह बात लगातार कहते आ रहे हैं कि नोटबंदी के बाद से जो जॉब कट्स हुए है उसमें बढ़ोतरी ही होगी और इस बढ़ोतरी का कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था होगी। इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था के सम्मुख सबसे बड़ी समस्या रोजगार पैैदा करना ही है और सभी कंपनियां अभी अपने आप को भविष्य के लिए तैयार करने में जुटी हैं। ऐसे में नए रोजगार पैदा करने की बजाए वे ज्यादा से ज्यादा अॉटोमेशन करने पर जोर दे रही हैं।

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