इंदौर में बिगड़ते सामाजिक मूल्यों की छप्पन दुकाने


- नशे की आदत युवाओं को बिगाड़ रही है
- पार्टी कल्चर से बिगड़ रहा है माहौल
- कार एक्सिडेंट में मारे गए पांच युवाओं की कहानी भी यही कह रही है
(अनुराग तागड़े)
रात के डेढ़ बजे एमजी रोड़ पर फर्राटा मार रही बाईक को सहसा दूर से देखने पर आश्चर्य नहीं होगा क्योंकि शहर में तेज रफ्तार से बाईक चलाना और मोटरसाईकल से फटाकेनुमा आवाज निकालना पुराना शगल हो  चुका है। बाईक के करीब आते ही वाहन चालक लड़की है यह समझ में आता है और लड़की ने स्कर्ट पहन रखी है और पीछे बैठा लड़का उसे समझा रहा है कि तेज न चलाओ। यह एक घटना हुई शहर के तथाकथित पबो में देर रात नशे में झूमती लड़कियों को बाउंसरो और सहायको द्वारा कार में बैठाने की दृश्य आम हो चले है और मेरी मर्जी की तर्ज पर लड़किया क्या और क्या लड़के नशे की गिरफ्त में तेजी से आ रहे है। क्या कोई यह कल्पना कर सकता है कि नानी के घर पर हुक्का बार चलाया जाए और उससे पैसा कमाया जाए? शहर में तमाम रोक के बाद भी हुक्का गुडगुडाने की जगहे व्हाट्स एप्प पर तय हो जाती है और खाली घरों में एक रात में नशे के हुक्का गुडगुडाने की कीमत दो से तीन हजार रुपए वसूली जाती है। हाल ही में पकड़े गए किशोरवय के बच्चो में से एक ने अपनी नानी के घर को ही देर रात बाद हुक्का बार बना ड़ाला। शहर में नशे की ऐसी छप्पन दुकाने लगातार बंद होती खुलती रही है। ऐसा नहीं है कि केवल हुक्का बार ही सामाजिक मूल्यों को तेजी से तहस नहस कर रहे है बल्कि शहर में मौजूद पब भी अपनी सीमाओं को लगातार तोड़ते रहते है पर रसूखदारो के पबो पर हाथ डालने की हिम्मत स्थानीय प्रशासन कभी कभार ही दिखा पाता है जब प्रशासन के अधिकारियों के साथ हुज्जत करने की हिम्मत ये पब वाले लगातार दिखाने लगते है। फिर इन पबो में अवैध निर्माण भी नजर आता है और देर रात तक शराब परोसने की बाते भी बाहर आती है। शहर के नवधनाढ्यो में अपने आप को दुनिया के सामने दिखाने की एक अंधी दौड़ चल पड़ी हंै वे नशे में है और तेज दौड़ भी लगाना चाहते है जिसका परिणाम यह होता है कि वे लगातार गिरते पड़ते रहते है। महंगी गाड़ियों और बाईक्स के फैशन शो में अमीरी का दिखावा होता है और सामाजिक मूल्यों को तोड़ना नया शगल बन जाता है। ब्रांडेड के जमाने में पैसा किधर और कैसा खर्च किया जाए यह प्रश्न इन किशोरवय के बच्चों के सामने है जिनके माता पिता के पास बच्चों की पॉकेटमनी रिचार्ज करने जितना ही समय बच्चो के लिए है तब सामाजिक मूल्यों जैसी बाते दकियानूसी लगती है इन्हें। शापिंग के लिए मुंबई,दिल्ली जाने वाले ये बच्चे हुक्के की गुडगुडाहट में अपनापन ढूंढते है और माता पिता और इनके बीच की टूटी कड़ी को हुक्के के नशे के माध्यम से जोड़ने का प्रयत्न करते रहते है। शहर में बाहर से पढ़ाई करने वाले युवाओं की अच्छी खासी तादाद है और बिना रोक व दबाव के वे अपनी जिंदगी को हुक्का बार के हवाले कर देते है। हाल ही में  आईपीएस के सामने कार और डंपर की टक्कर में मारे गए पांच युवाओं की कहानी भी यही कहती है। ये सभी झूठ बोलकर दोस्त का बर्थडे है यह कहकर घर से निकले थे। ढाबे पर खाना खाने और नशा करने के बाद ये कार लेकर निकले थे। इनकी कार से भी हुक्का और नशे का सामना निकला था। कार चलाते हुए नशे का हुक्का पीना और लगातार पार्टी कल्चर में डूबे रहना युवाओ को खूब भाने लगा है परंतु वे यह नहीं सोच पाते कि उनकी गंभीर चूक परिवार वालो पर कितनी भारी पड़ती है। नैतिकता को बगल में दबाकर अपनी पॉकेटमनी की पूर्ती करने के लिए सीमाओं को लांघना इन्होंने कभी से आरंभ कर दिया है अब उसके दुष्परिणाम सामने आने लगे है। हम भले ही अपने इंदौरियत को लेकर आत्ममुग्ध होते रहे पर असल में हम नैतिक मूल्यों का गला घोंट कर काफी आ चुके है जहां पर मूल्य सडांध मार रहे है एक पुरी की पुरी पीढ़ी ऐसे रास्ते पर जा रही है जहां पर नशे का घुप्प अंधेरा है अवसाद है। जिस प्रकार से शहर स्वच्छता को लेकर जागृत होता नजर आ रहा है ठीक उसी तरह अवैध नशे की दुकानों की सफाई के लिए भी शहर और खासतौर पर स्थानीय प्रशासन को कार्रवाई करना होगी। प्रदेशस्तर पर नर्मदा के किनारे से शराब की दुकाने हटाने का कार्य भले ही शीघ्र आरंभ होने वाला है हमारे इंदौर शहर को पहले अपने भीतर बैठे अवैध नशा कारोबारियों को हटाना होगा और इसके लिए आम जनता और प्रशासन को कंधे से कंधा मिलाकर लगातार काम करना होगा वरना थोड़े दिन की कार्रवाई के बाद ये हुक्का बार वाले फिर कुकुरमुत्ते की तरह उग आते है और नशे का कारोबार करने लगते है।

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