तेज गति से उड़ान भरेगा सिविल एविशन क्षेत्र


 -भारत में सिविल एविशन के 100 वर्ष

भारतीय सिविल एविएशन 18 फरवरी को 100 वर्ष पूर्ण कर रहा है। सरकार ने वर्ष 2011-12 को सिविल एविएशन शताब्दी वर्ष घोषित किया है। इसी दिन भारत में पहला विमान 1911 में इलाहाबाद से नैनी के बीच में उड़ा था। इसके बाद भारत में एविएशन के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है। वर्तमान में  भारत का विश्व में 9 वां क्रम आता है बाजार मूल्य के अनुसार और विशेषज्ञों की माने तो वर्ष 2020 तक विश्व के तीन प्रमुख बाजारों में भारत का नाम आने लगेगा। वर्षभर सरकार द्वारा विभिन्न् कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।

राइट बंधु और विमानन की कहानी
आज तो प्रतिदिन हजारों विमान उड़ान भरते हैं और पायलट हर तरह के हैरतंगेज कारनामों को करके दिखाते हैं। एक मशीन में बैठकर उडना और ऊपर से पृथ्वी को देखना सबके लिए रोमांचित करनेवाला अनुभव होता है। राइट बंधुओं ने अपनी लगन और मेहनत के दम पर वह कर दिखाया जिसके सपने मानव चिरकाल से देखता रहा था और जिसे सच साबित करने के लिए न जाने कितने ही मेधावी और दुस्साहसी युवकों को अपने प्राण गंवाने पड़े। दुनियावालों की नजरों से दूर बिना किसी यश या धन प्राप्ति की चाह के राइट बंधु अपने उद्देश्य की प्राप्ति के लिए सतत प्रयास करते रहे। अत्यंत विनम्र स्वभाव के राइट बंधुओं ने अपने अविष्कारों के बदले में किसी कीर्ति की अपेक्षा नहीं की। विमानन के इतिहास में उनका नाम सदा के लिए स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया।
मनुष्य में हमेशा से ही पक्षियों की भांति उडने की चाह रही है। एक पुरानी यूनानी कहानी में डीडेलस नामक एक मनुष्य मोम के पंख बनाता है और अपने पुत्र आइकेरस के साथ समुद्र के पार उड़ा करता है। वे दोनों सूरज के समीप नहीं उडते क्योंकि उनके मोम के पंखों के पिघलने का खतरा है। आइकेरस युवा और महत्वाकांक्षी है और वह एक दिन सूरज के पास पहुँचने का प्रयास करता है। सूरज की गर्मी से उसके पंख पिघल जाते हैं और वह समुद्र में गिरकर डूब जाता है।
लीलीएंथल नामक एक जर्मन व्यक्ति ने पहली बार उडने के तरीकों के बारे में गंभीरतापूर्वक सोचा। उसने पंख के आकार की एक मशीन बनाई। उसने स्वयं को मशीन से कसकर बाँध लिया। फिर वह पहाड़ी या ऊंची ईमारत की चोटी से कूद गया। पांच साल तक वह इस प्रकार उडता रहा लेकिन वह कभी भी कुछ सेकंडों से ज्यादा नहीं उड़ सका। इस बीच उसने वायु की धाराओं और उडने की समस्याओं पर अच्छा शोध कर लिया। एक दिन जब वह जमीन से लगभग 50 फीट ऊपर उड़ रहा था तब उसकी मशीन हवा के तेज झोंके की चपेट में आ गई और वह नीचे गिरकर मर गया।
स्मिथसोनियन इंस्टिट्यूट के प्रोफेसर लैंग्ली नामक एक अमेरिकन ने भी अपने जीवन के अंतिम वर्षों में उडने से सम्बंधित विषयों पर बहुत काम किया और उन्होंने एक गतिशील मशीन भी बनाई लेकिन वे भी उससे एक बार में कुछ सौ मीटर से ज्यादा दूर नहीं उड़ पाए।प्रोफेसर लैंग्ली के प्रयोगों ने लोगों का ध्यान अपनी और खींचा। बेहतर तकनीकी योग्यता रखनेवाले फ्रांसीसी और अंग्रेज वैज्ञानिकों ने भी उड़ने के विज्ञान पर बहुत काम किया लेकिन हवा से भारी और बाह्य ऊर्जा द्वारा चलायमान विमान की सहायता से उडने में सफलता प्राप्त करने का श्रेय दो अमेरिकी बंधुओं औरविल और विल्बर राइट को जाता है। राइट बंधुओं ने केवल हाईस्कूल तक शिक्षा पाई थी और उनमें कोई तकनीकी कौशल या योग्यता नहीं थी। उनके पास अपने काम के लिए आवश्यक धनराशि भी नहीं थी।

राइट बंधुओं का जन्म ओहियो के नगर डेटन में हुआ था। वे हमेशा यंत्रों में रूचि लेते थे और साइकिल मरम्मत की दूकान चलाते थे। वर्ष 1896 में लीलिएंथल की मृत्यु और किताबों में उडने के विषय में चल रहे प्रयोगों के बारे में पढकर उनमें इस बारे में रूचि जाग्रत हुई। उन्होंने बिना किसी सोच विचार के अपना वायुयान बनाने का निश्चय कर लिया। प्रयोगों में लगाने के लिए उनके पास धन नहीं था। उन्हें तो इसके खतरों के बारे में भी ज्यादा पता नहीं था। उन्होंने तय किया कि वे पक्षियों की उड़ान का अध्ययन करेंगे और इसके साथ ही उन्होंने तब तक बन चुकी सारी उड़ान मशीनों का भी अध्ययन कर लिया। राइट बंधुओं ने हमेशा अपनी मशीनें स्वयं बनाईं। सबसे पहले उन्होंने एक ग्लाइडर बनाया जिसे वे पतंग की तरह उड़ाते थे। इसे लीवरों की सहायता से जमीन पर रस्सियाँ बांधकर नियंत्रित किया जाता था। इस प्रकार उन्होंने उड़ान के सिद्धांतों का अध्ययन कर लिया और यह भी सीख लिया कि हवा में मशीन को कैसे चलायमान रखा जाए।

मानवयुक्त ग्लाइडर बनाया
विल्बर राइट (1903)इसके बाद उन्होंने एक मानवयुक्त ग्लाइडर बनाया। इसे उन्होंने लीलिएंथल की ही भांति पहाड़ी से कूदकर उड़ाया। इस ग्लाइडर को हवा में तैराना तो आसान था लेकिन अपनी मनमर्जी से उसे उड़ाना और उसका संतुलन बनाए रखना मुश्किल था। सुरक्षा की दृष्टि से प्रयोग जारी रखने के लिए वे 1900 में नॉर्थ कैरोलाइना में एक एकांत स्थल में चले आये जहाँ ऊंची रेतीली पहाडियां थीं। इस प्रकार वे कठोर पथरीली जमीन पर गिरने से बच सकते थे। अगले दो सालों में उन्होंने लगभग दो हज़ार बार अपने ग्लाइडर में उड़ान भरी जिनमें से सबसे लम्बी उड़ान 600 फीट की दूरी तक गई।इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण चरण था ग्लाइडर को प्रणोदित  करना। 1903 में उन्होंने तरल ईंधन से चलनेवाली एक मोटर बनाई और उसका परीक्षण करने के लिए वे पुन: नॉर्थ कैरोलाइना गए. उन्हें यकीन था कि उनकी मशीन काम करेगी लेकिन उन्होंने इसकी कोई औपचारिक घोषणा नहीं की।

उनकी पहली उड़ान केवल 12 सेकंड के लिए ही थी लेकिन मानव के इतिहास में यह पहली उड़ान थी जिसमें एक मशीन ने स्वयं गति करके हवा से भारी विमान को मानव सहित उड़ा लिया। कुछ समय हवा में नियंत्रित रहने के बाद उनका विमान बिना किसी नुकसान के नीचे उतर गया। उसी दिन उन्होंने दो और प्रयास किये जो कुछ अधिक समय के थे। उनकी चौथी उड़ान 59 सेकंडों की थी और उसने बारह मील की रफ़्तार से चल रही हवा की दिशा में 835 फीट की दूरी तय की।


राइट बंधुओं ने यह सब मनबहलाव के लिए शुरू किया था लेकिन इसमें सफलता मिलने पर वे इसके प्रति गंभीर हो गए। 1905 तक वे अपने प्रयोगों में इतने पारंगत हो चुके थे कि उन्होंने 35 मील प्रति घंटे की रफ़्तार से 24 मील की उड़ान भरी। अचरज की बात यह है कि इस समय तक उनकी उपलब्धियों के बारे में किसी को भी पता नहीं चला और किसी भी समाचार पत्र या पत्रिका में इस बारे में कुछ नहीं छपा। जब लोगों ने उनकी 24 मील लंबी उड़ान के बारे में सुना तो बहुत कम लोगों ने इसपर विश्वास किया।


1908 में विल्बर राइट एक मशीन को फ्रांस ले गए। फ्रांसीसी समाचार पत्र ने विल्बर राइट को लंबी गर्दन वाले एक पक्षी के रूप में चित्रित किया और उनकी भोंडी सी दिखने वाली मशीन का भी मजाक उड़ाया। उसी दिन विल्बर ने हवा में 91 मिनट उडकर 52 मील की दूरी तक उडने का कीर्तिमान बनाया। कुछ दिनों बाद उन्हें 2 लाख फ्रैंक का पुरस्कार दिया गया। इसके साथ ही फ्रांसीसी सरकार ने उन्हें 30 इंजन बनाने का आर्डर भी दे दिया।

जिस समय विल्बर फ्रांस में रिकॉर्ड बनाकर पुरस्कार प्राप्त कर रहे थे, औरविल वर्जीनिया के फोर्ट मेयर में सहयात्री को बिठाकर एक घंटे से भी लम्बी उडानें भर रहे थे।

1909 में विमानन के क्षेत्र में अभूतपूर्व उन्न्ती हुई। ब्लेरिओट नामक एक फ्रांसीसी ने अपने विमान से इंग्लिश चैनल को पार किया। इसके बाद इंजनयुक्त एक बडे गुब्बारे ज़ेपेलिन ने 220 मील की दूरी तय की। औरविल राइट वर्जीनिया से नॉर्थ कैरोलाइना तक अपने विमान को उड़ा ले गए। एक अमेरिकी विमान ने 1919 में अटलांटिक सागर को पार किया।  एक अंग्रेज विमान ने कुछ दिनों बाद यही करिश्मा दोहराया।

भारतीय सिविल एविएशन एक नजर में:
- भारत में पहली उड़ान दस किमी की थी जिसे फ्रेंच पायलट मोनसिगन्योर पिग्युट ने चलाया था।
- भारत में पहली घरेलू उड़ान कराची और दिल्ली के बीच दिसंबर 1912 में चली थी जो कि  ब्रिटेन की इम्पिरियल एअरवेज ब्रिटेन और भारत की स्टेट एअर सर्विस के बीच समझौते के कारण चली थी। लंदन से कराची वाली उड़ान को आगे बढ़ाया गया था।
- 1915 में पहली एअरमेल सर्विस कराची और चेन्न्ई के बीच चली थी जो कि टाटा संन्स ने चलाई थी पर इसे भारत सरकार की ओर से किसी भी प्रकार की मदद नहीं मिली।
- आजादी के समय भारत में 9 कंपनिया काम करती थी। बाद में इनकी संख्या 8 हो गई क्योंकि ओरियंट एअरवेज ने अपना बेस पाकिस्तान में बना लिया था। अन्य एअरलाईन्स थी टाटा एअरलाईन्स, इंडियन नेशनल एअरवेज, एयर सर्विस ऑफ इंडिया, डेक्कन एअरवेज,अम्बिका एयरवेज,भारत एयरवेज तथा मिस्त्री एअरवेज।
- भारत सरकार ने टाटा एयरलाइन्स के साथ मिलकर 1948 के शुरुवात में 2 करोड़ रु के निवेश के साथ एअरलाईन्स आरंभ की। 8 जून 1948 को मुम्बई लंदन रुट पर इसने उड़ान भरना आरंभ किया था।
-  इंडियन एयरलाईन्स का राष्ट्रीयकरण 1953 में हुआ। इसके बाद भारत के एविएशन का इतिहास एक समान रहा क्योंकि सराकरी हस्तक्षेप के कारण यह क्षेत्र कभी विकसित नहीं हो पाया।
क्या है वर्तमान स्थिति:-
- गत साडे छ: वर्ष में एयरलाईन इंडस्ट्री ने 400 प्रतिशत की ग्रोथ की है।
- जनवरी से जून 2010 के बीच भारत की घरेलू उड़ानो में 46.8 मिलियन यात्रियों ने यात्रा की।
- नवंबर 2010 तक भारत में मार्केट लीडर जेट एयरवेज था। इसके बाद किंगफिशर फिर नेशनल एविएशन कंपनी लिमिटेड, इंडिगो, स्पाइसजेट, जेटलाईट, गोएयर का नम्बर आता है।
- दिल्ली हवाईअड्डा भारत का सबसे व्यस्ततम हवाई अड्डा है जो कि औसतन 843 उड़ाने प्रतिदिन संचालित करता है।
- विमान बनाने वाली कंपनी बोइंग के अनुसार अगले 20 वर्षों में भारत को 1000 यात्री विमानों की जरुरत पडेगी जबकि एयरबस का अनुमान है कि 2028 तक भारत को 1032 यात्री विमानों की जरुरत होगी।
- भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण द्वारा वर्ष 2010 में ही नॉन मेट्रो हवाई अड्डो को आधुनिक बनाने के लिए 1.02 बिलियन डॉलर खर्च किया है। तथा वह 24 सिटी साइड एयरपोर्ट भी विकसित कर रहा है इसके अलावा 11 ग्रीन फील्ड हवाई अड्डे विकसित करने की योजना है। अगले पांच वर्षों में भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण हवाई अड्डो के विकास के लिए 3.07 बिलियन डॉलर खर्च करेगा।
- हवाई अड्डे के टर्मिनल्स में सबसे ज्यादा खाद्य,पेय पदार्थ, ब्युटी उत्पाद, इलेक्ट्रानिक सामान और कपडो की बिक्री होती है भारत में 2015 तक हवाई अड्डो पर चार लाख स्के फीट की रिटेल स्पेस उपलब्ध हो जाएगी। कई विदेशी कंपनिया इस रिटेल सेक्टर पर नजर गढ़ाए हुए है।
- आर्थिक मंदी के चलते भारतीय सिविल एविएशन क्षेत्र को झटका जरुर लगा था परंतु अब सबकुछ सामान्य हो गया है और भारत निजी एअरलाईन्स इंडिगो द्वारा एयरबस को 15 बिलयन डॉलर के 180 विमानों का आर्डर दिया है जो एयरबस 2016 से 2025 के बीच एयरलाईन को देगी। इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि भारत का एविएशन सेक्टर काफी तेजी से विकास करेगा।
ये विभाग बनाते है उड़ानो को सुरक्षित
नागर विमानन मंत्रालय, भारत सरकार
भारत सरकार का नागर विमानन मंत्रालय नोडल प्राधिकरण है, जो देश में नागर विमानन उद्योग के लिए विकास और विनियमन के लिए राष्ट्रीय नीतियां और कार्यक्रम बनाने के लिए जिम्मेदार है। इसके कार्यों का विस्तार हवाई अड्डा सुविधाओं, हवाई यातायात सेवाओं और वायु द्वारा सवारी और माल के आवाजाही का पर्यवेक्षण भी करना है। मंत्रालय के अधीन दो अलग-अलग संगठन क्षेत्रक की निगरानी और इसको विनियमित करते हैं। वे हैं-

नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) एवं

नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बी सी ए एस)
 नागर विमानन महानिदेशालय
नागर विमानन महानिदेशालय (डीजीसीए) विनियामक निकाय है जो भारत के भीतर आने-जाने की हवाई यातायात सेवाओं और सिविल हवाई विमानन के प्रवर्तन, हवाई सुरक्षा और हवाई योग्य मानक के लिए जिम्मेदार है। वायुयान अधिनियम,1934 वायुयान अधिनियम,1937 नागर विमानन अपेक्षाएअपेक्षाएं और ऐरोनौटिकल सूचना परिपत्र के रूप में होते हैं। इसके अन्य कार्यों में निम्
नलिखित शामिल हैं:-

सिविल वायुयान का पंजीकरण;

भारत में पंजीकृत सिविल वायुयान के लिए यथा योग्य मानकों का निर्माण और ऐसे वायुयानों को प्रमाणपत्र प्रदान करना पायलटों, वायुयान इंजीनियरों, उडान इंजीनियरों और वायुयान नियंत्रकों को लाइसेंस देना।
 नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो
नागर विमानन सुरक्षा ब्यूरो (बी सी ए एस) देश में नागर विमानन सुरक्षा का विनियामक है। इसकी मुख्
य जिम्मेदारी भारत में अंतरराष्ट्रीय और देशीय हवाई अड्डों पर सिविल उडानों की सुरक्षा संबंधी मानक और उपाय निर्धारित करना है। इसमें सभी विमानन सुरक्षा से संबंधित क्रियाकलापों की योजना बनाना और उनका समन्वयन करना, कार्यात्मक आकस्मिकता और संकट प्रबंधन शामिल है। यह भारत के लिए राष्ट्रीय विमानन सुरक्षा कार्यक्रम का विकास, रखरखाव, उन्न्यन और क्रियान्वयन करने और इस परिप्रेक्ष्य में सभी अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने के लिए उपयुक्त प्राधिकरण है। ब्यूरो के पास चार बम खोजी और निष्क्रिय करने के दस्ते हैं जो दिल्ली, मुंबई, कोलकाता और चेन्न्ै अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों पर अद्यतन जटिलतम उपकरणों जैसे रोबोट, रियल टाइम वीविंग सिस्टम (आरटीवीएस) विद्युत स्टेथेस्कॉप, विस्फोटक डिटेक्टर आदि से लैस रखे गए हैं।

नागर विमानन मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रणाधीन निम्नलिखित सरकारी क्षेत्रक उपक्रम/कंपनियां/स्वायत्तशासी निकाय हैं :-


1.एयर इंडिया लिमिटेड :- यह एक कंपनी है जिसका निगमीकरण, कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत किया गया है और इसकी जिम्मेदारी सुरक्षित, सक्षम, पर्याप्त, किफायती और समुचित रूप से समन्वित अंतरराष्ट्रीय परिवहन सेवाएं मुहैया कराना है। इसके चार पूर्ण स्वामित्व वाली अनुषंगियां हैं अर्थात होटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एयर इंडिया चार्टर्स लिमिटेड, एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विसेज लिमिटेड और एयर इंडिया एयर ट्रांसपोर्ट सर्विसेज लिमिटेड।

2.इंडियन एयरलाइंस लिमिटेड :- इसे भी कंपनी अधिनियम के तहत निगमित किया गया है और इसका गठन करने के मुख्य उद्देश्य हैं सुरक्षित सक्षम, पर्याप्त, किफायती और समुचित रूप से समन्वित परिवहन सेवाएं मुहैया कराना है। यह देश का मुख्य घरेलू हवाई कैरियर है।
3.भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण (ए ए आई) :- का गठन वर्ष 1995 में देश की सतह और असमान दोनों मे सिविल विमानन मूल संरचना के सृजन उन्न्यन, रखरखाव और प्रबंधन के उद्देश्य से किया गया है। इसका लक्ष्य देश में सक्षम प्रचालन के लिए विश्वस्तरीय हवाई अड्डा सेवाएं मुहैया कराना है। यह 127 हवाई अड्डों का प्रबंधन करता है जिनमें 15 अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे (12 ए ए आई और 3 सिविल एन्क्लेव) 8 सीमा शुल्क और 78 घरेलू हवाई अड्डे औररक्षा हवाई क्षेत्र में 25 सिविल इन्क्लेव । यह 2.8 मिलियन नौटिकल मील का समस्त भारतीय वायु क्षेत्र पर नियंत्रण रखता है।
4.पवन हंस हेलीकॉप्टर लिमिटेड (पीएचएचएल) :- इसकी स्थापना वर्ष 1985 में तेल क्षेत्रक को हेलीकाप्टर सहायता सेवाएं मुहैया कराने के लिए देश की राष्ट्रीय हेलीकाप्टर कंपनी के रूप में की गई थी इसके कार्य दूरस्थ दुर्गम क्षेत्रों में और मुश्किल भूभागों में अनुसूचित/गैर - अनुसूचित हेलीकाप्टर सेवाओं का संचालन करने के लिए तथा यात्रा और पर्यटन के लिए चार्टर मुहैया कराने के लिए की गई है। इसके पास सुसंतुलित 33 हेलीकाप्टरों का बेडा है जिनमें रोबिन्सन बेल 206 एल 4, बेल 407 डाउलिन एसए 365 एन एवं ए एस 365 एन 3 और एम आई - 172 एस हैं जो बहुआयामी कार्य के लिए अत्यन्त उपयुक्त हैं। यह भारत में एकमात्र विमानन कंपनी हैं जिसे आईएसओ 9001:2000 प्रमाणपत्र इसके समस्त कार्यकलापों के लिए दिया गया है।
5.इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उडान अकादमी :- इसकी स्थापना सरकार द्वारा नागर विमानन में उडान प्रशिक्षण स्तर में सुधार लाने और अंतरराष्ट्रीय स्तरों का इसी तरह की उन्मुखी उडान प्रशिक्षण शामिल करने के उद्देश्य से की गई है। इसकी स्थापना फुरसगंज, रायबरेली, उत्तर प्रदेश में की गई है। यह आधुनिक और उन्न्त तकनीकी वाले प्रशिक्षक, वायुयान, उड;ान अनुरूपक, कम्प्यूटर आधरित प्रशिक्षण प्रणाली, आधुनिक नेविगेशनल और लैंडिंग आधार के साथ रनवे और अपना स्वयं के एयरस्पेस से लैस है। इसका संचालन उच्च योग्यता प्राप्त उडान और भू-अनुदेशकों द्वारा किया जाता है जिनका विमानन और उडान के क्षेत्र में लंबा अनुभव हैं।
 कार्य प्रणाली
भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ और इसके वैश्विक एकीकरण, निरंतर उन्न्यन और विमानन क्षेत्रक के आधुनिकीकरण से यह अति महत्वपूर्ण हो गया है। तद्नुसार सरकार का वर्तमान नीति संकेंद्रण मौजूदा हवाई अड्डों का आधुनिकीकरण तथा नए हवाई अड्डों का निर्माण करना है। उदाहरण के लिए दिल्ली और मुंबई में स्थित अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडों का पुनर्गठन सरकारी निजी भागीदारी के जरिए किया जा रहा है। बैंगलोर और हैदराबाद में दो हरित पट्टी हवाई अड्डों का क्रियान्वयन निर्माण, स्वामित्व संचालन अंतरण (बीओओटी) आधार पर किया जा रहा है। ए ए आई ने 35 गैर मैट्रो हवाई अड्डों को विश्वस्तरीय बनाने के लिए विकसित और आधुनिक बनाने का निर्णय लिया है। बेहतर अंतरराष्ट्रीय संपर्क सुनिश्चित करने के लिए द्विपक्षीय करारों को सुदृढ किया जा रहा है।
भारत में हवाई यातायात
 अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डे
1.अमृतसर (पंजाब) राजा साँसी हवाई अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
2.अहमदाबाद (गुजरात) सरदार वल्लभ भाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
3.कोचीन (केरल) कोचीन अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
4.कोलकाता (पश्चिम बंगाल) नेताजी सुभाषचंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
5.गुवाहाटी (असम) लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
6.वास्को डी गामा (गोवा) गोवा अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
7.चेन्नई (तमिलनाडू) अन्नाा अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
8.मुंबई (महाराष्ट्र) छत्रपति महाराज शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
9.नयी दिल्ली (दिल्ली)इंदिरा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
10.हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) राजीव गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
11.बंगलोर (कर्नाटक) बंगलोर अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
12.गया (बिहार) गया अंतर्राष्ट्रीय हवाई-अड्डा
 राष्ट्रीय हवाई-अड्डे
1.जयप्रकाशनारायण हवाई-अड्डा, पटना (बिहार)
2.बिरसा मुंडा हवाई-अड्डा, राँची (झारखंड)
3.जम्मू हवाई-अड्डा, जम्मू (जम्मू एवं कश्मीर)
4.कुल्लू हवाई-अड्डा, भुंतर, कुल्लू (हिमाचल प्रदेश)
5.गग्गल हवाई-अड्डा, काँगडा (हिमाचल प्रदेश)
6.शिमला हवाई-अड्डा, शिमला (हिमाचल प्रदेश)
7.चंडीगढ हवाई-अड्डा, चंडीगढ (चंडीगढ, यू टी)
8.जाली ग्रांट हवाई-अड्डा, देहरादून (उत्तरांचल)
9.पंतनगर हवाई-अड्डा, पंतनगर (उत्तरांचल)
10.अमौसी हवाई-अड्डा, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
11.कानपुर हवाई-अड्डा, कानपुर (उत्तर प्रदेश)
12.सांगाणेर हवाई-अड्डा, जयपुर (राजस्थान)
13.देवी अहिल्या बाई होलकर हवाई-अड्डा, इंदौर (मध्य प्रदेश)
14.इंफाल हवाई-अड्डा, इंफाल (मणिपुर)
15.सोनेगाँव हवाई-अड्डा, नागपुर (महाराष्ट्र)
16.भावनगर हवाई-अड्डा, भावनगर (गुजरात)
17.बीजू पटनायक हवाई-अड्डा, भुवनेश्वर (उडीसा)
18.कोयंबतूर हवाई-अड्डा, कोयंबतूर (तमिलनाडू)
19.कालीकट हवाई-अड्डा, कालीकट (केरल)
20.श्रीनगर हवाई-अड्डा, श्रीनगर (जम्मू एवं कश्मीर)
21.लेह हवाई-अड्डा, लेह (जम्मू एवं कश्मीर)
22.तेजू हवाई-अड्डा, तेजू (अरूणाचल प्रदेश)
23.जोरहाट हवाई-अड्डा, जोरहाट (असम)
24.तेजपुर हवाई-अड्डा, तेजपुर (असम)
25.बागडोगरा हवाई-अड्डा, सिलीगुडी (पश्चिम बंगाल)
26.ग्वालियर हवाई-अड्डा, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
27.जैसलमेर हवाई-अड्डा, जैसलमेर (राजस्थान)
28.जामनगर हवाई-अड्डा, जामनगर (गुजरात)
29.लोहेगाँव हवाई-अड्डा, पुणे (महाराष्ट्र)
30.वीर सावरकर हवाई-अड्डा, पोर्ट ब्लेयर (अंडमान एवं निकोबार)
 अन्य हवाई अड्डे
1.जबलपुर हवाई-अड्डा, जबलपुर (मध्य प्रदेश)
2.कोटा हवाई-अड्डा, कोटा (राजस्थान)
3.उमरोई हवाई-अड्डा, शिलांग (मेघालय)
4.हुबली हवाई-अड्डा, हुबली, धारवाड (कर्नाटक)
5.मदुरै हवाई-अड्डा, मदुरै (तमिलनाडू)
6.मंगलोर हवाई-अड्डा, मंगलोर (कर्नाटक)
7.तिरुपति हवाई-अड्डा, तिरुपति (तमिलनाडू)
8.विजयवाडा हवाई-अड्डा, विजयवाडा (आंध्रप्रदेश)
9.बेलगाँव हवाई-अड्डा, बेलगाँव (कर्नाटक)
10.राजमुंदरी हवाई-अड्डा, राजमुंदरी (आंध्रप्रदेश)
11.वाराणसी हवाई-अड्डा, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
12.सोनारी हवाई-अड्डा, जमशेदपुर (झारखंड)

आगे बढ़ते कदम...

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) और भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण ने मिलकर उपग्रह आधारित हवाई यातायात में सहायक नेविगेशन सिस्टम बनाया है जिसे गगन नाम दिया गया है।  अब तक यह क्षमता केवल अमेरिका, यूरोप और जापान के पास ही थी। इस तकनीक का लाभ नागरिक उड्डयन क्षेत्र के साथ साथ समुद्री यातायात में भी मिलेगा।  बचाव व खोज अभियानों में भी यह प्रणाली सहायक होगी साथ ही रेल और सडक यातायात में भी इस उपग्रह आधारित प्रणाली का लाभ उठाया जा सकेगा। यह प्रणाली पृथ्वी की छह कक्षाओं में स्थापित किए गए 24 उपग्रहों से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर काम करती है। इस उपग्रह प्रणाली के आधार पर ऐसा भारतीय विमान सूचना क्षेत्र कायम होगा, जिससे दक्षिण पूर्व एशिया से लेकर खाडी तथा  पश्चिमी एशियाई देशों के अतिरिक्त पूर्वीय तटीय अफ्रीकी देश भी जुडे होंगे। गगन नामक यह भारतीय प्रणाली यूरोप के इगनोस  और जापान के एमसास नेविगेशन प्रणाली के बीच के अंतर को दूर करेगी और क्षेत्रीय सीमाओं के आरपार स्पष्ट हवाई यातायात संचालन की सुविधा प्रदान करेगी। इसका लाभ यह होगा कि हाल में जो विमान धरती पर लगे रडारों की मदद से उडान भरते हैं,  वे एक सीधी रेखा में उड़ान नहीं भर सकते। गगन जो कि उपग्रह आधारित प्रणाली है इसकी सहायता से विमानों के लिए सीधे मार्ग तैयार हो सकेंगे। इससे ईंधन की बचत भी होगी।

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