स्मृति शेष पद्मविभुषण गिरिजा देवी...
<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-4047862364003617" crossorigin="anonymous"></script> सांगितिक आभा मंडल के दैदिप्यमान ओज से वे दमकती रहती थी (अनुराग तागड़े) जितनी लरजती गरजती उनकी आवाज उतना ही मीठा उनका बोलना...शब्दों का चयन भी जैसे कौन सबसे ज्यादा मीठा है यह विचार करके करती थी। गायकी के कई स्वरुप आए...तैयारी वाले कलाकार भी आए और चले गए परंतु गिरिजा देवी अपनी साधना और कार्यक्रमों में मस्त...वे सुरों की सच्चाई और गहराई को जानती थी और सच्चे सुर ही परब्रह्म है इस पर उनकी सिद्धहस्तता थी। दुनिया जहां उन्हें ठुमरी क्वीन के नाम से जानती है पर रागदारी पर क्या पकड़ थी उनकी। किसी भी राग की शुद्धता को वे कभी नहीं छोड़ती थी और अमूमन यह कहा भी जाता है कि अगर कोई ठुमरी,चैती,होरी और गजÞल गायक है तब वह शास्त्रीय रागों के साथ उतना न्याय नहीं कर पाता है परंतु गिरिजा देवी मुंह में पान गिलौरियां भले ही चबा रही हो पर जब बात रागों की आती तब चेहरे पर भी गंभीरता और पवित्रता का अनुठा संगम देखने को मिलता था। ...