आज भी खरीदना पड़ता है मानव रक्त!

सभ्यता के विकास की दौड़ में मनुष्य भले ही कितना आगे निकल जाए, पर जरुरत पड़ने पर आज भी एक मनुष्य दूसरे को रक्तदान करने में हिचकिचाता है। रक्तदान के प्रति जागरुकता लाने की तमाम कोशिशों के बावजूद मनुष्य को मनुष्य का खून खरीदना ही पड़ता है। इसे बड़ी विडंबना ओर क्या हो सकती है कि कई दुर्घटनाओं में रक्त की समय पर आपूर्ति न होने के कारण लोग असमय मौत के मुँह में चले जातेे है।



रक्तदान के प्रति जागरुकता जिस स्तर पर लाई जाना चाहिए थी, उस स्तर पर न तो काशिर्श हुई है और न लोग जागरुक हुए। भारत की बात की जाए तो अब तक देश में एक भी केंद्रीयकृत रक्त बैंक की स्थापना नहीं हुई जिसके माध्यम से पूर्रे देश में कही पर भी खून की जरूरत को पूर्रा किया जा सके।


टेक्नोलॉजी में हुए विकास के बाद निजी तौर पर वेबसाइट्स के माध्यम से ब्लड बैंक व स्वैच्छिक रक्तदाताओं की सूची को बनाने का कार्य आरंभ हुआ। इसमें थोड़ी बहुत सफलता भी मिली, लेकिन संतोषजनक हालात अभी नहीं बने।


मात्र एक प्रतिशत रक्तदाता


विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर साल 14 जून को 'रक्तदान दिवस" मनाया जाता है। वर्ष 1997 में संगठन ने यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहां पर स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें। रक्त के लिए पैसे देने की जरुरत नहीं पड़ना चाहिए। पर अब तक लगभग 49 देशोंे ने ही इस पर अमल किया है। तंजानिया जैसे देश में 80 प्रतिशत रक्तदाता पैसे नहीं लेते, जबकि कई देशों जिनमें भारत भी शामिल है रक्तदाता पैसे लेता है। ब्राजील में तो यह कानून है कि आप रक्तदान के पश्चात किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते। आस्ट्रेलिया के साथ साथ कुछ अन्य देश भी है जहाँ पर 100 प्रतिशत रक्तदाता पैसे बिल्कुल भी नहीं लेते।


एड्स के बात जागरुकता


अस्सी के दशक के बाद रक्तदान करते समय काफी सावधानी बरती जाने लगी है। रक्तदाता भी खुद यह जानकारी लेता है कि रक्तदान के दौरान सही तरीके के चिकित्सकीय उपकरण प्रयोग किए जा रहे हैं। वैसे एड्स के कारण जहां जागरुकता बढ़ी, वही आम रक्तदाता के मन में भय भी बैठा है। इससे भी रक्तदान के प्रति उत्साह में कमी आई। इसका फायदा कई ऐसे लोगों ने उठाया जिनका काम ही रक्त बेचना है। आज भी दिल्ली, मुंबई सहित कई बड़े शहरों में ऐसे रक्तदाता मिल जाएँगे जो कि चंद रुपयों के लिए अपना रक्त बेच देते है। इनमें से अधिकांश का रक्त दूषित होता है या उन्होंने दो चार दिन के भीतर ही रक्त दिया रहता है। जरुरत पड़ने पर व्यक्ति इनसे रक्त तो ले लेता है, परंतु बाद में उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ते है।


रक्तदान के बारे में ...


- 18 वर्ष से अधिक आयु व 50 किलो से ज्यादा वजन वाले व्यक्ति रक्तदान कर सकते है।


- एक सामान्य मनुष्य में पांच से छ: लीटर रक्त होता है। रक्तदान के दौरान मात्र 300 मिलीलीटर रक्त लिया जाता है। शरीर इस रक्त की आपूर्ति मात्र 24 से 48 घंटे में कर लेता है।


- मनुष्य के शरीर में वजन का 7 प्रतिशत रक्त होता है।


- एक यूनिट रक्त के माध्यम से तीन लोगों की जान बचाई जा सकती है।


- सबसे ज्यादा पाए जाने वाला ब्लड ग्रुप 'ओ" है तथा 'एबी-निगेटव" सबसे कम पाया जाता है।


- वर्ष 2007 में वैज्ञानिकों ने एंजाइम्स के प्रयोग से ब्लड ग्रुप ए,बी,एबी को ओ में बदलने में सफलता प्राप्त कर ली थी। परंतु अभी इसके मनुष्यों पर प्रयोग होना बाकी है।


- विकासशील व गरीब देशों में रक्तदान के पश्चात भी दान किए हुए संपूर्ण रक्त का 45 प्रतिशत ही सहेजा जा रहा है।


- अगर किसी देश की संपूर्ण जनसंख्या का मात्र 1 से 3 प्रतिशत भी रक्तदान करता है तो वह उस देश की जरुरत पूरी कर सकता है। परंतु विश्व के 73 देशों में जनसंख्या के 1 प्रतिशत से भी कम लोग रक्तदान करते है।


- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार स्वैच्छिक रक्तदाताओं के मुकाबले खरीदा हुआ रक्त नहीं लेना चाहिए। आंकड़ेे यह बताते है कि स्वैच्छिक रक्तदाताओं द्वारा दिया गया रक्त न केवल मरीजों पर अच्छा असर करता है बल्कि इसमें एचआईवी तथा हेपिटाइटिस वायरस के होने की संभावना भी कम रहती है।


- विश्व में अभी भी 31 देश ऐसे है जो कि एचआईवी, हेपिटाईटिस-बी, हेपिटाइटिस-सी की जांच दान किए हुए रक्त में नहीं कर पाते। - अनुराग तागड़े

टिप्पणियाँ

रक्त दान महादान.......
कुछ इस लिंक पर भी गौर फरमाएं......

http://lokendra-vikram.blogspot.com/2009/07/blog-post.html
आपका विश्‍लेषणात्‍मक आलेख अच्‍छा लगा .. रक्‍त दान बहुत बडा दान है .. युवावर्ग को इससे कोई नुकसान नहीं है .. जागरूकता का अभाव तो हमारे देश में है ही .. नैतिक मूल्‍यों का पतन भी बहुत तेजी से होता जा रहा है .. जाने कब स्थिति सुधरेगी !!

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